हिंदुस्तानी फिल्मों के हरफनमौला सितारे किशोर कुमार ने अपने करियर में हजारों गीत गाये और कई फिल्मों में अभिनय भी किया। उनकी गायकी के अनोखे अंदाज की लोग आज भी नकल की कोशिश करते हैं। विलक्षण प्रतिभा के धनी किशोर कुमार को लेकर कई किस्से मशहूर हैं। इनमें से एक यहां कॉलेज में उनकी पढ़ाई से जुड़ा है। कहा जाता है कि शुरू में मंच से इस कदर झिझकते थे कि सांस्कृतिक कार्यक्रमों में परदे के पीछे छिपकर गीत गाना पसंद करते थे।
शहर के क्रिश्चियन कॉलेज में इतिहास पढ़ाने वाले स्वरूप बाजपेई ने रविवार को "पीटीआई-भाषा" को बताया, "इस महाविद्यालय में वर्ष 1946 से लेकर 1948 से पढ़ाई के दौरान किशोर कुमार हॉस्टल के अपने कमरे से लेकर इस परिसर के इमली के पेड़ के नीचे अक्सर गाते-गुनगुनाते रहते थे। यहां तक कि वह कक्षाओं में भी अकसर गाना गाते थे। लेकिन तब पता नहीं क्यों, वह शुरूआत में मंच पर श्रोताओं का सामना करने से खूब झिझकते थे।"
उन्होंने बताया, "कॉलेज के पूर्व छात्रों के मुताबिक वह सांस्कृतिक कार्यक्रमों के दौरान मंच के बजाय परदे के पीछे छिपकर गाना गाते थे। लेकिन वह तब भी कुछ यूं गाते थे कि समां बंध जाता था और उनकी प्रस्तुति के बाद देर तक तालियां बजती रहती थीं। हालांकि, बाद में उनकी झिझक मिटी और वह मंच पर शानदार गायन प्रस्तुति देने लगे।"
चार अगस्त 1929 को मध्यप्रदेश (तब मध्य प्रांत) के खंडवा में पैदा हुए किशोर कुमार का वास्तविक नाम आभास कुमार गांगुली था। वह मैट्रिक पास करके इंटरमीडिएट में पहुंचे तो पिता कुंजलाल गांगुली ने उनके भविष्य की फिक्र करते हुए उनका दाखिला इंदौर के क्रिश्चियन कॉलेज में करा दिया था। बाजपेई ने बताया कि चूंकि किशोर कुमार के बडे़ भाई अशोक कुमार उस समय हिन्दी फिल्म जगत में बतौर अभिनेता स्थापित हो चुके थे। इसलिये किशोर कुमार कॉलेज की छुट्टियों के दौरान मुंबई जाते रहते थे।
पढ़ाई के दौरान ही किशोर कुमार ने मनोरंजन जगत में अपने करियर की शुरूआत वर्ष 1946 में परदे पर उतरी फिल्म "शिकारी" से की थी। इस फिल्म में उनके बड़े भाई अशोक कुमार मुख्य भूमिका में थे। इसके बाद किशोर कुमार ने देव आनंद की प्रमुख भूमिका वाली फिल्म "जिद्दी" (1948) के लिये "मरने की दुआएं क्यों मांगूं" गीत को स्वर दिया था। यह गाना किशोर कुमार के पार्श्व गायन करियर में रिकॉर्ड हुआ पहला एकल गीत माना जाता है।
बाजपेई ने बताया, "किशोर कुमार ने वर्ष 1948 में कॉलेज की पढ़ाई अधूरी छोड़ दी और फिल्म जगत में करियर बनाने के मकसद से हमेशा के लिये मुंबई चले गये।" बहरहाल, एक वक्त के बाद मायानगरी से उनका मोहभंग होने लगा था। वह जीवन के अंतिम पड़ाव को अपने जन्म स्थान में गुजारने की ख्वाहिश के साथ कहते थे-"दूध-जलेबी खायेंगे, खंडवा में बस जायेंगे।"
किशोर कुमार का निधन 13 अक्टूबर 1987 को मुंबई में हुआ था। लेकिन जन्मस्थली से उनके ताउम्र दिली लगाव के कारण उनका अंतिम संस्कार खंडवा में ही किया गया था।
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