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जॉब क्राइसिस: एक्सपर्ट से जानिए किस सेक्टर का क्या है हाल

आपको पता है आप जिस सेक्टर में काम करते हैं उस इंडस्ट्री की सेहत कैसी है और नौकरियों का क्या हाल है?

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जब से आर्थिक मोर्चे पर इकनॉमिक स्लोडाउन की खबरें आना शुरू हुई हैं. उसी के साथ ही अलग-अलग सेक्टर से नौकरियों के जाने की खबरें आने लगीं हैं. ऑटो और टेक्सटाइल्स से लाखों लोगों की जॉब जा चुकी है. अगर आप भी प्राइवेट जॉब करते हैं तो आपको भी जानने की इच्छा होगी कि जॉब मार्केट में क्या चल रहा है? आप जिस सेक्टर में काम करते हैं, उस इंडस्ट्री की सेहत कैसी है और नौकरियों का क्या हाल है? समझने की कोशिश करते हैं.

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सीनियर लेवल पर काम करने वाले, मिड लेवल पर काम करने वाले और नए-नए नौकरी में लगने वाले लोग. यहां तक कि वो सब लोग जो अभी-अभी पढ़ाई करके निकले ही हैं और नौकरी की तलाश कर रहे हैं. उन सबके लिए हमने जॉब मार्केट पर अच्छी पकड़ रखने वाले एक्सपर्ट्स से बात करके जॉब मार्केट में हाल फिलहाल में आए बदलाव पर बात की है.

जॉब मार्केट पर अच्छी पकड़ रखने वाले HR मंत्रा कंसल्टिंग के को-फाउंडर अंशुमाल दीक्षित बताते हैं कि जॉब मार्केट में पिछले 8 महीने से 1 साल के दौरान काफी बदलाव देखने को मिल रहे हैं.

इकनॉमिक स्लोडाउन का नौकरियों पर भी असर हो रहा है. कुछ सेक्टर जैसे ऑटो, टेक्सटाइल, ऐविएशन, टेलीकॉम पर तो इनका असर दिखने भी लगा है.

मोटे तौर पर जॉब मार्केट में ये बदलाव नजर आने लगे हैं-

  1. कंपनियों में सीनियर लेवल पर नौकरियां होल्ड पर चली गई हैं. सीनियर पोजीशन में नए अपॉइंटमेंट नहीं हो रहे हैं.
  2. नई भर्ती करने की बजाय काफी सारे जूनियर लोगों को ही सीनियर लेवल पर प्रमोट किया जा रहा है. कंपनी कॉस्ट कटिंग के नए पैंतरे अपना रही हैं. उनमें से ये भी एक है. लेकिन जो लोग जूनियर लेवल पर काम कर रहे हैं, वो इस मौके का फायदा उठा सकते हैं.
  3. कंपनियां हायरिंग के लिए कंसल्टेंसी फर्म का सहारा नहीं ले रही हैं. कंपनियां आपसी लोगों की पहचान या फिर सोशल मीडिया के जरिए ही हायरिंग का काम कर रही हैं. ये भी कॉस्ट कटिंग का टूल है.
  4. हायरिंग की प्रक्रिया में नेगोसिएशन बढ़ गया है. मतलब ऑफर प्राइस सिकुड़ रहे हैं. इसका सीधा मतलब है कि कम सैलरी पर लोग काम करने के लिए तैयार हैं.
  5. हायरिंग प्रोसेस काफी लंबा हो गया है. हायरिंग में गैर जरूरी प्रकियाएं करके वक्त खपाया जा रहा है.

इंडियन स्टाफिंग फेडरेशन की अध्यक्ष रितुपर्णा चक्रबर्ती का मानना है कि इकनॉमिक स्लोडाउन की वजह से ही जॉब मार्केट पर बुरा असर पड़ा है, ऐसा नहीं है. हर सेक्टर की अलग-अलग दिक्कतें हैं, जिसके चलते नौकरियां जा रही हैं. रितुपर्णा के मुताबिक नौकरियों के मामले में सीनियर लेवल पर दिक्कत है. सीनियर लेवल पर नई नौकरियां नहीं निकल रही हैं. लेकिन मिड और फ्रेशर लेवल पर अभी भी नौकरियों के मौके बने हुए हैं. फ्रेशर लेवल पर तो कोई खास फर्क नहीं पड़ा है.

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किस सेक्टर का कैसा हाल

अंशुमाल बताते हैं कि डिमांड में कमी और आर्थिक मंदी के कारण कंपनियां अपनी कॉस्ट कटिंग कर रही हैं. लेकिन सभी इंटस्ट्री में ऐसा हो रहा है, ऐसा नहीं है. कुछ सेक्टर पर स्लोडाउन का असर ज्यादा देखने को मिल रहा है. आगे आने वाले दिनों में ये कुछ और सेक्टर की तरफ मुड़ सकता है.

