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गोरखपुरः योगी आदित्यनाथ और उनकी हिंदुत्व की प्रयोगशाला

पूर्वी उत्तर प्रदेश की राजनीति में बड़ी भूमिका अदा करता आया है गोरखनाथ मठ

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भारत
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भगवा कपड़े पहने और घुटे सिर वाला यह शख्स जब तनी हुई भृकुटी के साथ आता है तो वहां जमा हुए महिला और पुरुषों के बीच पहले हलचल मचती है और फिर खामोशी छा जाती है. वह तेजी से आकर वहां बेंत की एक कुर्सी पर बैठ जाते हैं, जिस पर मंदिर की छाया पड़ रही है. यह मंदिर उनके गुरु महंत अवैद्यनाथ के सम्मान में बन रहा है.

संत के बैठते ही वहां जमा हुए लोग हाथ से लिखी अर्जियां लेकर लाइन लगाकर खड़े हो जाते हैं. बेंत की कुर्सी पर आकर बैठने वाले शख्स यूपी के गोरखपुर के बीजेपी सांसद योगी आदित्यनाथ हैं, जो मुसलमानों के खिलाफ घृणा फैलाने और भड़काऊ भाषणों के लिए मशहूर हैं.
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एक-एक करके वे अपनी अर्जियां उन्हें पकड़ाते हैं. हालांकि, आदित्यनाथ का धीरज अर्जियों के कुछ शुरुआती पन्नों को देखकर जवाब दे रहा है. इनमें स्कूल में दाखिले के लिए मदद से लेकर सरकारी राशन दुकानों से अनाज की दरियाफ्त और इसी तरह की कुछ दूसरी मांगें की गईं हैं.

वह अर्जी लेकर आने वाले एक शख्स से भड़कते हुए कहते हैं, ‘जाइए आप. ठीक से लिखवाकर लाइए.’ एक अन्य शख्स से वह नाराजगी के साथ कहते हैं, ‘नहीं होगा.’ वह हाथ उठाकर उस इंसान को वहां से जाने के लिए कहते हैं. जिन गिने-चुने लोगों के आवेदन वह स्वीकार करते हैं, उन्हें पास खड़े एक भक्त को थमा देते हैं, जिसने भगवा कुर्ता और धोती पहन रखी है.

हालांकि, जिस कमरे में यह सब चल रहा है, वह देखने में सामान्य है. इसमें कई संतों के आदमकद पोट्रेट लगे हैं. बेंत की एक और कुर्सी के सामने एक टेबल है, जिस पर हिंदू संतों की कुछ किताबें, एक भगवा कलम और एक पियरे कार्डिन आईग्लास केस (जो चौंकाता है) रखा हुआ है. टेबल पर जो ग्लास लगा है, वह चमचमा रहा है और उस पर एक भी दाग नहीं है. कमरे के कोने में एक और टेबल रखा है, जिस पर म्यान में एक तलवार रखी है और दूसरे सामान के साथ तांबे से बना हुआ एक सांड और गाय की प्रतिमाएं हैं.
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पूर्वी उत्तर प्रदेश की राजनीति में बड़ी भूमिका अदा करता आया है गोरखनाथ मठ
(फोटोः चंदन नंदी/ द क्विंट)
पूर्वी उत्तर प्रदेश की राजनीति में बड़ी भूमिका अदा करता आया है गोरखनाथ मठ
(फोटोः चंदन नंदी/ द क्विंट)
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इस बीच, उनका एक मातहत हमारी तरफ दौड़ते हुए आता है और हमसे बिजनेस कार्ड दिखाने को कहता है. 10 मिनट से भी कम समय में आदित्यनाथ के सामने फरियाद लेकर आई भीड़ छंट जाती है और वह तेजी से कमरे के दरवाजे से बाहर निकलते हैं. उनकी नजर हम पर पड़ती है और वह हमें तौलने की कोशिश करते हैं. इस बीच, हमारे प्रति उनकी नफरत का राज उनके होंठ खोल देते हैं और वह भारी आवाज में कहते हैं, ‘निकलिए यहां से.’

गोरखपुर और पूर्वी उत्तर प्रदेश के दूसरे इलाकों में भोजपुरी बोलने वाले आम लोगों की भाषा में जो मिठास है, उससे आदित्यनाथ का दूर-दूर तक कोई नाता नहीं है, आखिर उनकी ट्रेनिंग घृणा की राजनीति में जो हुई है.

आज वह गोरखनाथ मठ के विशाल अहाते से पूर्वी उत्तर प्रदेश के इलाकों में चुनाव प्रचार के लिए नहीं निकले हैं, जहां 4 मार्च और 7 मार्च को मतदान होना है.

वह अपने युवा सहयोगी के साथ बैठक के बाद जब निजी कक्ष से बाहर आते हैं, तब हमसे उनका फिर कुछ लम्हों के लिए सामना होता है.

इस बार आदित्यनाथ हमसे इस वजह से नाराज हो जाते हैं क्योंकि हम अवैद्यनाथ के सम्मान में बन रहे मंदिर के सामने खड़े हैं. हम वहां खड़े होकर भोलेनाथ के दर्शन कर रहे थे. हमसे और अधिक नफरत के साथ कहा जाता है, ‘यहां क्या कर रहे हैं? बाहर निकलिए.’

इसके बाद वह कुछ चेले-चपाटों और बॉडीगार्ड्स के साथ ईंट और प्लास्टर के उस बड़े टुकड़े को देखने कूच कर जाते हैं, जो अहाते में बने तालाब के सामने खड़े ध्वज से टूटकर गिरा है.

