मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के नए मंत्रिमंडल में एक बार फिर पश्चिमी उत्तर प्रदेश का दबदबा देखने को मिला है. 23 विधायकों ने मंत्री पद की शपथ ली है. अभी हाल ही में हुए विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी गठबंधन ने बीजेपी को कड़ी टक्कर दी थी. जिसके कारण 2017 के मुकाबले यहां बीजेपी के खाते में कम सीटें आईं. इसके बावजूद मंत्रिमंडल में पश्चिमी उत्तर प्रदेश का सबसे ज्यादा प्रतिनिधित्व है. तो ये समझना जरूरी है कि इसके पीछे बीजेपी का क्या प्लान हो सकता है?
पश्चिमी यूपी में खोई जमीन तलाशने की कवायद
अगर मेरठ जिले की बात करें तो यहां बीजेपी के खाते में सिर्फ तीन सीटें आई हैं और इन तीन विधायकों में दो मंत्री चुने गए हैं. हस्तिनापुर से विधायक दिनेश खटीक दोबारा मंत्री बनाए गए हैं. वहीं मेरठ दक्षिण के विधायक सोमेंद्र तोमर को पहली बार मंत्रिमंडल में जगह मिली है.
विशेषज्ञों की मानें तो मंत्रिमंडल में पश्चिमी उत्तर प्रदेश का बड़ा हिस्सा लगने का कारण किसान आंदोलन है जिसने बीजेपी की राह में कई कांटे बो दिए हैं. लेकिन संगठन ने अपनी खोई जमीन तलाशने की शुरुआत मंत्रिमंडल से कर दी है.
जाट वोटर्स को अपने पाले में करना
2013 में हुए मुजफ्फरनगर दंगों के बाद जाट और मुसलमान का वोट बैंक राष्ट्रीय लोक दल (RLD) के हाथों से फिसल गया था. साल 2014 के बाद से बीजेपी जाटों को अपनी तरफ मोड़ने में कामयाब हो गई, जिसका फायदा उन्हें 2014, 2017 और 2019 के चुनाव में मिला है. हालांकि, इस समीकरण ने फिर करवट ली और जाटों का एक बड़ा हिस्सा किसान आंदोलन की वजह से बीजेपी के खिलाफ हो गया और इसका असर बीते विधानसभा चुनाव में भी देखने को मिला है.
2017 में मुजफ्फरनगर शामली और बागपत की 12 विधानसभा सीटों पर बीजेपी ने 10 पर जीत दर्ज की थी. लेकिन 2022 में इन 12 सीटों में से सिर्फ 4 बीजेपी के खाते में आई है.
पिछली सरकार में गन्ना मंत्री रहे सुरेश राणा भी अपनी सीट नहीं बचा पाए. लामबंद होते हुए विपक्ष को कमजोर करने के लिए बीजेपी अब अपने नए सेनापति खड़े कर रही है.
मंत्रिमंडल में वेस्ट ही बेस्ट
बागपत के बड़ौत से दूसरी बार विधायक चुनकर आये केपी मलिक को मंत्रिमंडल में पहली बार मौका मिला है. मुजफ्फरनगर से कपिल देव अग्रवाल को दोबारा मौका मिला है. वहीं, सहारनपुर के देवबंद से जीत कर विधानसभा गए बृजेश सिंह को भी मंत्री बनाया गया है.
बृजेश सिंह को पूर्व गन्ना मंत्री सुरेश राणा की हार के बाद पश्चिमी उत्तर प्रदेश में ठाकुरों के प्रतिनिधित्व का उत्तराधिकारी माना जा रहा है.
जिस पश्चिमी उत्तर प्रदेश ने बीजेपी के सिर उत्तर प्रदेश का ताज रखा उसी जगह पार्टी के विधायकों का गांव में जाना मुश्किल हो गया था. किसान आंदोलन से पैदा स्थिति ने विपक्ष के वार को और धार दे दी. विशेषज्ञों की मानें तो मंत्रिमंडल में पश्चिमी उत्तर प्रदेश का दबदबा इस बात का संकेत है कि इस क्षेत्र में बदलते समीकरण पार्टी और संगठन के लिए चिंता का विषय हैं. लिहाजा, मंत्रिमंडल में वेस्ट ही बेस्ट है.
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