बीजेपी ने लोकसभा चुनाव 2019 के अपने मेनिफेस्टो में आर्टिकल 35A को खत्म करने का वादा किया है. पार्टी ने कहा है, ''हम आर्टिकल 35A को खत्म करने के लिए प्रतिबद्ध हैं. हमारा मानना है कि आर्टिकल 35A जम्मू-कश्मीर के गैर-स्थायी निवासियों और महिलाओं के खिलाफ भेदभावपूर्ण है.'' बीजेपी के इस वादे से आर्टिकल 35A एक बार फिर चर्चा में आ गया है. ऐसे में आर्टिकल 35A से जुड़े अहम पहलुओं पर एक नजर:
क्या है आर्टिकल 35A?
आर्टिकल 35A एक संवैधानिक प्रावधान है, जो जम्मू-कश्मीर विधानसभा को 'स्थायी नागरिक' की परिभाषा तय करने का अधिकार देता है. जम्मू-कश्मीर में स्थायी नागरिकों को कुछ विशेष अधिकार मिलते हैं. मसलन राज्य में संपत्ति की खरीद और उनके मालिकाना हक का अधिकार, राज्य की नौकरियों, स्कॉलरशिप और योजनाओं का फायदा.
क्या है आर्टिकल 35A का विरोध करने वालों की दलील
आर्टिकल 35A को 14 मई 1954 को राष्ट्रपति के आदेश से भारतीय संविधान में जोड़ा गया था. आर्टिकल 35A का विरोध करने वालों ने इसकी संवैधानिक वैधता पर सवाल उठाए हैं.
‘वी द सिटीजन’ नाम के एक NGO ने साल 2014 में यह दलील देते हुए सुप्रीम कोर्ट में आर्टिकल 35A को चुनौती दी थी कि इसे आर्टिकल 368 के तहत संशोधन के जरिए संविधान में नहीं जोड़ा गया था.
इसके अलावा और भी कई याचिकाओं के जरिए आर्टिकल 35A को चुनौती दी गई है.
आर्टिकल 35A के तहत 'बाहरी लोगों' के पास ये अधिकार नहीं
जो लोग जम्मू-कश्मीर के स्थायी नागरिक नहीं हैं उनके पास राज्य में मुख्य तौर पर ये अधिकार नहीं हैं:
- अचल संपत्ति खरीदने का अधिकार
- राज्य की नौकरियों का अधिकार
- विधानसभा और स्थानीय चुनावों में वोट डालने का अधिकार
J&K में क्यों संवेदनशील है आर्टिकल 35A का मुद्दा
आर्टिकल 35A हटने के बाद जम्मू-कश्मीर में इस राज्य से बाहर के लोग भी जमीन या अचल संपत्ति खरीद सकेंगे. इसके अलावा उन्हें राज्य के चुनावों में वोट डालने के अधिकार भी मिल सकते हैं.
कश्मीर के मूल निवासियों को राज्य में गैर-कश्मीरियों के बसने से डेमोग्राफी बदलने का डर है. इसी के चलते जम्मू-कश्मीर में आर्टिकल 35A काफी संवेदनशील मुद्दा बन चुका है.
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