ADVERTISEMENTREMOVE AD

ये जो इंडिया है ना... यहां खेल संगठनों को नेता अपनी निजी संपत्ति समझते हैं

Wrestlers Protest: खेलों पर नेताओं की पकड़ खिलाड़ियों की तरफ से पहलवानों को मिलने वाले सीमित समर्थन से जाहिर है.

Published
भारत
4 min read
छोटा
मध्यम
बड़ा
ADVERTISEMENTREMOVE AD

ये जो इंडिया है ना.. यहां आइए समझते हैं कि हमारे खेल, हमारे खिलाड़ी, और हमारे खेल फेडरेशन को कौन नियंत्रित करता है? इस लिस्ट पर एक नजर डालें:

  • ऑल इंडिया टेनिस एसोसिएशन के अध्यक्ष- अनिल जैन, उत्तर प्रदेश से बीजेपी के राज्यसभा सांसद.

  • बैडमिंटन एसोसिएशन ऑफ इंडिया के अध्यक्ष- हिमंत बिस्वा सरमा, असम के मुख्यमंत्री,बीजेपी नेता

  • BCCI सचिव - जय शाह (Jai Shah), एक ऐसा चेहरा जिसे हमने अक्सर IPL के दौरान देखा है, वह भारत के गृह मंत्री, अमित शाह के बेटे हैं.

  • आर्करी एसोसिएशन ऑफ इंडिया के अध्यक्ष – अर्जुन मुंडा, केंद्रीय मंत्री, बीजेपी नेता

  • टीटी एसोसिएशन ऑफ इंडिया की अध्यक्ष- मेघना अहलावत, हरियाणा के डिप्टी सीएम दुष्यंत चौटाला की पत्नी

  • नेशनल राइफल एसोसिएशन ऑफ इंडिया के अध्यक्ष- कलिकेश नारायण सिंह देव, बीजेडी नेता

  • साइक्लिंग फेडरेशन ऑफ इंडिया के अध्यक्ष - पंकज सिंह, उत्तर प्रदेश से बीजेपी नेता

  • जूडो एसोसिएशन ऑफ इंडिया के अध्यक्ष- प्रताप सिंह बाजवा, पंजाब से कांग्रेस नेता

  • रोलर स्केटिंग फेडरेशन ऑफ इंडिया के अध्यक्ष तुलसी राम अग्रवाल भी बीजेपी से हैं.

और इन सबमें सबसे ज्यादा चर्चित रेसलिंग फेडरेशन ऑफ इंडिया (WFI) के 'दरकिनार' अध्यक्ष - बृज भूषण शरण सिंह (Brijbhushan Singh) उत्तर प्रदेश से बीजेपी के 'बाहुबली' सांसद हैं. इनपर सात भारतीय महिला पहलवानों द्वारा यौन उत्पीड़न का गंभीर आरोप लगाया गया है, फिर भी अबतक इन्होंने अपने पद को औपचारिक रूप से नहीं छोड़ा है. 

भारत के पहलवानों द्वारा महीनों चले प्रदर्शन के बावजूद बृज भूषण सिंह ने इस्तीफा क्यों नहीं दिया है? क्योंकि वह 'नेता' हैं.

भारत के खेल संघ प्रमुखों के रूप में 'नेताओं' के होने में सबसे बड़ी समस्या क्या है? 

उत्तर, एक शब्द में है, ”जवाबदेही”. यौन उत्पीड़न के आरोपों की तो बात छोड़िए, यहां तक कि रोजाना के कामकाज, ठेको के वितरण और टीमों का चयन- इन सभी कामों में जब 'नेता' हमारे खेल को चलाते हैं, तो जवाबदेही कहां है? आइए खेलों में अंतिम मानदंड को देखें, जो कि खेल के मैदान में प्रदर्शन है.

भारतीय खेलों पर नेताओं की मजबूत पकड़

  • 2020 टोक्यो ओलंपिक किसी भी ओलंपिक में भारत का सबसे शानदार प्रदर्शन था, जिसमें एक गोल्ड, दो सिल्वर, चार ब्रॉन्ज सहित सात मेडल जीते थे. इसके बावजूद हम मेडल टैली में 48वें स्थान पर थे. 

  • 2016 के रियो डी जनेरियो में हमने सिर्फ दो मेडल जीते- 1 सिल्वर, 1 ब्रॉन्ज. मेडल टैली में हम  67वें स्थान पर थे. 

अब आइए अपने 2020 के प्रदर्शन की तुलना समान देशों के साथ करें तो- ब्राजील ने टोक्यो में 21 मेडल जीते, जिसमें सात गोल्ड थे. तुर्की ने 13 मेडल जीते.  ईरान ने तीन गोल्ड जीते. जमैका की आबादी भारत की 1420 मिलियन की तुलना में सिर्फ 2.8 मिलियन है. ऐसे देश ने टोक्यो में चार गोल्ड समेत नौ मेडल जीते. 

