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केजरीवाल की जीत में भी अपनी जीत क्यों देख रहा RSS? 

केजरीवाल की राजनीतिक शैली में महज 11 महीने के भीतर आए इस बदलाव को संघ अपनी जीत मानता है

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भारत
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दिल्ली विधानसभा चुनाव में अरविंद केजरीवाल की जीत में भी RSS को अपने एजेंडे की जीत दिख रही है. संघ इस बात से खुश है कि केजरीवाल ने कम से कम देश को यह संदेश तो दिया कि वह नेता हैं, लेकिन साथ में हिंदू भी हैं.

बात 20 मार्च, 2019 की है. जब अरविंद केजरीवाल एक तस्वीर ट्वीट कर विवादों में घिर गए थे. तस्वीर में हिंदुओं के प्रतीक चिह्न् स्वास्तिक के पीछे एक व्यक्ति झाड़ू ताने हुए दिखता है. इस विवादित ट्वीट के बाद न केवल केजरीवाल की शिकायत हुई थी, बल्कि उन्हें भारी आलोचनाओं का सामना करना पड़ा था. बीजेपी को भी उन पर धर्म विशेष के तुष्टीकरण के आरोपों को और मजबूती से चिपकाने का मौका मिला था.

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यही अरविंद केजरीवाल दिल्ली विधानसभा चुनाव में बदले-बदले नजर आए. चुनाव में उन्हीं हिंदू प्रतीकों को भुनाते नजर आए, जिनके अपमान पर कभी घिरे थे. चुनाव के दौरान सॉफ्ट हिंदुत्व की पिच पर बैटिंग कर हनुमान भक्त बन गए. मतदान से पहले कनॉट प्लेस हनुमान मंदिर जाकर दर्शन-पूजन किए तो जीत के बाद भी माथा टेकने पहुंचे.

केजरीवाल में आए इस बदलाव को संघ अपनी जीत मानता है

केजरीवाल ने जीत का श्रेय भी हनुमान जी को देते हुए कहा था, "आज मंगलवार है और हनुमान जी का दिन है. हनुमान जी ने दिल्ली पर कृपा बरसाई है. मैं इसके लिए उन्हें भी धन्यवाद देता हूं. आज मेरी पत्नी का जन्मदिन है. हम प्रार्थना करते हैं कि हनुमान जी हमें सही रास्ता दिखाते रहें, ताकि हम अगले पांच सालों तक लोगों की सेवा करते रहें."

केजरीवाल की राजनीतिक शैली में महज 11 महीने के भीतर आए इस बदलाव को संघ अपनी जीत मानता है. दिल्ली विधानसभा चुनाव में केजरीवाल की जीत में भी आरएसएस को अपने एजेंडे की जीत दिख रही है.

आरएसएस के एक वरिष्ठ प्रचारक ने आईएएनएस से कहा कि चुनाव के दौरान मंदिर जाकर केजरीवाल ने जाने-अनजाने में ही सही, कम से कम देश को यह संदेश दे ही दिया कि वह नेता हैं, लेकिन साथ में हिंदू भी और मैं हिंदू पहचान के साथ जीने में शर्म नहीं, सम्मान समझते हैं."

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"बीजेपी ही हिंदुत्व की ठेकेदार नहीं"

आरएसएस पर 40 से अधिक किताबें लिख चुके नागपुर के संघ विचारक दिलीप देवधर ने आईएएनएस से कहा, "यह मोदी-शाह के दौर में हिंदुत्व की छतरी तले जातियों में बंटे बहुसंख्यकों को एकजुट करने की कोशिशों का ही नतीजा है कि सबको उसी हिंदू लाइन पर आकर बताना पड़ रहा है कि मैं हिंदू हूं. देश में सबने एक दौर ऐसा भी देखा है, जब राजनीतिक दलों के नेताओं में टोपियां पहनने की होड़ थीं और मंदिरों का चक्कर लगाते नेता कम दिखते थे."

संघ सूत्रों का मानना है कि मोदी-शाह के दौर में हिंदुत्व के मुद्दे पर बीजेपी इतनी हार्डलाइनर हुई है कि अब दूसरे दल भी हिंदू प्रतीकों से अपने जुड़ाव को सार्वजनिक करने को मजबूर हुए हैं. बिहार में लालू यादव के बेटे तेज प्रताप शिवभक्त बने घूमते हैं तो ममता बनर्जी को भी दुर्गा पूजा कमेटियों को आर्थिक मदद देने का दांव चलती हैं.

संघ के एक वरिष्ठ प्रचारक ने आईएएनएस से कहा-

“हिंदू संस्कृति को मानने वाले हर व्यक्ति को हम अपना मानते हैं. चाहे वह कांग्रेस का हो या फिर आम आदमी पार्टी का. हम बेशक बीजेपी को हिंदूहितों के साथ खड़ी पार्टी मानते हैं, मगर इसका मतलब यह नहीं कि बीजेपी ही हिंदुत्व की ठेकेदार है. केजरीवाल की राजनीति अच्छी हो या बुरी मगर उन्होंने हनुमान मंदिर जाकर हिंदू प्रतीकों और संस्कृति का सम्मान किया है.”

उन्होंने कहा, "दूसरे दलों में भी बहुत से ऐसे लोग हैं जो संघ की विचारधारा का समर्थन करते हैं, मगर राजनीतिक मजबूरियों के कारण नहीं कर पाते, हम भी उनकी मजबूरी समझते हैं."

संघ प्रचारक ने आरएसएस के महासचिव (सरकार्यवाह) सुरेश भैयाजी जोशी के बीते नौ फरवरी को दिए एक बयान का भी हवाला दिया, जिसमें उन्होंने कहा था, "हिंदू का मतलब बीजेपी नहीं है और बीजेपी का विरोध करने का मतलब हिंदुओं का विरोध करना नहीं है. राजनीतिक लड़ाई को हिंदुओं से जोड़ना ठीक नहीं."

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