वीडियो एडिटर: संदीप सुमन
अचानक से मैसेजिंग ऐप व्हाट्सऐप से आई एक जानकारी से पूरे देश में हड़कंप मच गया. व्हाट्सऐप ने अपने एक बयान में खुलासा किया कि एक इजरायली कंपनी के सॉफ्टवेयर से कई भारतीयों का व्हाट्सऐप हैक किया गया और उन पर जासूसी की गई. इसमें दर्जनों पत्रकार और सोशल एक्टिविस्टों का नाम शामिल था.
लेकिन इस खबर से एनडीटीवी के वरिष्ठ पत्रकार रवीश कुमार और सीनियर जर्नलिस्ट माया मीरचंदानी जैसे कुछ पत्रकारों को बिल्कुल भी हैरानी नहीं हुई.
हालांकि अभी तक एक सवाल से सब लोग परेशान हैं कि आखिर किसके इशारों पर ये जासूसी हुई और इसका मकसद क्या था? क्विंट ने कुछ जानेमाने पत्रकारों से इस मुद्दे पर बातचीत की. इस बातचीत में इन पत्रकारों ने कई बड़े खुलासे किए.
'हमें सुनने से क्या मिलेगा, गरीबों की आवाज सुनो'
एनडीटीवी के सीनयर एग्जिक्यूटिव एडिटर रवीश कुमार ने बातचीत में बताया कि ये उनके लिए कुछ भी नया नहीं है. उन्हें कुछ साल पहले ही सलाह दे दी गई थी कि वह अपने फोन पर भरोसा न करें. रवीश कुमार ने कहा-
"सरकार हमारी बातचीत सुनकर क्या करेगी? उन्हें गरीबों और बेरोजगारों की बातचीत को सुनना चाहिए."
रवीश कुमार ने पत्रकारों और एक्टिविस्टों की जासूसी लोकसभा चुनाव के दौरान किए जाने पर भी सवाल उठाया. उन्होंने कहा अगर मई 2019 के आसपास ऐसा हुआ है तो यह काफी गंभीर सवाल है.
उन्होंने कहा, उस वक्त राफेल और कई अन्य मुद्दे खबरो में थे. क्या ऐसा उन खबरों को दबाने के लिए हुआ था? कोई काफी डरा हुआ है कि कहीं उसका शासन और झूठतंत्र गिर ना जाए.
सरकार के खिलाफ बोलने वाले हो रहे टारगेट
सीनियर जर्नलिस्ट माया मीरचंदानी को भी इस खुलासे से कोई खास असर नहीं पड़ा. उन्होंने कहा कि भारत में कई बार राष्ट्रीय सुरक्षा के नाम पर पत्रकारों की बातचीत और उनके मैसेज पढ़ने की कोशिश की गई. लेकिन इस वक्त असली समस्या ये है कि जो सरकार के खिलाफ बोल रहे हैं उन्हें टारगेट किया जा रहा है.
सरकार को देना चाहिए जवाब
एनडीटीवी की पत्रकार निधि राजदान का कहना है कि वो हमेशा से टेक्नोलॉजी को लेकर सतर्क रहती हैं और पत्रकार हमेशा ही सरकारों की रडार पर रहते हैं, फिर चाहे वो बीजेपी सरकार हो या फिर पिछली यूपीए की सरकार. लेकिन अगर इसमें सरकार का कोई भी रोल है तो उसे सफाई देनी चाहिए.
जिसका अंदेशा था वही हो रहा सच
द हिंदू की पत्रकार सुहासिनी हैदर ने कहा कि काफी लंबे समय बाद पत्रकारों को पता चला है कि कोई उनकी निगरानी कर रहा है. यह सिर्फ कुछ बुरा होने के अंदेशे का सच साबित होने जैसा है. पहले जब राष्ट्रीय सुरक्षा कारणों के चलते किसी का भी फोन टैप किया जाता था तो उसके लिए गाइडलाइन फॉलो होती थी. लेकिन अब लगता है कि किसी को भी हमारे फोन टैप करने के लिए कुछ भी जवाब नहीं देना पड़ता है.
डेटा प्राइवेसी पर बने सख्त कानून
इंडियन एक्सप्रेस की पत्रकार सीमा चिश्ती जिन्होंने पत्रकारों और सोशल एक्टिविस्टों पर हुई इस जासूसी को रिपोर्ट किया था, उन्होंने कहा, देश में डेटा प्राइवेसी कानूनों को मजबूत बनाया जाना चाहिए. आज टेक्नोलॉजी हमारे जीवन का हिस्सा है और हमें ये भरोसा होना चाहिए कि कोई इसका गलत इस्तेमाल नहीं कर सकता है.
सर्विलांस सिस्टम का हुआ है गलत इस्तेमाल
नेटवर्क 18 के ग्रुप कंसल्टिंग एडिटर प्रवीन स्वामी का कहना है कि सरकारों ने सर्विलांस के मुद्दे पर संसदीय निरीक्षण का विरोध किया है. हालांकि ये टेक्नोलॉजी आतंक से मुकाबला करने में मददगार साबित होती है, लेकिन इसका कई बार गलत इस्तेमाल भी किया गया है. यहां तक कि 10 साल पहले यूपीए सरकार में भी ऐसा होता था.
स्वामी ने कहा कि भारत में न्यूजरूम्स खुद को और अपने कर्मचारियों को जासूसी से बचाने के लिए जरूरी कदम नहीं उठा रहे हैं. न्यूजरूम्स को अपने पत्रकारों को इसकी ट्रेनिंग देनी चाहिए कि कैसे डिजिटल स्पाईंग से बचा जा सकता है.
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