कलकत्ता हाईकोर्ट ने 22 अप्रैल को पश्चिम बंगाल (West Bengal) स्कूल सेवा आयोग (SSC) द्वारा की गई 25,000 से अधिक शिक्षकों और गैर-शिक्षण कर्मचारियों की नियुक्तियों को रद्द कर दिया. ये फैसला सुमन मालाकार (बदला हुआ नाम) के लिए बहुत बड़ा झटका है.
डिवीजन बेंच ने यह आदेश एसएससी घोटाला मामले में सुनाया, जिसमें आयोग ने कथित तौर पर उम्मीदवारों से रिश्वत लेने के बाद "संदिग्ध भर्तियां" की थी.
मालाकार उन लोगों में से हैं, जिन्होंने कोर्ट के आदेश के कारण अपनी नौकरी खो दी है.
अदालत ने 2016 के पूरे स्कूल सेवा आयोग भर्ती पैनल को "अमान्य और शून्य" घोषित कर दिया, जिसके परिणामस्वरूप 9वीं से 12वीं और समूह 'सी' और 'डी' तक की सभी नियुक्तियां रद्द कर दी गईं. इन नियुक्तियों में अनियमितताएं पाई गईं थी.
मालाकार सीमित साधनों और संसाधनों वाले परिवार में पले-बढ़े और ग्रेजुएशन करने के बाद तुरंत बाद प्रतियोगी परीक्षाए देने लगे.
उन्होंने क्विंट हिंदी से बात करते हुए कहा, "मैं गुजारा करना चाहता था और अपने परिवार की मदद करना चाहता था. 2016 में स्कूल सेवा आयोग परीक्षा के अलावा, मैंने राज्य और केंद्र सरकार की नौकरियों के लिए अन्य परीक्षाएं भी दीं. 2018 में मुझे रेलवे के ग्रुप सी के 'गुड्स गार्ड' पद के लिए नियुक्ति पत्र मिला. मैंने वह नौकरी ले ली, लेकिन 2019 में मुझे अलीपुरद्वार जिले के एक हाई स्कूल में दूसरी नौकरी मिल गई."
अपने परिवार और घर से काम करने के अवसर के बारे में सोचते हुए, मैंने रेलवे की नौकरी छोड़ दी और शिक्षण कार्य शुरू कर दिया. मेरे जैसे कई लोगों को पारदर्शी तरीके से नौकरियां मिलीं. मैं अच्छी तरह समझता हूं कि इस तरह की कोई बात किसी व्यक्ति को मानसिक रूप से कैसे तोड़ सकती है.सुमन मालाकार
उन्होंने कहा कि जिस स्कूल में वह पढ़ाते हैं, उस स्कूल में गर्मी की छुट्टियां चल रही हैं. "उम्मीद है, स्कूल खुलने से पहले हमें बहाल कर दिया जाएगा. मैं अपने परिवार का एकमात्र कमाने वाला हूं, और मैं अपनी नौकरी खोने का जोखिम नहीं उठा सकता."
'छात्रों को पढ़ाने के लिए कॉन्स्टेबल की नौकरी छोड़ दी'
पश्चिम बंगाल के नदिया जिले के राणाघाट के रहने वाले प्रदीप मजूमदार की भी कुछ ऐसी ही कहानी है.
मजूमदार ने लगभग एक दशक तक पुलिस कॉन्स्टेबल के रूप में काम किया. 2016 में उनका नाम एसएससी पैनल में आया. 2018 में उन्होंने कॉन्स्टेबल की नौकरी छोड़ दी और घर से थोड़ी दूर एक सरकारी स्कूल में शिक्षक के रूप में नौकरी ज्वाइन कर ली.
मजूमदार ने क्विंट हिंदी को बताया, "ऐसे दिन थे जब मैं पूरी रात गश्त पर रहता और फिर सुबह घर लौटने पर किताब लेकर एसएससी परीक्षा की तैयारी में लग जाता. एक पुलिस वाले के रूप में काम करना कठिन है. कोई निश्चित घंटे नहीं हैं... कम छुट्टियां हैं. इसलिए, मैं एक शिक्षक की नौकरी चाहता था ताकि मैं अपने परिवार के साथ अधिक समय बिता सकूं."
मजूमदार के परिवार में बुजुर्ग माता-पिता, उनकी पत्नी और दो साल की बेटी है. उन्होंने द क्विंट को बताया, "मैंने शिक्षण कार्य पाने में मदद के लिए कोई शॉर्टकट नहीं अपनाया या किसी को कोई पैसे नहीं दिए."
उन्होंने कहा कि उन्हें अपनी पुलिस की नौकरी छोड़ने का अफसोस है. मजूमदार ने कहा, "कम से कम, वहां हर महीने एक निश्चित वेतन की गारंटी थी."
नौकरी गंवाने वाले 25,000 लोगों में राखी मंडल (बदला हुआ नाम) भी शामिल हैं. लेकिन उनकी सबसे बड़ी चिंता हाईकोर्ट द्वारा उन्हें चार सप्ताह के भीतर 12 प्रतिशत वार्षिक ब्याज के साथ उनका वेतन लौटाने का निर्देश देना है.
