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पाकिस्तानी आतंकी के साथ दिखी इंशा जान के गांव से ग्राउंड रिपोर्ट  

NIA के आरोपों के मुताबिक इंशा जान और उसके पिता ने जैश-ए-मोहम्मद के आतंकवादियों का साथ दिया था

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भारत
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नसीमा बानो ने अब तक वो तस्वीर नहीं देखी है जिसमें उनकी 23 साल की बेटी इंशा जान एक टॉप पाकिस्तानी आतंकवादी के साथ दाहिने हाथ में एक बड़ा ऑटोमैटिक रायफल और बाएं हाथ में पिस्टल लेकर बैठी दिख रही है.

45 साल की गृहिणी नसीमा ने बताया कि “जब से इंशा जान गिरफ्तार हुई है तब से मैंने उसे नहीं देखा है, उसकी तस्वीर भी नहीं देखी है”

“अगर मैंने तस्वीर देखी तो मुझे उसकी और ज्यादा याद आएगी और मुझे रोना आएगा. मैं उससे मिलना चाहती हूं लेकिन कोविड लॉकडाउन के कारण मिल नहीं सकती.”
नसीमा बानो
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पांच महीनों से भी ज्यादा समय से इंशा और उसके ट्रक ड्राइवर पिता पीर तारिक शाह श्रीनगर की सेंट्रल जेल में कैद हैं.

NIA के आरोपों के मुताबिक इंशा जान और उसके पिता ने जैश-ए-मोहम्मद के आतंकवादियों का साथ दिया था
नसीमा बानो, साउथ कश्मीर के पुलवाजा जिले के अपने घर में
(Photo: The Quint)

NIA की ओर से उनपर लगाए गए आरोपों के मुताबिक दोनों ने जैश-ए-मोहम्मद के उन आतंकियों का साथ दिया था जिन्होंने पिछले साल कश्मीर में जानलेवा आत्मघाती हमले को अंजाम दिया जिसने भारत और पाकिस्तान को युद्ध के कगार पर ला दिया था.

तस्वीर में इंशा के साथ दिख रहा पाकिस्तानी आतंकवादी मोहम्मद उमर फारूक है जो जैश के मुखिया मसूद अजहर का भतीजा और पुलवामा हमले का मुख्य साजिशकर्ता है जिसने NIA के मुताबिक अफगानिस्तान में हथियार चलाने की ट्रेनिंग ली थी.

29 मार्च, 2019 को सुरक्षा बलों के साथ मुठभेड़ में फारूक जैश के एक और आतंकी और IED विशेषज्ञ कामरान के साथ मारा गया था.

नसीमा इस बात को स्वीकार करती है कि आतंकवादी पुलवामा के हिकरीपोरा गांव के उनके घर “दो या तीन” बार आए थे. अधूरे बने एक मंजिला घर में चार भाई एक साथ रहते हैं जिसमें तीन की शादी हो चुकी है और उनके बच्चे भी हैं.

उनके पांच लोगों के परिवार को इस घर में रहने के लिए दो कमरे और एक किचन मिला था.

NIA के आरोपों के मुताबिक इंशा जान और उसके पिता ने जैश-ए-मोहम्मद के आतंकवादियों का साथ दिया था
पीर तारिक शाह का मकान, NIA के मुताबिक 14 फरवरी के हमले के बाद जहां वीडियो रिकॉर्ड किया गया था 
“ जब वे (आतंकवादी) पहली बार आए, तो हमने उन्हें साफ-साफ कह दिया था कि हमारे पास जगह नहीं है, व्यक्तिगत तौर पर मुझे उनकी उपस्थिति अच्छी नहीं लगी थी”
नसीमा बानो
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गांव वाले हैरान

इस साल की शुरुआत में पिता-बेटी की गिरफ्तारी की खबर से हिकरीपोरा के लोग हैरान थे. अब, गांव में लोगों को भरोसा नहीं हो रहा है कि NIA ने उन पर अर्धसैनिक बलों के 40 से ज्यादा जवानों की हत्या के मामले में सह-साजिशकर्ता होने का आरोप लगाया है.

उनके घर जाने के रास्ते में मेरी मुलाकात एक जवान लड़की से हुई जिसने क्लास 10 की पढ़ाई पूरी न कर पाने वाली इंशा को जानने का दावा किया. ये लड़की जो अपना नाम नहीं बताना चाहती थी उसका कहना था कि वो और इंशा दोनों एक ही क्लास में पढ़ते थे.

उसका कहना था कि “ वो हम में से ज्यादातर लोगों की तरह एक साधारण लड़की थी. उसमें ऐसा कुछ भी नहीं था जिससे पता चल सके कि वो ऐसा काम करेगी. उसके स्कूल छोड़ने के बाद हमारी बातचीत बंद हो गई. जब NIA ने उसे गिरफ्तार किया तो मुझे पता चला कि वो कभी मेरे क्लास में थी.”

सेब के घने बागों और धान के खेतों के बीच बसे हिकरीपोरा गांव के मेन रोड पर स्थित एक दुकान के सामने बैठे कुछ बुजुर्गों से मैं मिला जिन्होंने पिता और बेटी के बारे में दबी जुबान में बात की.