तो इन सभी खेल फेडरेशन के अध्यक्षों को इतने सालों के खराब प्रदर्शन के लिए हम कब जिम्मेदार ठहराएंगे? क्या किसी फेडरेशन के प्रमुख ने खराब प्रदर्शन के लिये कभी अपना पद छोड़ा है? नहीं, क्या उनसे कभी पूछा गया है? नहीं. क्या आपको भविष्य में कभी उनसे सवाल करने की अनुमति दी जाएगी? संभावना नहीं. क्यों? क्योंकि वे 'नेता' हैं और जब खेल की बात आती है, तो हम लोग आश्चर्य करते हैं कि हमारे पास उनपर कोई शक्ति नहीं है.
0

एक सेकंड के लिए आइए इंग्लिश प्रीमियर लीग पर एक नजर डालते हैं. यह दुनिया में फुटबॉल के उच्चतम मानकों में से एक है, सबसे प्रतिभाशाली खिलाड़ी इसमें शामिल होना चाहते हैं, और यह सबसे अमीर लीगों में से भी एक है. क्या आप जानते हैं कि ईपीएल के 2022-23 सीजन में कितने फुटबॉल मैनेजरों की नौकरी चली गई? इसका आंकड़ा है- 14 और यह है जवाबदेही.

ये जो इंडिया है ना...यहां खेल फेडरेशन को 'बाप-दादा' की जागीर की तरह, निजी संपत्ति समझा जाता है. बृजभूषण सिंह 2011 से कुश्ती महासंघ का नेतृत्व कर रहे हैं. क्यों? क्योंकि वह 'नेता' हैं. और जैसा कि हम सभी जानते हैं, भारत में 'नेता' अपनी कुर्सी कभी नहीं छोड़ता.

भारतीय खेलों पर नेताओं की यह पकड़ जनवरी से पहलवानों के प्रदर्शन को अन्य खिलाड़ियों मिले सीमित समर्थन से जाहिर हो गई है. आईपीएल में भारत के टॉप खिलाड़ियों ने कई बार प्रेस का सामना किया. वे सोशल मीडिया पर भी ऐक्टिव हैं लेकिन भारत के पहलवानों के समर्थन में इन्होंने कोई बयान नहीं दिया क्योंकि उन्हें इन जिम्मेदारों के पक्ष में रहना है. बोलने का मतलब उनका आईपीएल का कॉन्ट्रैक्ट खोना या राष्ट्रीय, राज्य या क्लब स्तर पर आगे चयन ना होना.

असल में भारत के 'नेता' इतने होशियार रहे हैं कि वो अपने संरक्षण के 'तरीके' में कई बड़े खिलाड़ी को अपने साथ शामिल कर लेते हैं. इसलिए तेंदुलकर से लेकर मैरी कॉम, पीटी उषा तक, सभी को राज्यसभा के लिए नामित किया गया है. जिससे वे 'अर्ध-नेता' बन गए और एक बार संसद पहुंचने के बाद, उनमें से कुछ अपनी आजाद आवाज खो बैठते हैं.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

तेंदुलकर का राज्यसभा में अपने 6 सालों के दौरान उपस्थिति का रिकॉर्ड सिर्फ 7% था. इसलिए अनुपस्थिति उनकी रणनीति थी. पीटी उषा- एक बड़ीं स्पोर्ट आइकन, अब IOA प्रमुख और बीजेपी द्वारा नामित राज्यसभा सांसद हैं. क्या 'राजनीतिक हालातों' ने उन पर पहलवानों के विरोध को 'अनुशासनहीनता' का कार्य बताने का दबाव डाला? 

कई लोग कह रहे हैं. हां, बृज भूषण सिंह के मामले में निगरानी समिति का नेतृत्व करने वालीं मैरी कॉम के बारे में क्या? कमेटी की रिपोर्ट अप्रैल की शुरुआत से ही तैयार हो चुकी है, लेकिन इसे सार्वजनिक नहीं किया गया. इस देरी पर मैरी कॉम का क्या कहना है? हमें पता नहीं.

लेकिन फिर भी धीरे-धीरे, खासतौर पर 28 मई को विरोध करने वाले पहलवानों के साथ जिस तरह से बदतमीजी की गई उसके बाद कुछ स्पोर्ट आइकन ने अपनी बात रखी है.

नीरज चोपड़ा ने उनके समर्थन में कई बार ट्वीट किया है. भारत के फुटबॉल कप्तान सुनील छेत्री ने भी उनके समर्थन में ट्वीट किया है, सानिया मिर्जा, बॉक्सिंग स्टार निकहत जरीन, भारत की पूर्व हॉकी कप्तान रानी रामपाल और अभिनव बिंद्रा 'सिस्टम' के लंबे समय तक आलोचक रहे. 

पूर्व क्रिकेट खिलाड़ियों में इरफान पठान, अनिल कुंबले, वीरेंद्र सहवाग और कपिल देव भी बोले हैं. दुर्भाग्य से.. इनमें से कोई भी खेल आइकन भारत में खेल संघ नहीं चला रहे हैं, शायद उन्हें होना चाहिए. लेकिन यह तभी होगा जब 'नेता' भारत में खेलों को नियंत्रित करने का अपना जुनून छोड़ दें.

(हैलो दोस्तों! हमारे Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां)

सत्ता से सच बोलने के लिए आप जैसे सहयोगियों की जरूरत होती है
मेंबर बनें
अधिक पढ़ें
×
×