एक तरफ भारत में वैक्सीन कमी (vaccine shortage) की वजह से वैक्सीनेशन प्रोग्राम धीमा पड़ गया है. वहीं, दूसरी तरफ वैक्सीन वेस्टेज (vaccine wastage) की रिपोर्ट्स हैं. नए आंकड़ों के मुताबिक, झारखंड 37.3% और छत्तीसगढ़ 30.2% के साथ सबसे ज्यादा वैक्सीन वेस्टेज वाले राज्य हैं. जबकि केरल -6.3% और पश्चिम बंगाल -5.4% के साथ सबसे कम वेस्टेज वाले राज्य हैं.
केंद्र कई बैठकों में राज्यों को वैक्सीन वेस्टेज को लेकर फटकार लगा चुका है. नए आंकड़े सामने आने के बाद से विपक्षी पार्टियों के शासन वाले झारखंड और छत्तीसगढ़ ने केंद्र के डेटा को चुनौती दी है.
झारखंड के सीएम हेमंत सोरेन ने पूछा, "कोई कैसे सोच सकता है कि झारखंड अपने सुरक्षा कवच को बर्बाद होने देगा."
झारखंड CMO ने दावा किया है कि तकनीकी कारणों से डेटा CoWin पोर्टल पर अपलोड नहीं किया जा सक और वेस्टेज काफी कम 4.65% थी.
बीजेपी-शासित मध्य प्रदेश ने भी केंद्र के 10 फीसदी वैक्सीन वेस्टेज को चुनौती दी है.
लेकिन असल में वैक्सीन वेस्टेज कैसे होता है और इसे कम कैसे किया जा सकता है?
वैक्सीन वेस्टेज क्या है?
WHO वैक्सीन वेस्टेज को 'कुल फेंकी गई, खोई, क्षतिग्रस्त या नष्ट हुई वैक्सीन' बताता है.
WHO का कहना है, "स्टॉक-आउट और ओवर-स्टॉक कम करने, सही वैक्सीन रिप्रजेंटेशन चुनने और देश के स्तर पर सप्लाई चेन इंफ्रास्ट्रक्चर का साइज पता करने के लिए वेस्टेज रेट सही से पता करना जरूरी है."
सभी वैक्सीनेशन ड्राइव में थोड़ा वेस्टेज होना सामान्य बात है लेकिन इसे कम से कम रखना जरूरी है, खासकर कोरोना महामारी जैसी स्थिति में, जहां सरकार के लिए जल्दी से जल्दी पूरे देश को वैक्सीन देना महत्वपूर्ण है.
वैक्सीन वेस्टेज कैसे होता है?
खुले या सील वायल में वैक्सीन वेस्टेज होने की कई वजहें हैं.
खराब कोल्ड चेन, ट्रांसपोर्टेशन के दौरान किसी तरह की परेशानी, एक्सपायरी डेट तक इस्तेमाल न होना या खो जाने से वैक्सीन वेस्टेज हो सकती है.
इसके अलावा खुले वायल में वैक्सीनेशन वर्कर्स की लापरवाही से वेस्टेज हो सकती है. खुले वायल से पूरी तरह डोज का इस्तेमाल नहीं करना, कंटैमिनेशन का शक, जितनी डोज ली जा सकती हैं हेल्थ वर्कर्स का उतना डोज न निकाल पाना, ये सभी वेस्टेज में आता है.
वैक्सीन यूसेज को कुल आवंटित वैक्सीन में से कितनी वैक्सीन दी गई के प्रोपोरशन से पता किया जाता है.
ऐसे, जो परसेंटेज ऑफ वैक्सीन नहीं दी गई, उसे 'रेट ऑफ वैक्सीन वेस्टेज' कहते हैं. WHO के मुताबिक, ये रेट '100 में से वैक्सीन यूसेज रेट घटाने' से मिलता है.
क्या वैक्सीन वेस्टेज से राज्यों के आवंटन पर फर्क पड़ेगा?
केंद्र सरकार ने 18+ के लिए वैक्सीन डोज आवंटन की जिम्मेदारी वापस अपने कन्धों पर ले ली है. केंद्र ने कहा है कि ज्यादा वैक्सीनेशन रेट से वैक्सीन आवंटन प्रभावित होगा.
केंद्र हमेशा वैक्सीन आवंटन के दौरान 'प्रोग्रामेटिक वेस्टेज' का स्कोप रखता है और एक टारगेट आबादी का वैक्सीनेशन करने के लिए कितनी डोज चाहिए होगी, इसका अनुमान 'वेस्टेज मल्टिप्लिकेशन फेक्टर' (WMF) से लग सकता है.
स्वास्थ्य मंत्रालय की गाइडलाइन के मुताबिक, केंद्र की खरीदी हुई कम से कम 10 फीसदी वैक्सीनों में 'प्रोग्रामेटिक वेस्टेज' हो सकती है.
WMF = 1.11 (COVID-19 वैक्सीन के लिए, ये मानते हुए कि प्रोग्रामेटिक वेस्टेज 10 फीसदी है)
[WMF = 100/(100 - वेस्टेज) = 100/(100-10) = 100/90 = 1.11].
इसलिए भारत में एक महीने में वैक्सीन जरूरत होगी:
(किसी कैचमेंट एरिया में कुल आबादी (राज्य/जिला/ब्लॉक/सेक्टर) X % इस कैचमेंट एरिया में कवर की जाने वाली आबादी/कैंपेन के महीने) x 2 डोज x WMF.
वैक्सीन वेस्टेज कैसे कम कर सकते हैं?
11 जून को केंद्र ने अपने बयान में कहा कि वो राज्यों से वैक्सीन वेस्टेज 1 फीसदी तक कम करने की उम्मीद करता है.
केंद्र ने कहा, "कुछ राज्यों ने कोविड वैक्सीनेशन ऐसे आयोजित किया है जिससे न सिर्फ कोई वेस्टेज होती है बल्कि वो एक वायल से ज्यादा डोज निकाल पा रहे हैं और इसलिए नेगेटिव वेस्टेज हो रही है. 1 फीसदी वेस्टेज प्रैक्टिकल है.
वैक्सीन वेस्टेज कम करने के लिए सावधानीपूर्वक ट्रांसपोर्टेशन और सही तापमान सुनिश्चित करना जरूरी है. वैक्सीन सेशन प्लान करना भी महत्वपूर्ण है, जिसमें हेल्थ वर्कर्स पर्याप्त लोगों के आने के बाद ही वायल खोलें.
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