विश्व आदिवासी दिवस (world tribal day) के मौके पर छत्तीसगढ में कई तरह के कार्यक्रमों का आयोजन किया जाएगा. मुख्यमंत्री भूपेश बघेल खुद कई कार्यक्रमों में शिरकत करने वाले हैं. छत्तीसगढ़ सरकार का संस्कृति विभाग विश्व आदिवासी दिवस के मौके पर आदिवासी समुदाय की संस्कृति पर तीन दिवसीय फोटो प्रदर्शनी का आयोजन करेगा. ये प्रदर्शनी 9 अगस्त से शुरू होगी.
छत्तीसगढ़ में 42 अनुसूचित जनजातियां
छत्तीसगढ़ राज्य में 42 अधिसूचित जनजातियां और उनके उप समूह रहते हैं. प्रदेश की सबसे अधिक जनसंख्या वाली जनजाति गोंड़ है जो पूरे प्रदेश में फैली है. राज्य के उत्तरी अंचल में जहां उरांव, कंवर, पंडो जनजातियों का निवास है तो वहीं दक्षिण बस्तर अंचल में माडिया, मुरिया, धुरवा, हल्बा, अबुझमाडिया, दोरला जैसी जनजातियों की बहुलता है. यहां के जनजातियों की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत रही है, जो उनके दैनिक जीवन तीज-त्यौहार एवं धार्मिक रीति-रिवाज और परंपराओं के माध्यम से अभिव्यक्त होती है.
आदिवासी समुदाय के आजादी से पहले भी हुए कई आंदोलन
छत्तीसगढ़ में पहला आदिवासी आंदोलन हल्बा विद्रोह 1774 ई में हुआ था. जिसका नेतृत्व अजमेर सिंह के नेतृत्व में हुआ था. छत्तीसगढ़ में मुख्यमंत: आदिवासी जनजातीय आंदोलन बस्तर में हुए थे. वैसे भारत की आजादी के आंदोलन की शुरुआत 1857 से मानी जाती है लेकिन बस्तर में 1825 ई. में नारायणपुर तहसील के परलकोट के जमीदार गेंद सिंह ने अंग्रेजों और मराठों के खिलाफ विद्रोह किया था. जिसे परलकोट के विद्रोह के नाम से जाना जाता है.
झारखंड में भी होंगे कई कार्यक्रम
दो दिवसीय झारखंड (Jharkhand) जनजातीय महोत्सव (Jharkhand Tribal Festival) 9 अगस्त से शुरू होगा और रांची (Ranchi) के मोरहाबादी मैदान में इसका आयोजन होगा. मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने पिछले सप्ताह महोत्सव के लोगो लांच किया था.
झारखंड सरकार के अनुसूचित जनजाति, अनुसूचित जाति, अल्पसंख्यक एवं पिछड़ा वर्ग कल्याण विभाग द्वारा मोरहाबादी मैदान में दो दिवसीय कार्यक्रम की तैयारी चल रही है. आदिम जाति कल्याण आयुक्त मुकेश कुमार और उपायुक्त रांची राहुल कुमार सिन्हा ने 9 अगस्त और 10 अगस्त को होने वाले इस कार्यक्रम की तैयारियों की समीक्षा कर ली है.
आदिवासी दिवस क्यों मनाया जाता है?
विश्व आदिवासी दिवस या विश्व के स्वदेशी लोगों का अंतर्राष्ट्रीय दिवस हर वर्ष 9 अगस्त को मनाया जाता है. इसका उद्देश्य दुनिया की स्वदेशी आबादी के अधिकारों को बढ़ावा देना और उनकी रक्षा करना है तथा उन योगदानों को स्वीकार करना है जो स्वदेशी लोग वैश्विक मुद्दों जैसे पर्यावरण संरक्षण हेतु करते हैं.
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