नागरिकता संशोधन विधेयक को आज लोकसभा में पेश किया जाएगा. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई में हुई केंद्रीय कैबिनेट की बैठक में नागरिकता संशोधन बिल पर मुहर लगाए जाने के बाद इसे संसद में पेश किया जा रहा है. नागरिकता (संशोधन) विधेयक से मुस्लिम आबादी बहुल पड़ोसी देश पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से भारत आने वाले गैर-मुस्लिम अप्रवासियों के लिए भारत की नागरिकता लेना आसान हो जाएगा. लेकिन इस बिल पर खूब बवाल मचा है. विपक्षी दल इस बिल के विरोध में उतर चुके हैं. जानिए क्या है नागरिकता संशोधन बिल और आखिर क्यों इस पर हो रहा है बवाल?
क्या है नागरिकता (संशोधन) विधेयक?
- पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से भारत आने वाले गैर-मुस्लिम अप्रवासी ले पाएंगे भारतीय नागरिकता.
- हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई भारत की नागरिकता हासिल कर सकते हैं. इस बिल में मुस्लिमों को नागरिकता देने का जिक्र नहीं है.
- इस विधेयक में नागरिकता अधिनियम 1955 में संशोधन किया गया था. नागरिकता अधिनियम 1955 के मुताबिक, भारत की नागरिकता के लिए आवेदक का 11 साल तक भारत में निवास करना आवश्यक था.
- संशोधन में इन तीन देशों से आने वाले हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी, और ईसाई समुदाय के लोगों के लिए इस 11 साल की अवधि को घटाकर छह साल कर दिया गया है.
- इस बिल में भारत के ओवरसीज सिटिजन (OCI) कार्ड होल्डर्स का कानून का उल्लंघन करने पर कार्ड कैंसिल करने का भी प्रावधान है.
- OCI एक इमिग्रेशन स्टेटस है जो भारतीय मूल के विदेशी नागरिक को अनिश्चित काल तक भारत में रहने और काम करने की अनुमति देता है.
- ये बिल उन्हीं लोगों को नागरिकता देगा जो 31 दिसंबर, 2014 से पहले भारत में बसे हैं.
बीजेपी का चुनावी मुद्दा, विपक्ष का विरोध
बीजेपी ने 2014 के आम चुनावों के दौरान पड़ोसी देशों में सताए गए हिंदुओं को नागरिकता देने का वादा किया था.पार्टी ने अपने चुनावी घोषणापत्र में भी हिंदू शरणार्खियों को आश्रय देने की बात कही थी.
इस बिल का पूर्वोत्तर राज्यों, खासकर असम में काफी विरोध हो रहा है. असम की सीमा बांग्लादेश से सटती हैं, जो कि उन तीन देशों में से एक है. लोगों का कहना है कि इस बिल के पास होने से असम पर बोझ बढ़ सकता है.
विपक्ष भी इस बिल का विरोध कर रहा है. विपक्ष का कहना है कि बीजेपी इस बिल का इस्तेमाल हिंदू वोटरों को रिझाने के लिए कर रही है.
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