विवेकहीन अहंकारी होता है. अहंकारी को आलोचना पसंद नहीं होती. अपनी झूठी आलोचना ही पसंद करता है. वर्तमान में लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ की स्थिति दयनीय है. देश में डराने धमकाने का दौर जारी है. सबसे बदतर स्थिति ग्रामीण क्षेत्र में पत्रकारिता करने वालों की है. ऐसे में जरूरी है कि World Press freedom day पर ग्रामीण पत्रकारिता और ग्रामीण पत्रकारों की भी बात हो. और इसके लिए मैं हाल ही में चर्चा में रहे यूपी के बलिया पेपर लीक मामले में पत्रकारों पर हुए मकदमे का जिक्र करना चाहता हूं.
बलिया पेपर लीक केस में क्या हुआ?
बलिया में दोषियों पर कार्रवाई के बजाए सच उजागर करने वाले तीन पत्रकारों पर फर्जी मुकदमा कायम करने के साथ 28 दिनों तक जेल में रखा गया. जब इस दमन का विरोध शुरू हुआ तो पत्रकारों के ऊपर से कुछ आपराधिक धाराएं हटा तो ली गईं, लेकिन अभी मुकदमा कायम है.
पत्रकारों पर मुकदमा क्यों इतना गंभीर है, इसे समझने के लिए आपको बलिया में पेपर लीक की कहानी जरा डिटेल में समझनी होगी. बलिया जिले में नकल का खेल पुराना है. नकल के खेल का व्यवसाय करोड़ों में फलता फूलता है.
2022 में यूपी बोर्ड परीक्षा शुरू होने से पहले ही शिक्षा महकमे की साठगांठ से नकल माफियाओं ने नकल का तानाबाना बुनना शुरू कर दिया. यह खेल परीक्षा केंद्र बनाने से शुरू होता है. खेल में तहसील से लेकर जिले के आला अफसर तक शामिल हैं. जिले से तहसील को जांच मिलती है. नकल माफिया जांच के दौरान तहसील से मनमाफिक रिपोर्ट लगवा लेता है. फिर शिक्षा महकमे में उसे कोई दिक्कत नहीं होती. क्योंकि वह शिक्षा महकमे का एक हिस्सा है.
शिक्षा महकमा परीक्षा केंद्र निर्धारण हेतु जिलाधिकारी की अध्यक्षता में एक समिति बनाता है और जिलाधिकारी के हस्ताक्षर से ही परीक्षा केंद्र बनाए जाते हैं तथा परीक्षा की सुचिता बरकरार रहे, जिला प्रशासन केंद्र बनाते वक्त इसका ध्यान नहीं रखता है. जिसका नतीजा कि नकल माफिया नकल के कारोबार में सफल हो जाते हैं. इस साल भी परीक्षा शुरू होने से पहले ही बोर्ड परीक्षा की डुप्लीकेट कापियां बिकने लगीं.
23 मार्च को अखबार में पेपर लीक की खबर को प्रमुखता से प्रकाशित किया गया. किन्तु जिला प्रशासन पर कोई असर नहीं हुआ. 24 मार्च से यूपी बोर्ड परीक्षा शुरू हो गई. परीक्षा शुरू होते ही नकल का कारोबार भी शुरू हो गया. परीक्षा की सुचिता तार-तार होते देख मीडियाकर्मियों ने अपने सूत्रों से 28 मार्च की रात हाईस्कूल संस्कृत का साल्व पेपर हासिल कर लिया.
29 मार्च को सुबह की पाली में संस्कृत का पेपर था. किन्तु सोशल मीडिया व चैनल पर कई घंटे पहले ही वायरल होने लगा लेकिन परीक्षा से पूर्व वायरल हो रहे साल्व पेपर को जिला प्रशासन मानने से इंकार कर दिया और संस्कृत की परीक्षा भी सम्पन्न करा दी. इसी बीच 30 मार्च को द्वितीय पाली में होने वाली इंटर अंग्रेजी का पेपर भी वायरल होने लगा. मीडिया में छपा.
जिला प्रशासन ने अपनी कलई खुलते देख आनन फानन में तीन पत्रकारों को हिरासत में लेने के बाद मुकदमा कायम कर जेल भेज दिया. यदि जिला प्रशासन ने 23 मार्च के अखबार में प्रकाशित पेपर को संज्ञान में लिया होता तो संभवतः संस्कृत और अंग्रेजी का प्रकरण सामने नहीं आता लेकिन जिला प्रशासन को परीक्षा की सुचिता का ध्यान नहीं था.
अकेला लड़ता ग्रामीण पत्रकार
प्रशासन ग्रामीण क्षेत्र में पत्रकारों का उत्पीड़न शुरू करता है तो संस्थान की कौन कहे, बड़े शहरों में पांच सितारा संस्कृति के पत्रकार ग्रामीण क्षेत्र के पत्रकारों के लिए एक शब्द मुंह से निकालना भी अपना अपमान समझते हैं. ये अपनी उच्चाइयां सत्ता की 'गणेश परिक्रमा' से मापते हैं, जबकि आज धन से मुंह बन्द करने में असफल शक्तियां हत्या तक करने से परहेज नहीं कर रही हैं. ग्रामीण इलाकों में दबे कुचलों की आवाज उठाने वाले पर मुकदमा कायम कर दमन करने का दौर जारी है.
यदि सूबे की सरकार विवेकशील होती या अपने विवेक का परिचय देती तो लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ का दमन नहीं होता लेकिन ग्रामीण क्षेत्र के पत्रकारों को जिले के आला अफसर तवज्जो नहीं देते, जब कि ग्रामीण इलाके की खबरें इनके बदौलत ही जिले तक पहुंचती हैं.दिग्विजय सिंह
जब ग्रामीण इलाकों की खबरें ग्रामीण पत्रकार उठाता है तो पुलिस के जरिए दमन शुरू हो जाता है. इस स्थिति में ग्रामीण क्षेत्र का पत्रकार अकेला पड़ जाता है. बड़े शहरों में बैठे पत्रकार ग्रामीण क्षेत्र के मामले को तवज्जो नहीं देते हैं. पहली बार बलिया के पत्रकारों के मामले को लेकर जिले के सभी पत्रकारों में एकजुटता दिखी. जिससे प्रशासन बैक फुट पर आ गया. काश! ऐसी ही एकजुटता पांच सितारा होटलों में बैठने वाले भी दिखाते तो पत्रकारों का दमन नहीं होता.
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