बड़े सलीके के दाढ़ी बनाए एक बुजुर्ग ने कहा “मैंने उसे कभी बाजार में नहीं देखा लेकिन मेरी बेटी बताती है कि वो दिन में पांच बार नमाज पढ़ती थी”. ये कहते हुए बुजुर्ग की आंखों से आंसू गिरने लगे.

पिछले साल जब इंशा की बहन बिल्कीस जान (26) की शादी हो रही थी तभी उनके दादा, जो बहुत बीमार थे, उनकी परेशानी बढ़ गई. उन्हें श्रीनगर में एक सुपर स्पेशियालिटी अस्पताल में भर्ती कराया गया और बाद में उनकी मौत हो गई.

बिल्कीस ने द क्विंट को बताया कि “अस्पताल जाने के पहले इंशा ने मुझसे माफी मांगी. उसने मेरी शादी में शामिल होने के बदले अपने दादा के पास अस्पताल में रहने को प्राथमिकता दी. वहां उनके कपड़े धोने के लिए कोई नहीं था तो मल-मूत्र के कारण गंदे हो जाते थे.”

रहस्यमयी बदलाव

नसीमा के मुताबिक इंशा के पिता पीर तारिक शाह के परिवार में इससे पहले कोई भी आंतकवादी गतिविधियों में शामिल नहीं रहा. तारिक और उनके दो भाइयों ने कुछ पैसे जोड़कर कुछ साल पहले मेकैनिकल लोड कैरियर खरीदा था जिसकी कमाई से उनका परिवार चल रहा है.

नसीमा ने बताया कि उनके परिवार के पास थोड़ी जमीन भी है लेकिन उसमें उतना धान नहीं हो पाता जिससे साल भर की जरूरत पूरी हो सके. 2018 में जब आतंकवादी लाल ईंटों से बने उनके घर आए थे तो वो हैरान नहीं हुई थी.

नसीमा ने आगे कहा कि “हम डरे हुए थे. उनके पास बंदूकें थी. हम हथियारबंद आतंकवादियों को न कहने की हिम्मत कैसे जुटा पाते? हमने (NIA) को साफ बता दिया है कि हम मजबूर थे.”

NIA के इस दावे के बारे में पूछे जाने पर कि पुलवामा के आत्मघाती हमलावर आदिल डार का वीडियो उनके घर में शूट किया गया था, नसीमा का कहना था कि “हमें नहीं पता. आतंकवादी आते थे और बगल वाले कमरे में खुद को बंद कर लेते थे. जब तक उन्हें जरूरत नहीं होती थी वो किसी को अंदर आने नहीं देते थे. ”

शुरुआत में इस मामले की जांच करने वाले एक अधिकारी के मुताबिक जैश के आतंकवादी 2018 और 2019 में हिकरीपोरा के उनके घर 10 से अधिक बार आए और कई बार दो से तीन दिन तक वहां रहे.

पहचान छुपाने की शर्त पर शाह परिवार के एक पड़ोसी ने द क्विंट को बताया कि पास के गांवों में अक्सर आतंकवादी आते रहते हैं. उन्होंने कहा कि “कुछ लोग आतंकवादियों का समर्थन करते हैं, इसे दुर्भाग्य कहें या जो कुछ भी, इंशा जान पकड़ी गई.”

नसीमा का दावा है कि उनके पति सहित घर के सभी पुरुष आतंकवादियों के आते ही भाग जाते थे. “ वो कमजोर दिल के हैं. मुझे डर है कि कहीं जेल में उनकी मौत न हो जाए. जब भी फोन पर उनसे बात होती है तो वो अक्सर रोने लगते हैं. वो जानते हैं कि जेल में रहना आसान नहीं होगा.”

घर में पुरुषों के नहीं रहने पर महिलाओं ने उनकी जगह ले ली थी. उन्होंने कहा कि “ आतंकवादी जो चाहते थे वो मुहैया कराने के अलावा हमारे पास कोई और विकल्प ही नहीं था. इंशा और उसकी बहन आतंकवादियों के काम करती थी. मैं कभी भी उनके कमरे में दाखिल नहीं हुई और उन्होंने (आतंकवादियों) ने कभी मुझसे बात नहीं की.”

धीमा बोलने वाली नसीमा, इस बात को स्वीकार नहीं कर पा रही हैं कि उनकी बेटी की तस्वीर जैश के मुखिया के भतीजे उमर के साथ है. उनका कहना है कि इंशा को तस्वीर खिंचवाना पसंद नहीं था.

नसीमा ने कहा कि “परिवार की दूसरी महिलाएं जो तस्वीर खिंचवाती थी, वो उनपर गुस्सा हो जाती थी”

उन्होंने कहा कि “मुझे नहीं पता वो कैसे बहक गई. वो एक बच्ची थी. शायद बाकी सभी की तरह वह हाथों में बंदूक पकड़ने पर अच्छा महससू कर रही हो. या हो सकता है उस पर दबाव बनाया गया होगा. सिर्फ वही जानती है कि उसने ऐसा क्यों किया.”

(नसीमा ने घटनाओं पर जो कहानी सुनाई है वो हमें ये नहीं बताती है कि उनकी बेटी जानबूझकर इसमें साथी थी या वो हिंसा में विश्वास रखती थी.)

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