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‘वोट बैंक की राजनीति’: राम मंदिर आंदोलन में जाति अहम

दलित मंदिरों ने राम मंदिर भूमि पूजन के लिए मिट्टी भेजी

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30 साल पहले 10,000 किमी लंबी रथ यात्रा देश के राजनीतिक विमर्श को मंडल से मंदिर पर ले गई थी. अब 2020 में अलग-अलग दलित मंदिरों से अयोध्या में बनने जा रहे राम मंदिर की नींव में डालने के लिए मिट्टी लाई गई है.

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1990 से 2020 के बीच देश ने खून-खराबे से भरा आंदोलन देखा, कोर्ट की लड़ाइयां, एक राष्ट्रवादी हिंदू पार्टी का केंद्र में उदय और देश के सामाजिक-सेक्युलर ताने-बाने में बदलाव देखा. लेकिन राम मंदिर आंदोलन में जाति की क्या भूमिका है और मंदिर बनाने के लिए बीजेपी और उसकी साथी पार्टियों ने पिछड़ी जातियों को साथ में लाने का काम क्यों किया है?

मंडल से मंदिर तक, आडवाणी की रथ यात्रा में जाति का लिंक

1990 में वीपी सिंह की सरकार ने मंडल आयोग की OBC और गैर-दलित पिछड़ी जाति के हिंदुओं के लिए सरकारी नौकरी में हर स्तर पर 27% आरक्षण की सिफारिश मान ली थी. ऊंची जाति के हिंदुओं ने इस फैसले के खिलाफ प्रदर्शन शुरू कर दिया और हिंदू वोट बैंक में फूट डल गई.

मंडल कमीशन के खिलाफ विरोध के दौरान दिल्ली यूनिवर्सिटी के एक छात्र ने खुद को आग लगाने की कोशिश की. इसके बाद वीपी सिंह की सरकार को बाहर से समर्थन दे रही बीजेपी को कोई रुख अपनाने पर मजबूर होना पड़ा.

एक्सपर्ट्स का कहना है कि तत्कालीन बीजेपी अध्यक्ष एलके आडवाणी ने सोमनाथ से अयोध्या तक की 10,000 किमी लंबी रथ यात्रा का आयोजन किया, जिससे कि देश का विमर्श जाति और आरक्षण से धर्म और राम पर शिफ्ट हो जाए. रथ यात्रा का अंत बिहार में आडवाणी की गिरफ्तारी, एक राजनीतिक तौर पर अस्थिर और समुदायों में बंटे भारत और RSS-VHP की अध्यक्षता में राम मंदिर आंदोलन से हुआ.

'मरने से पहले राम मंदिर देखना चाहता हूं': 1989 में शिलान्यास करने वाला दलित कारसेवक

रथ यात्रा से एक साल पहले RSS और VHP की चुनी हुई तारीख 9 नवंबर 1989 को प्रस्तावित मंदिर के शिलान्यास का आयोजन किया गया. इसके लिए एक दलित कारसेवक को चुना गया. कई संतों की इच्छा को दरकिनार करते हुए VHP के सदस्यों और बिहार के समस्तीपुर के निवासी कमलेश्वर चौपाल ने राम मंदिर की पहली ईंट रखी थी.

सिर्फ तीस साल पहले नहीं, दलित और OBC आज भी राम के लिए लड़ने को तैयार हैं. जो कहते हैं कि राम मंदिर आंदोलन दलित-विरोधी है, वो भ्रमित हैं. 
कमलेश्वर चौपाल

कमलेश्वर चौपाल बिहार की राजनीति में हाथ आजमा चुके हैं और वो VHP के समर्पित सदस्य हैं. चौपाल कहते हैं, "मैंने अपनी जिंदगी राम मंदिर आंदोलन को समर्पित कर दी है." चौपाल राम मंदिर ट्रस्ट में इकलौते दलित सदस्य हैं.

1984 में जब दिल्ली की धर्म संसद में भगवान राम के जन्मस्थान को मुक्त कराने का प्रण लिया गया, तो उस समय मैं VHP का सदस्य था. तब से मैं अयोध्या आंदोलन का हिस्सा हूं. और मैं मरने से पहले राम मंदिर देखना चाहता हूं. 
कमलेश्वर चौपाल

दलित मंदिरों ने राम मंदिर भूमि पूजन के लिए मिट्टी भेजी

5 अगस्त को राम मंदिर भूमि पूजन से पहले VHP ने मुख्य वाल्मीकि मंदिरों और कई महत्वपूर्ण जगहों से मिटटी इकट्ठी की थी. इन जगहों में नागपुर की वो जगह शामिल है, जहां बाबासाहेब अंबेडकर ने बुद्ध धर्म अपनाया था, काशी का संत रविदास मंदिर, एमपी का तांत्या भील मंदिर, सीतामढ़ी का महर्षि वाल्मीकि आश्रम और दिल्ली का वाल्मीकि आश्रम.

VHP प्रवक्ता विनोद बंसल ने कहा, "ऐसा नहीं है कि हम खास तौर से दलित मंदिर जा रहे हैं. हम देश के हर प्रमुख हिंदू मंदिर से मिट्टी इकट्ठी कर रहे हैं. हम भेदभाव नहीं कर रहे. VHP हिंदुओं के बीच भाईचारे से काम करता है."

