राजपथ के चारों ओर फैली सेंट्रल विस्टा रीडेवलपमेंट प्रोजेक्ट जैसी राष्ट्रीय महत्व की योजना के लिए पर्यावरण विभाग की मंजूरी इस प्रोजेक्ट के केवल एक हिस्से- न्यू पार्लियामेंट बिल्डिंग के लिए क्यों मांगी जा रही है?
यह केंद्रीय लोक निर्माण विभाग (सीपीडब्ल्यूडी) की ओर से सेंट्रल विस्टा के लिए जारी टेंडर के ठीक विपरीत है. इसमें यह कहकर निविदाएं मंगायी गयी थीं, “राष्ट्रपति भवन के गेट से इंडिया गेट तक के करीब 4 वर्ग किमी के क्षेत्रफल में सम्पूर्ण सेंट्रल विस्टा एरिया को री-प्लान करने के लिए”.
द क्विंट की ओर से एक्सक्लूसिव रूप में आवेदन के परीक्षण से पता चलता है कि “मौजूदा संसद भवन के विस्तार और पुनरोद्धार” के लिए पर्यावरण विभाग की मंजूरी मांगी गयी है. बहरहाल, जैसा कि सीपीडब्ल्यूडी टेंडर में परिभाषित किया गया है, पूरे सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट के दायरे में “नयी दिल्ली में संसद भवन का विकास/पुनर्विकास, कॉमन सेंट्रल सेक्रिटेरिएट और सेंट्रल विस्टा” आता है.
नये संसद भवन के लिए पर्यावरण की मंजूरी मांगने वाले आवेदक सीपीडब्ल्यूडी के इंजीनियर, उत्तर क्षेत्र के स्पेशल डायरेक्टर जनरल, डायरेक्टरेट जनरल और डायरेक्टरेट जनरल (प्लानिंग) तक भी द क्विंट ने पहुंचने की कोशिश की ताकि उनकी प्रतिक्रिया ली जा सके. जवाब आते ही यह स्टोरी अपडेट की जाएगी.
क्या कहता है न्यू पार्लियामेंट के लिए ग्रीन क्लीयरेंस आवेदन
नये संसद भवन के पुनरोद्धार को इन्वायरमेंट इम्पैक्ट असेसमेंट नोटिफिकेशन 2006 के शिड्यूल 8 (ए) के तहत “बिल्डिंग एंड कन्स्ट्रक्शन प्रोजेक्ट” के रूप में परिभाषित किया गया है.
आवेदन में यह स्पष्ट किया गया है कि यह प्रोजेक्ट बी2 कैटेगरी में आता है. इस श्रेणी में पर्यावरण की मंजूरी के लिए आवेदन के ईआईए नियमों के तहत दो अहम मायने हैं- प्रोजेक्ट पर सार्वजनिक सलाह-मशविरा नहीं होगा और कोई इन्वायरमेंट इम्पैक्ट असेस्मेंट (ईआईए) रिपोर्ट तैयार नहीं होगी.
पर्यावरण कार्यकर्ता राजीव सूरी के मुताबिक केवल संसद भवन के लिए पर्यावरण की मंजूरी का आवेदन “पर्यावरण के आकलन को अनिवार्य बनाने के लिए बने विभिन्न स्तरों का उल्लंघन करता है”. वे कहते हैं, “क्यूमुलेटिव इम्पैक्ट असेसमेंट यानी समग्र प्रभाव आकलन के मानक पर सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट खरा उतरता है. क्यूमुलेटिव इम्पैक्ट का मतलब होता है कि साढ़े तीन किलोमीटर के पूरे प्रोजेक्ट के कारण पर्यावरण पर जो कुछ भी प्रभाव पड़ने जा रहा है”.
पूरे सेंट्रल विस्टा के लिए क्लियरेंस एप्लीकेशन के क्या हैं मायने?
ईआईए नियमों के तहत, सारे “बिल्डिंग और कन्स्ट्रक्शन प्रोजेक्ट्स” शिड्यूल 8 (ए) के तहत आते हैं जो 20 हजार वर्ग मीटर या उससे बड़े हैं और जिसका बिल्ट अप एरिया डेढ़ लाख वर्ग मीटर है. आवेदन के मुताबिक जिसे द क्विन्ट ने परखा है, प्रस्तावित विस्तार के बाद कुल बिल्ट अप एरिया 1,04,740 वर्ग मीटर बताया गया है. इस तरह एक विशाल प्रोजेक्ट जिसमें नया संसद भवन, नया केंद्रीय सचिवालय और सेंट्रल विस्टा का पुनरोद्धार शामिल है जैसा कि सीपीडब्ल्यू के टेंडर में स्पष्ट किया गया है, इसका क्षेत्रफल डेढ़ लाख वर्ग मीटर से भी ज्यादा होगा.
