जासूसी के लिए Pegasus spyware बनाने वाले NSO ग्रुप ने द क्विंट को बताया है कि वह इस बात का खुलासा तो नहीं कर सकते कि उनके क्लाइंट कौन हैं लेकिन उन्होंने ये स्पष्ट किया है कि वह अपना प्रोडक्ट सिर्फ सरकारों को ही बेचते हैं.
बता दें, Pegasus स्पाइवेयर के जरिए देश में व्हाट्सऐप हैक कर पत्रकार, समाजिक और दलित कार्यकर्ताओं समेत दो दर्जन से ज्यादा लोगों की जासूसी किए जाने की बात सामने आई है.
WhatsApp जासूसी कांड को लेकर द क्विंट ने इजरायल की साइबर इंटेलिजेंस कंपनी ‘एनएसओ ग्रुप’ से कई सवाल किए.
हमने उनसे पूछा कि क्या उन्होंने भारत सरकार की किसी एजेंसी के साथ डील की है. इस पर एनएसओ ने कहा, "हमारा एकमात्र उद्देश्य सरकारी खुफिया और कानून की रक्षा करने वाली एजेंसियों को टेक्नोलॉजी देना है."
इस बीच आईटी मिनिस्टर रविशंकर प्रसाद ने 31 अक्टूबर को इस मामले में एक बयान जारी किया, जिसमें उन्होंने इस घटना को "निजता का उल्लंघन" बताया. साथ ही सरकार ने जासूसी सॉफ्टवेयर के मुद्दे पर WhatsApp से चार नवंबर तक जवाब मांगा है. हालांकि, सरकार ने अभी तक इस पर कोई बयान नहीं दिया है कि क्या इसकी जांच कराई जा रही है कि स्पाइवेयर किसने खरीदा था?
क्विंट के साथ बातचीत में एनएसओ ग्रुप ने अपनी दो अहम पॉलिसी के बारे में भी जिक्र किया है.
- कंपनी 'गंभीर अपराध और आतंकवाद' को रोकने के लिए अपने प्रोडक्ट को किसी सरकारी एजेंसी को बेचती है. लेकिन जिस तरह से भारत के आम नागरिकों की जासूसी की बात सामने आ रही है, हमारे कॉन्ट्रैक्ट में ऐसा करने पर पाबंदी है.
- अगर हमें किसी तरह के दुरुपयोग का पता चलता है तो हम उस पर कार्रवाई करते हैं.
द क्विंट को बीते मंगलवार से अब तक उन 20 भारतीय नागरिकों का पता चल चुका है, जिनकी Pegasus स्पाइवेयर के जरिए जासूसी की गई थी. इनमें एल्गार परिषद और भीमा कोरेगांव मामले से जुड़े वकील, जाति-विरोधी कार्यकर्ता और डिफेंस रिपोर्टिंग करने वाले पत्रकार शामिल हैं.
व्हाट्सऐप ने इजरायली कंपनी के खिलाफ सेन फ्रांसिस्को की एक फेडरल कोर्ट में केस दर्ज किया है. लेकिन अभी तक ये साफ नहीं हुआ है कि भारतीय पत्रकारों और सोशल एक्टिविस्टों पर किसके इशारे पर नजर रखी जा रही थी.
“हमारी टेक्नोलॉजी मानवाधिकार कार्यकर्ताओं और पत्रकारों की जासूसी करने के लिए नहीं है. इस सॉफ्टवेयर ने पिछले कुछ सालों में हजारों लोगों की जान बचाने में मदद की है.”NSO ग्रुप का बयान
कई साइबर एक्सपर्ट्स, एडवोकेट और डिजिटल राइट्स एक्टिविस्ट ने सरकार से मांग की है कि वो इस मामले की जांच कराएं और पता लगाए कि क्या कोई सरकारी एजेंसी इस टेक्नोलॉजी की खरीद में शामिल है?
इंटरनेट फ्रीडम फाउंडेशन और सुप्रीम कोर्ट के एडवोकेट अपार गुप्ता ने क्विंट से कहा, "सरकार को स्पाइवेयर सॉफ्टवेयर डील की पूरी जानकारी देनी चाहिए. सरकार को बताना चाहिए कि कैसे स्पाइवेयर सॉफ्टवेयर खरीदा गया? कैसे इसका इस्तेमाल किया गया? और क्या इससे सुरक्षा के लिए कोई कानूनी कार्रवाई की गई?"
बता दें, इसी सॉफ्टवेयर के जरिए सऊदी अरब के पत्रकार जमाल खशोगी को ट्रैक किया गया, फिर बाद में उनकी हत्या की गई. इस हत्याकांड में सऊदी शासकों का नाम सामने आ रहा है.
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