बंसल ने कहा कि दलित समेत कई समुदायों के महंतों को अयोध्या के राम मंदिर के लिए ट्रेन किया जा रहा है. बंसल ने कहा, "हम सभी समुदायों का योगदान चाहते हैं."

'हिंसा के समय दलित कारसेवकों को आगे किया'

जब अयोध्या आंदोलन चरम पर था, उस समय कल्याण सिंह, उमा भारती, विनय कटियार और साध्वी ऋतम्भरा जैसे कई पिछड़ी जाति के नेता इस आंदोलन में अग्रणी भूमिका निभा रहे थे.

हालांकि, राम मंदिर आंदोलन में हिस्सा लेने वाले कारसेवकों की सामाजिक संरचना पर कोई स्टडी नहीं हुई है, फिर भी कई एक्सपर्ट का मानना है कि संघ ने फुट सोल्जर के तौर पर दलित और पिछड़ी जातियों के कारसेवकों का इस्तेमाल किया.

ऐसा ही एक उदहारण भंवर मेघवंशी का है. वो एक दलित कारसेवक है, जो एक समय बाबरी मस्जिद गिराना चाहता था लेकिन अब संघ और राम मंदिर आंदोलन से उसका मोह भंग हो गया है. अपनी किताब ‘मैं एक कारसेवक था’ में मेघवंशी ने बताया है कि कैसे राजस्थान में उनके गांव के दलितों को स्कूल के स्तर पर मुस्लिमों के खिलाफ खड़ा किया जाता था.

उन्होंने क्विंट को बताया, "RSS जाहिर तौर पर एक जातिवादी संगठन है. अगर आप RSS के काडर को देखें, तो आपको ज्यादातर दलित-विरोधी, अंबेडकर-विरोधी और संविधान-विरोधी मिलेंगे. संगठन में कोई भी दलित या आदिवासी फैसला करने वाली पोजीशन पर नहीं है क्योंकि उन्हें इतना ऊपर नहीं पहुंचने दिया जाता. पहले भी संगठन ने दलित-आदिवासी को हिंसा में आगे रखा लेकिन लीडरशिप पोजीशन अपने पास रखी."

1990 में जब हम अयोध्या के लिए भीलवाड़ा से चले तो अजमेर तक हमारे साथ वरिष्ठ VHP और RSS नेता थे. जब हमने अजमेर से अयोध्या की ट्रेन ली तो उन्होंने हमें चढ़ा दिया लेकिन खुद नहीं आए. मैंने पूछा कि आपको भी हमारे साथ आना था तो उन्होंने कहा कि वो और लोगों को लेकर अयोध्या में हमसे मिलेंगे. बाद में हमारी गिरफ्तारी हुई लेकिन वो नहीं आए. 
भंवर मेघवंशी
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'उन्हें वोट से मतलब है, दलितों से नहीं'

VHP प्रवक्ता बंसल का दावा है कि संगठन ने पिछड़ी जातियों की स्थिति सुधारने का काम किया है, लेकिन कई एक्सपर्ट का मानना है कि ये 'दिखावा' है और इसका उद्देशय 'वोट बैंक की राजनीति' है.

दलित कांग्रेसी नेता उदित राज पहले बीजेपी में थे. वो कहते हैं, "हिंदुत्व संगठन दलितों से प्यार नहीं करते, वोटों से करते हैं."

अगर उन्हें दलितों से प्यार होता तो ट्रस्ट के मैनेजमेंट या अयोध्या में कोई लीडरशिप रोल दिया जाता.  
उदित राज

उदित राज ने कहा, "कई पिछड़ी जातियों ने मंदिर आंदोलन को सालों से समर्थन दिया है क्योंकि धर्म लोगों के लिए अफीम है. पिछड़ी जातियों के ज्यादातर लोगों के पास मौके नहीं होते और उन्हें चीजों की जानकारी नहीं होती. "

दलित लेखक और एक्टिविस्ट चंद्र भान प्रसाद ने कहा, "वो दलितों को पागल बनाने की कोशिश करके हिंदू वोट बैंक एक करना चाहते हैं. किसी भी जाति-विरोधी आंदोलन में RSS के हिस्सा लेने का इतिहास नहीं है."

क्या RSS ने कभी मनुस्मृति पर सवाल किया? जब भी दलितों ने सवाल किया तो उन्होंने दलितों पर हमला किया. RSS ने कभी छुआछूत के खिलाफ लड़ाई नहीं लड़ी. वो सिर्फ दिखावा करते हैं जैसे कुंभ मेले में पीएम मोदी का दलित सफाई कर्मचारी के पांव धोना.  
चंद्र भान प्रसाद

प्रसाद ने कहा, "पूरे साल हम देखते हैं कि मंदिर में घुसने को लेकर दलितों को पीटा जाता है. 2016 में उत्तराखंड में एक बीजेपी सांसद को 'ऊंची जाति के लोगों' ने मंदिर में दलितों के साथ घुसने पर पीटा था."

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