ADVERTISEMENTREMOVE AD

महिला दिवस विशेष: मानसिक समस्याओं से जूझ रही महिलाओं के लिए उम्मीद बनीं अन्विता

Women's Day Special: गर्भावस्था महज हंसी खुशी से नहीं जुड़ी है, इससे जुड़े मानसिक संघर्ष से महिलाएं जूझती रहती हैं

Published
story-hero-img
i
छोटा
मध्यम
बड़ा

बेंगलुरू में रहने वाली 22 साल की अन्विता नायर पेशे से एक ऐनेलिस्ट हैं. इंजीनियरिंग से मेंटल हेल्थ एक्टिविस्ट बनने का उनका सफर न केवल दिलचल्प है, बल्कि उनके अपने संघर्षों और उनसे उबरने की एक लंबी दास्तान है. अन्विता ने पिछले साल पेटीशन प्लेटफॉर्म Change.org पर एक पेटीशन शुरू कर कर्नाटक सरकार से मांग की कि गर्भवती महिलाओं के मानसिक स्वास्थ्य की स्क्रीनिंग की जाए.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

गर्भावस्था सिर्फ हंसी खुशी तक नहीं है सीमित

अन्विता #BeatTheBlues नाम से डिजिटल मुहिम चला रही हैं. इस डिजिटल मुहिम से अन्विता एक साथ दो मुद्दों पर लोगों का ध्यान लाना चाहती थीं. पहला मुद्दा है मानसिक स्वास्थ्य, जिसपर उनके अनुसार अभी भी बहुत खुलकर बात करने की जरूरत है और दूसरा मुद्दा है गर्भवती महिलाओं में मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी परेशानियों पर समाज और मेडिकल व्यवस्था की चुप्पी.

अन्विता कहती हैं,

"समाज, मीडिया और पॉपुलर कल्चर ने गर्भावस्था को ऐसा रंग दे दिया है मानो इसमें हर बात हंसी खुशी की ही बात है, पर सच्चाई इससे कहीं अलग है. गर्भवती महिलाओं की एक अच्छी खासी संख्या डिप्रेशन या ऐसी ही गंभीर बीमारी से गुजरती है और उन्हें पता तक नहीं होता."

अन्विता आगे कहती हैं, "गर्भावस्था के दौरान लगभग 12-25% महिलाएं मेंटल हेल्थ संबंधी समस्याओं का सामना करती हैं. दिक्कत ये है कि जब वो समस्या बताती भी हैं तो परिवार वाले ही कह देते हैं कि कुछ नहीं, थोड़ा हवा खा लो सब ठीक हो जाएगा. मेरा बस चले तो देश के हर अस्पताल के हर मैटरनिटी वार्ड में पोस्टर लगा आऊं कि गर्भवती महिला को भी डिप्रेशन हो सकता है."

कम समय में ही जुटाया समर्थन

अन्विता की पेटीशन ने कुछ ही समय में लगभग 11,000 लोगों का समर्थन प्राप्त किया और उन्होंने स्वास्थ्य आयुक्त से भेंट कर के इस मुद्दे पर स्क्रीनिंग की इसके साथ ही स्वास्थ्य कर्मियों के प्रशिक्षण और जागरूकता अभियान पर काम किया और इसे प्राइवेट अस्पतालों तक पहुंचाने की गुहार लगाई. अन्विता की ये पेटीशन इस मुद्दे पर जागरूकता के लिए बहुत कारगर साबित हुई.

खुद डिप्रेशन से उबरकर दूसरों को उबारा

अन्विता ने 17 की उम्र में खुद डिप्रेशन का सामना किया था, जब उनकी बहुत करीबी दोस्त की खुदकुशी से मौत हो गई थी. अपनी दोस्त को खोना और फिर खुद अपने मानसिक स्वास्थ्य को लेकर किए गए संघर्ष अन्विता के मेंटल हेल्थ एक्टिविस्ट बनने की सबसे बड़ी वजह बन गईं. इस घटना ने अन्विता को इस दिशा में काम करने की प्रेरणा दी.

मेंटल हेल्थ पर केंद्रित वेबसाइट की शुरुआत

अन्विता को इस बात का अहसास है कि मीडिया में मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दे पर होने वाली कवरेज कितनी कम है, इसलिए उन्होंने 2020 में ही ‘पैट्रोन्यूज’ मेंटल हेल्थ नाम से एक वेबसाइट की भी शुरुआत की. इस वेबसाइट के माध्यम से अन्विता मानसिक स्वास्थ्य के प्रति लोगों को जागरूक करना चाहती हैं.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

समाज का दोहरा रवैया बेहद खतरनाक

महिला दिवस पर वो महिलाओं के मानसिक स्वास्थ्य को लेकर समाज के दोहरे रवैये पर भी सवाल उठाती हैं,

"इधर कुछ वर्षों में मेंटल हेल्थ को लेकर चीजें बदली हैं, पर जब बात महिलाओं के मानसिक स्वास्थ्य की हो तो हमने अभी आधा रास्ता भी नहीं तय किया है. जब एक महिला कहे कि वो डिप्रेस्ड है, तो उसे समाज से सपोर्ट कम और ब्लेम ज्यादा मिलता है. इसे मिलकर ही बदलना होगा."

चुप्पी तोड़ने से आएगा बदलाव

अन्विता के मुताबिक, लड़कियों को अक्सर चुप रहने के लिए कहा जाता है जिसके कारण वो अपनी बातें खुलकर नहीं कर पातीं. लेकिन देश की आधी आबादी अपने मानसिक स्वास्थ्य को लेकर चुपचाप संघर्ष करती रहे ये उनको बर्दाश्त नहीं, इसलिए वो बोलती हैं, इस उम्मीद में कि उनको देखकर और लोग भी बोलेंगे.

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

सत्ता से सच बोलने के लिए आप जैसे सहयोगियों की जरूरत होती है
मेंबर बनें
×
×