ऐसे प्रोजेक्ट जो डेढ़ लाख वर्ग मीटर की सीमा से ज्यादा के होते हैं उन्हें “टाउनशिप एंड एरिया डेवलपमेंट प्रोजेक्ट्स” के रूप में वर्गीकृत किया जा सकता है और यह शिड्यूल 8 (बी) के तहत आता है. ईआईए रूल्स 2006 में 2014 में हुए एक संशोधन के मुताबिक इस शिड्यूल के तहत वर्गीकृत प्रोजेक्ट्स को श्रेणी बी1 में रखा जाएगा. इसका मतलब यह है कि उन्हें इन्वायरमेंट इम्पैक्ट असेस्मेंट रिपोर्ट की जरूरत होगी.
सेंट्रल विस्टा रीडेवलपमेंट को लेकर अस्पष्टता
बहरहाल इस बात पर ध्यान देना जरूरी है कि सेंट्रल विस्टा के प्रस्तावित पुनरोद्धार से जुड़े पूरे क्षेत्र को लेकर अस्पष्टता बनी हुई है और ईआईए रूल्स 2006 से जुड़ी कैटेगरी पर भी सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट की स्थिति अस्पष्ट है कि यह किस कैटेगरी में आएगा.
सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील संजय पारिख जिन्होंने एक एनजीओ आवेदक की ओर से केस लड़ा है, कहते हैं कि सरकार के चारधाम विकास योजना में भी पर्यावरण मंजूरी मांगी गयी थी. यह योजना उत्तराखण्ड के चार पवित्र शहरों को जोड़ने वाली है.
पारेख कहते हैं, “एक प्रोजेक्ट को समग्रता में देखे जाने की जरूरत है. इसके लिए ईआईए 2006 के नोटिफिकेशन के अनुरूप क्लियरेंस जरूरी होना चाहिए और पर्यावरण की मंजूरी से बचने के लिए इसे अलग-अलग हिस्सों में बांट कर नहीं देखा जा सकता.”
सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट को लेकर स्पष्टता का अभाव एक अलग मुद्दा है. सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च में वरिष्ठ रिसर्चर कांची कोहली जो अर्बन कन्स्ट्रक्शन प्रोजेक्ट में पर्यावरण नियमन पर काम करती हैं, इस समस्या की पहचान करते हुए आगे बताती हैं कि किस तरह से सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट को ‘टुकड़ों में बांटकर’ पर्यावरण नियमों के ‘महत्व को कमतर’ किया जा रहा है.
वह कहती हैं, “केंद्रीय विस्टा परियोजना में किस श्रेणी का संपूर्ण मूल्यांकन और निर्धारण होना चाहिए, यह तभी निर्धारित किया जा सकेगा जब पूरी बात सामने आएगी. यह परियोजना उन नियमों का भी उल्लंघन करती है, जो कहते हैं कि अगर केन्द्रीय विस्टा एक एकीकृत परियोजना है, तो आपको अलग-अलग इन्वायरमेंटल इम्पैक्ट असेस्मेंट रिपोर्ट और फिर एक इंटीग्रेटेड इन्वायरमेंटल इम्पैक्ट असेस्मेंट रिपोर्ट देना होगा.”
एक्टिविस्ट पूछ रहे हैं कि इतनी अपारदर्शिता क्यों?
एक्टिविस्ट के लिए यह भी अलग से चिंता का कारण है कि प्रस्तावित सेंट्रल विस्टा रीडेवलपमेंट प्रोजेक्ट के लिए योजनाओं में स्पष्टता का अभाव है और नये संसद भवन के लिए किसी सार्वजनिक सलाह की जरूरत भी नहीं समझी गयी. सेंट्रल विस्टा रीडेवलपमेंट की योजनाओं के लिए ‘सार्वजनिक डोमेन में बातें नहीं रखे जाने पर सूरी सवाल उठाते हैं. उनका कहना है कि अगर सार्वजनिक सलाह ली जाती तो नये संसद भवन से जुड़ी संभावित आपत्तियां सामने आ सकती थीं. वे कहते हैं, “मैं कहूंगा कि मौजूदा संसद भवन के अनुभव के साथ उन्होंने अध्ययन नहीं किया है. या फिर ऐसे आंकड़े लेकर वे नहीं आए हैं कि नये निर्माण से मौजूदा सांसदों की जरूरतें पूरी नहीं होंगी.”
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