पूर्वी उत्तर प्रदेश की राजनीति में बड़ी भूमिका अदा करता आया है गोरखनाथ मठ
(फोटोः चंदन नंदी/ द क्विंट)
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मठ के मुख्यद्वार पर एक मिठाई की दुकान के पास सामान्य कपड़ों में खड़े गार्ड सुरेश सिंह चाय के बाद खैनी मल रहे थे. उन्होंने कहा, ‘महाराज बौखलाए हुए हैं. पोजीशन कुछ ठीक नहीं है.’

वहीं, मठ के पास एक चाय दुकान चलाने वाले जगदीश प्रसाद ने कहा, ‘आदित्यनाथ में विनम्रता नहीं है. अवैद्यनाथ अक्सर हमसे कहते थे- का जी, का हाल-चाल बा.’ प्रसाद की दुकान बहुत चलती है और वह काफी पैसा बना चुके हैं.

पूर्वी उत्तर प्रदेश की राजनीति में बड़ी भूमिका अदा करता आया है गोरखनाथ मठ
(फोटोः चंदन नंदी/ द क्विंट)

आदित्यनाथ के परेशान होने की वजह भी साफ है. उन्होंने 2002 में हिंदू युवा वाहिनी शुरू की थी, जो विधानसभा चुनाव में पार्टिसिपेट होने के मुद्दे पर हाल ही टूट गई. सुनील सिंह की अगुवाई में एक ग्रुप चुनाव लड़ना चाहता था.

उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल इलाके में आदित्यनाथ की टिकट बंटवारे में खूब चलती है. वह इसके खिलाफ थे.

गोरखपुर और बांसगांव लोकसभा क्षेत्र में 9 विधानसभा सीटें हैं. यहां सहजनवां, पिपराइच, गोरखपुर शहरी, गोरखपुर ग्रामीण, कैंपियरगंज, खजनी, चौरी चौरा, बांसगांव और चिल्लूपार सीटें हैं. इनमें से चार पर बीएसपी का, तीन पर बीजेपी, एक पर एसपी और एक पर एनसीपी का कब्जा है.
पूर्वी उत्तर प्रदेश की राजनीति में बड़ी भूमिका अदा करता आया है गोरखनाथ मठ
(फोटोः चंदन नंदी/ द क्विंट)

आध्यात्मिक दबदबे के अलावा गोरखनाथ मठ के पास पैसों की भी कोई कमी नहीं हैं. शहर के लोग मठ का बहुत सम्मान करते हैं. मठ में श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है और मकर संक्रांति पर पर सबसे अधिक भीड़ जुटती है, जब यहां ‘खिचड़ी का मेला’ लगता है.

राज्य की राजनीति में मठ बड़ी भूमिका अदा करते आया है, लेकिन यह घृणा की सियासत का भी स्रोत रहा है. आदित्यनाथ और उनकी हिंदू युवा वाहिनी के चलते शहर के मुसलमान डर कर जीने को मजबूर हैं. यही नहीं, शहर के बाहरी इलाके में उनका बसेरा है.

हिंदू वाहिनी ग्रुप के अलग हुए धड़े के नेता सुनील सिंह कहते हैं, ‘गोरखपुर को हिंदुत्व की प्रयोगशाला माना जाता है. लेकिन आदित्यनाथ जी ने टिकट बेचा है, हिंदू संस्कृति का असम्मान किया है.’ सिंह के नेतृत्व में हिंदू युवा वाहिनी पूर्वी उत्तर प्रदेश की 13 सीटों पर चुनाव लड़ रही है.

पूर्वी उत्तर प्रदेश की राजनीति में बड़ी भूमिका अदा करता आया है गोरखनाथ मठ
हिंदू वाहिनी ग्रुप से अलग हुए धड़े के नेता सुनील सिंह अपने समर्थकों के साथ (फोटोः चंदन नंदी/ द क्विंट)
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सुनील सिंह ने हिंदू युवा वाहिनी के कार्यकर्ताओं के साथ 2007 में मऊ में पर मुसलमानों पर हमला किया था. वह गर्व के साथ एक पार्टी कार्यकर्ता का परिचय कराते हैं- ‘इन्होंने मुसलमानों को मारा है.’ उसके बाद वह अपना गुस्सा आदित्यनाथ पर निकालते हैं. वह कहते हैं कि आदित्यनाथ ने कट्टा (देसी रिवॉल्वर), भट्ठा (ईंट भट्ठे) और दुपट्टे वाले लोगों को टिकट दिए हैं.

उधर, मठ में सूरज सिर पर चढ़ आया है, लेकिन श्रद्धालुओं का तांता रुका नहीं है. सबके हाथ में कुछ न कुछ चढ़ावा है. आदित्यनाथ जब एक महिला को उसके बेटे की स्थानीय केंद्रीय विद्यालय में दाखिले की पैरवी करने से मना कर देते हैं, तो वह काफी मायूस हो जाती हैं.

उन्होंने कहा है कि चुनाव की वजह से वह इस बार सिफारिश नहीं कर सकते. पिछले साल भी उन्होंने मेरे बेटे को स्कूल में दाखिला दिलवाने की पैरवी करने का वादा किया था.
रीना तिवारी, श्रद्धालु

हालांकि, उनका भरोसा आदित्यनाथ पर बना हुआ है. वह कहती हैं कि मैं फिर अगले साल उनके पास बच्चे के एडमिशन के लिए आऊंगी.

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