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जम्मू-कश्मीर: आतंकियों का आतंक जारी, 24 घंटे में 4 मर्डर

कश्मीर : आतंकियों ने गोलगप्पा विक्रेता को मारी गोली

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जम्मू कश्मीर (Jammu Kashmir) में पिछले सप्ताह पांच नागरिकों की हत्या के पहले दौर के बाद से घाटी में व्याप्त सन्नाटा इस सप्ताह के अंत में बिखर गया, क्योंकि कश्मीर में 24 घंटे के अंतराल में चार और निहत्थे गैर-स्थानीय लोगों की निर्मम हत्याएं देखी गईं.

शनिवार की शाम उग्रवादियों ने श्रीनगर के पुराने शहर के हवाल में सबसे पहले बिहार के एक गैर-स्थानीय गोलगप्पा विक्रेता अरबिंद कुमार साह की हत्या कर दी. एक घंटे के भीतर, दक्षिण कश्मीर के पुलवामा जिले में उत्तर प्रदेश के एक अन्य गैर-स्थानीय बढ़ई, सगीर अहमद की गोली मारकर हत्या कर दी गई.

रविवार शाम को, आतंकवादी एक बार फिर दक्षिण कश्मीर के कुलगाम जिले के वानपोह में दिखाई दिए और तीन गैर-स्थानीय मजदूरों को गोली मार दी. उनमें से दो, राजा रेशी देव और जोगिंदर रेशी देव की मौके पर ही मौत हो गई, जबकि दूसरा चुनचुन रेशी दास घायल हो गया. सभी मजदूर व छोटे व्यवसायी बिहार के निवासी थे.

हाल के हमलों में मारे गए 11 नागरिकों में से पांच अन्य राज्यों के थे. मारे गए लोगों में कश्मीरी पंडित समुदाय के एक प्रमुख सदस्य और श्रीनगर में एक फार्मेसी के मालिक माखन लाल बिंदू, एक टैक्सी चालक मोहम्मद शफी लोन, शिक्षक दीपक चंद और सुपिंदर कौर और सड़क पर खोमचा लगाने वाले वीरेंद्र पासवान शामिल थे.

पिछले एक हफ्ते के दौरान सुरक्षाबलों ने आतंकवाद-रोधी अभियान तेज कर दिया है. पुलिस के अनुसार, नागरिकों की हत्या के बाद नौ मुठभेड़ों में 13 आतंकवादी मारे गए हैं.

कश्मीर के पुलिस महानिरीक्षक ने कहा है कि श्रीनगर में नागरिकों की हत्याओं में शामिल पांच आतंकवादियों में से तीन का सफाया कर दिया गया है.

कई लोगों की राय है कि गैर-स्थानीय मजदूरों और अल्पसंख्यक समुदायों के सदस्यों पर हमले उन्हें कश्मीर से बाहर निकालने का एक प्रयास है. आतंकवादी बेहद नरम लक्ष्य चुन रहे हैं, क्योंकि वे इस तथ्य से अवगत हैं कि उन्हें निहत्थे लोगों से किसी भी प्रतिरोध का सामना नहीं करना पड़ेगा.

आतंकवादी इस बात से अवगत हैं कि सुरक्षा बलों पर हमला करने का मतलब है मारा जाना. वे खबरों में बने रहने और घाटी में बंदूक की वापसी का डर सुनिश्चित करने के लिए नागरिकों की हत्या कर रहे हैं.

निर्दोष नागरिकों की निर्मम हत्याओं ने पूरे कश्मीर को झकझोर कर रख दिया है. गैर-स्थानीय लोगों के अलावा, मूल निवासी भी निरंतर भय और खतरे में जी रहे हैं. आज जो बंदूकें गैर-स्थानीय लोगों और अल्पसंख्यक समुदायों के सदस्यों को निशाना बना रही हैं, वे कल बहुसंख्यक समुदाय की ओर मुड़ सकती हैं. मूल निवासियों पर मुखबिर होने का लेबल लगाया जा सकता है और फिर उन्हें मार दिया जा सकता है.

--आईएएनएस

एसजीके

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