ऑटो सेक्टर-

ऑटो और टेक्सटाइल इंडस्ट्री में पहले से ही नौकरियां जा रही हैं. इसकी सबसे बड़ी वजह है कि  लोग पैसे की कमी होने पर सबसे पहले ऐसे खर्च को टाल देते हैं जो जरूरी नहीं होते. कोई भी कार तब खरीदता है जब पैसे बेसिक जरूरत से ज्यादा हो यानि सरपल्स हों.

इंफ्रा सेक्टर

इंफ्रास्ट्रक्टर सेक्टर में भी मांग की कमी है. सेक्टर की पहले से ही अपनी चुनौतियां बरकरार हैं. नोटबंदी के बाद से पूरे रियल्टी और इंफ्रा सेक्टर में सुस्ती है. इसलिए इस सेक्टर में नई नौकरियां न के बराबर हैं.

बैंकिंग और फाइनेंशियल

बैंकिंग और फाइनेंशियल सेक्टर में भी नौकरियां सिमट रही हैं. हाल फिलहाल में हुआ NBFC संकट सभी ने देखा ही है. टेक्नोलॉजी में आ रहे बदलाव भी इसकी अहम वजह हैं. ऑटोमेशन बढ़ रहा है और नौकरियां सिमट रही हैं.

टेलीकॉम सेक्टर

टेलीकॉम सेक्टर में इकनॉमिक स्लोडाउन से ज्यादा इंडस्ट्री की अपनी चुनौतियां हावी है. पूरा टेलीकॉम सेक्टर कंसॉलिडेशन की प्रक्रिया से गुजर रहा है. जियो के आने के बाद से वोडाफोन- आइडिया, एयरटेल जैसी कंपनियों को भारी नुकसान हो रहा है जिससे वहां भी छंटनी देखने को मिल रही है.

आईटी सेक्टर

आईटी सेक्टर में नौकरियां सीनियर लेवल पर कम हुई हैं. शुरुआती स्तर पर अभी भी जगह है. आईटी इंडस्ट्री में भारत का ज्यादातर व्यापार अमेरिका के साथ होता है. लेकिन ट्रेड वॉर के चलते लगाए जा रहे प्रतिबंधों का असर इस इंडस्ट्री पर पड़ रहा है. आईटी सेक्टर में नौकरी जाने की यही अहम वजह है.

इन सेक्टर के अलावा ऑयल एंड गैस, बायोटेक्नोलॉजी, फार्मा, FMCG में नौकरियों के जाने की ज्यादा आशंका नहीं है. ये ऐसे सेक्टर हैं जिनके प्रोडक्ट आम रोजमर्रा की जरूरतों से जुड़े हैं और कोई चाहकर भी इसका कंजम्प्शन कम नहीं कर सकता. इसलिए ऐसी इंडस्ट्रीज में भले ही नई नौकरियां पैदा न हों, लेकिन मौजूदा नौकरियां जाने का खतरा कम है. इसके साथ ही एजुकेशन टेक्नोलॉजी एक ऐसा सेक्टर है जिसमें अभी भी नई नौकरियों के मौके बन रहे हैं.
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नौकरी बचानी है तो ये करें

अगर आप पहले से किसी कंपनी में काम कर रहे हैं तो अभी जॉब न छोड़ें. अपनी जॉब पकड़ कर बैठें. अपनी जॉब में इंट्रेस्ट लेवल बना के रखें. अपने प्रदर्शन के स्तर को नीचे न आने दें. कंपनी को ऐसा कोई भी मौका न दें जिससे वो आपको निकालने के बारे में सोचें. अपने फ्री टाइम में नई स्किल्स सीखने पर काम करते रहें. नौकरी के अलावा बचा हुए टाइम खुद को बेहतर बनाने पर लगाएं.

फ्रेशर्स के लिए सलाह

जो लोग पढ़ाई के बाद या कोई नई स्किल सीखने के बाद इंडस्ट्री में आ रहे हैं या आने वाले हैं उनको कुछ खास बातों का ख्याल रखना चाहिए. अपने कम्यूनिकेशन पर मेहनत करें. कम्यूनिकेशन का मतलब सिर्फ अंग्रेजी से नहीं है, बल्कि जिस भी भाषा में बोलें आत्मविश्वास से बोलें. बेसिक कम्यूटर सीखें. आपको कंम्यूटर के बेसिक एप्लीकेशंस पर काम करना आना चाहिए.

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