16 अक्टूबर को पूरी दुनिया 'वर्ल्ड फूड डे' के तौर पर मनाती है. भारत जैसे विकासशील देशों में खेती-किसानी के विकास के लिए जरूरी 'खाद्य और कृषि संगठन' (FAO) की स्थापना 16 अक्टूबर, 1945 को कनाडा में की गई थी. लेकिन इससे दुनिया में क्या बदला अभी इसका आकलन बाकी है.
अभी हाल ही में 'ग्लोबल हंगर इंडेक्स' जारी किया गया था. इसमें दुनिया के कई देशों में खानपान की स्थिति का ब्योरा होता है. रैंकिंग भी जारी की जाती है. जीएचआई में भारत इस बार और नीचे गिरकर 103वें रैंक पर पहुंचा है. भारत के लिए परेशान करने वाली बात ये है कि इस सूची में कुल 119 देश ही हैं.
हर साल गिरती रैंकिंग परेशान नहीं करती?
यकीनन साल दर साल रैंकिंग में आई गिरावट परेशान करने वाली है.बेशक भूख अब भी दुनिया में एक बड़ी समस्या है और इसमें कोई झिझक नहीं कि भारत में दशा बदतर है. हम चाहे तरक्की और विज्ञान की कितनी भी बात कर लें, लेकिन भूख के आंकड़े हमें चौंकाते भी हैं और सोचने को मजबूर कर देते हैं. केवल मौजूदा आंकड़ों का ही विश्लेषण करें तो स्थिति की भयावहता और भी परेशान कर देती है.
दुनिया में हालत खराब, भारत में बदतर
- दुनियाभर में जहां करीब 50 लाख बच्चे कुपोषण के चलते जान गंवाते हैं
- गरीब देशों में 40 फीसदी बच्चे कमजोर शरीर और दिमाग के साथ बड़े होते हैं.
- संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट बताती है कि दुनिया में 85 करोड़ 30 लाख लोग भुखमरी का शिकार हैं.
- अकेले भारत में भूखे लोगों की तादाद लगभग 20 करोड़ से ज्यादा है
- FAO की एक रिपोर्ट बताती है कि रोजाना भारतीय 244 करोड़ रुपए यानी पूरे साल में करीब 89060 करोड़ रुपये का खाना बर्बाद कर देते हैं.
- इतनी राशि से 20 करोड़ से कहीं ज्यादा पेट भरे जा सकते हैं, लेकिन इसके लिए न कोई जागरूकता है न ही कोई सरकारी योजना
- इसका मतलब यह हुआ कि भारत की आबादी का लगभग पांचवां हिस्सा कहीं न कहीं हर दिन भूखा सोने मजबूर है, जिससे हर वर्ष लाखों जान चली जाती है।
- 'ग्लोबल हंगर इंडेक्स' के आंकड़ों को सच मानें तो रोजाना 3000 बच्चे भूख से मर जाते हैं. इसका मतलब यह हुआ कि भूखे लोगों की करीब 23 फीसदी आबादी अकेले भारत में है, यानी हालात अमूमन उत्तर कोरिया जैसे ही है.
शायद यही कारण है कि भारत में पांच साल से कम उम्र के 38 प्रतिशत बच्चे सही पोषण के अभाव में जीने को मजबूर हैं और इसके चलते उनके मानसिक और शारीरिक विकास, पढ़ाई लिखाई और बौद्धिक स्तर पर बुरा प्रभाव पड़ता है.
भूख के आंकड़ों के हिसाब से भारत की स्थिति नेपाल और बांग्लादेश जैसे पड़ोसियों से भी बदतर है. इस बार बेलारूस जहां शीर्ष पर है, वहीं पड़ोसी चीन 25वें, श्रीलंका 67वें और म्यांमार 68वें बांग्लादेश 86वें और नेपाल 72वें रैंक पर है। तसल्ली के लिए कह सकते हैं कि पाकिस्तान हमसे नीचे 106वें पायदान पर है.
तस्वीर का दूसरा पहलू बेहद हैरान करता है, क्योंकि ये आंकड़े तब आए हैं जब भारत गरीबी और भूखमरी को दूर कर विकासशील से विकसित देशों की कतार में शामिल होने के खातिर जोर-शोर से कोशिश कर रहा है.
सरकार का दावा और सच्चाई
एक ओर सरकार का दावा है कि तमाम योजनाएं चलाई जा रही हैं, नीतियां बना रही हैं और उसी हिसाब से काम किए जा रहे हैं. स्वराज अभियान की याचिका पर 2016 में सुप्रीम कोर्ट ने भूख और अन्न सुरक्षा के मामले में केंद्र और राज्य सरकारों की बेरुखी को लेकर कम से कम 5 बार निर्देश दिए. ये तक कहा कि संसद के बनाए ऐसे कानूनों का क्या उपयोग जिसे राज्य और केंद्र की सरकारें लागू ही न करें! इशारा कहीं न कहीं नेशनल फूड सिक्योरिटी एक्ट 2013 के लिए सरकार की बेरूखी पर था.
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