राखी को 2018 में नौकरी मिली थी. उन्होंने क्विंट हिंदी को बताया कि उनके पास समय पर वेतन लौटाने का कोई साधन नहीं है.
"मुझे हर महीने वेतन के रूप में लगभग 55,000 रुपये मिलते थे. अब अदालत मुझसे चार महीने के भीतर अपना पूरा वेतन लौटाने के लिए कह रही है, जो मैंने इन पांच वर्षों में कमाया है. मैं इतना पैसा कहां से लाऊंगी?"
मंडल एक अकेली मां है जिसे अपने बुजुर्ग माता-पिता की भी देखभाल करनी है.
क्या घोटाला हुआ है?
2016 में पश्चिम बंगाल में 24,640 रिक्त शिक्षक पदों के लिए राज्य स्तरीय चयन परीक्षा (SLST) के लिए लगभग 23 लाख उम्मीदवारों ने आवेदन आए थे.
परीक्षा के बाद बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे. असफल उम्मीदवारों के एक वर्ग ने एक अभियान चलाया, जिसमें आरोप लगाया गया कि कई चयनित उम्मीदवारों ने भर्ती होने के लिए कथित तौर पर रिश्वत दी थी.
2021 में कलकत्ता हाईकोर्ट के पूर्व न्यायाधीश अभिजीत गंगोपाध्याय (जो अब तमलुक लोकसभा सीट से भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवार हैं) ने केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) को आरोपों की जांच करने का निर्देश दिया.
इस बीच, प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने भी मामलों की जांच शुरू कर दी. मामले में पूर्व मंत्री पार्थ चटर्जी समेत कई तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) नेताओं को गिरफ्तार किया गया है.
फ्रंटलाइन के अनुसार, 22 अप्रैल को आदेश पारित करते हुए हाईकोर्ट ने कहा: "हमने इस भावुक याचिका पर उत्सुकता से विचार किया है कि जिन लोगों ने कानूनी रूप से नियुक्तियां प्राप्त की थीं, अगर हम पूरी चयन प्रक्रिया रद्द कर देंगे तो वे पूर्वाग्रह से ग्रसित हो जाएंगे... हमारे पास शायद ही कोई विकल्प बचा हो. हम चाहते हैं कि छात्रों को बेईमान चयन प्रक्रिया के माध्यम से नौकरी हासिल करने वाले तत्वों के सामने उजागर करने के बजाय एक बेदाग चयन प्रक्रिया के माध्यम से ईमानदार व्यक्तियों को शिक्षक के रूप में नियुक्त किया जाए."
अदालत ने सीबीआई को कथित अनियमितताओं की अतिरिक्त जांच करने का भी निर्देश दिया.
चुनाव के बीच टीएमसी को झटका?
कलकत्ता हाईकोर्ट का आदेश मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और उनकी पार्टी टीएमसी के लिए एक बड़ा झटका है. यह विशेष रूप से महत्वपूर्ण समय पर आया है क्योंकि पार्टी लोकसभा चुनावों के लिए प्रचार कर रही है.
संदेशखाली प्रकरण को लेकर टीएमसी पहले से ही निशाने पर है, जहां पूर्व टीएमसी नेता शाहजहां शेख और उनके सहयोगियों के खिलाफ महिलाओं के व्यवस्थित यौन शोषण के आरोप लगाए गए थे.
बीजेपी के पश्चिम बंगाल अध्यक्ष सुकांत मजूमदार ने आरोप लगाया कि "यह घोटाला केवल इसलिए हुआ क्योंकि ममता बनर्जी सरकार ने उन अयोग्य व्यक्तियों के नाम वाली सूची नहीं सौंपी, जिन्होंने तृणमूल नेताओं को पैसा देकर नौकरियां हासिल की थीं...इसलिए, जिन्हें सही तरीके से नौकरियां मिलीं, उन्हें भी परेशानी हो रही है". उन्होंने आगे कहा कि लगभग 5,000 को अवैध रूप से भर्ती किया गया था.
कलकत्ता हाईकोर्ट द्वारा नियुक्ति प्रक्रिया में "गड़बड़ी" पाए जाने के कुछ घंटों बाद, मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कहा कि उनकी सरकार "अवैध" फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देगी.
जिन लोगों ने अपनी नौकरी खो दी है, उन्हें चिंता नहीं करनी चाहिए, उदास नहीं होना चाहिए, या अपने जीवन के बारे में चिंतित नहीं होना चाहिए.ममता बनर्जी, मुख्यमंत्री, पश्चिम बंगाल
उन्होंने पूछा, "हम पूरे फैसले को चुनौती दे रहे हैं क्योंकि इससे 26,000 लोगों और उनके परिवारों की जान जोखिम में है, जिससे प्रभावितों की संख्या 1.5-2 लाख हो जाएगी. आठ साल तक काम करने के बाद उन्हें चार हफ्ते में अपना वेतन लौटाने को कहा गया है. क्या इसे करना संभव है."
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