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भूपेश बघेल की राह पर शिवराज सरकार, इंदौर में बना गोबर-धन प्लांट

इंदौर में बनाया गया एशिया का सबसे बड़ा बायो-सीएनजी प्लांट

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न्यूज
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भोपाल/रायपुर, 20 फरवरी (आईएएनएस)। गोबर भी आर्थिक समृद्धि और रोजगार का जरिया बनने लगा है। छत्तीसगढ़ की भूपेश बघेल सरकार द्वारा गोबर खरीदी योजना अन्य राज्यों को भी रास आने लगी है, यही कारण है कि मध्य प्रदेश के इंदौर में स्थापित किए गए गोबर-धन संयंत्र के लिए गोबर व अन्य कचरा खरीदा जाएगा।

मध्य प्रदेश की व्यापारिक नगरी इंदौर में कचरे से बायो सीएनजी बनने वाला गोबर-धन सीएनजी संयंत्र स्थापित किया गया है। इसका शनिवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लोकार्पण किया। यह संयंत्र प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की वेस्ट-टू वेल्थ की अवधारणा को साकार करने वाला साबित हेागा। इस संयंत्र के जरिए इंदौर की चार सौ बसें सीएनजी से चल सकेंगी।

संयंत्र के लोकार्पण के मौके पर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि यह प्लांट इंदौर के आसपास के ग्राम से पशुपालकों और किसानों से गोबर और अन्य कचरे को क्रय कर धन बनाने वाला संयंत्र होगा। अनेक परिवारों को इस प्लांट से स्थायी रोजगार मिल रहा है। कचरे के साथ गोबर का उपयोग बैक्टीरिया डेवलप करने की प्रोसेसिंग में किया जाएगा।

उन्होंने कहा, इंदौर में बाजार मूल्य से पांच रूपए प्रति किलो कम कीमत पर सिटी बसों के लिए सीएनजी की उपलब्धता होगी। प्लांट में शुरूआती दौर में 21 प्रतिशत और अगले तीन वर्ष में शत-प्रतिशत सौर ऊर्जा का उपयोग होगा। इंदौर शहर को कार्बन क्रेडिट का लाभ मिलेगा। साथ ही इस प्लांट से आगामी 20 वर्ष तक इंदौर नगर निगम को प्रति वर्ष दो करोड़ 52 लाख प्रीमियम मिलता रहेगा।

संभवत: मध्य प्रदेश देश का दूसरा ऐसा राज्य होगा जहां गोबर खरीदी होगी और इसके जरिए पशुपालकों की आमदनी तो बढ़ेगी ही साथ में रोजगार का नया रास्ता भी खुलेगा।

यहां बता दें कि छत्तीसगढ़ की भूपेश बघेल सरकार ने गौठान स्थापित करने का नवाचार किया, यहां दो रुपये किलो की दर से गोबर भी खरीदा जाता है। इससे पशुपालकों की आमदनी में इजाफा हुआ तो दूसरी ओर गौठान में गोबर के जरिए पूजन की सामग्री के अलावा दिया, अगरबत्ती का निर्माण किया जाता है, जिससे लोगों को रेाजगार भी मिल रहा हैं। बर्मी कंपोस्ट बनाया जा रहा है, जिससे क्षेत्र में जैविक खेती का रकबा बढ़ रहा है। इसके साथ ही गोकाष्ट बनाए जाते है जिनका उपयोग अंतिम संस्कार में किया जाता है, जिससे लकड़ी के लिए पेड़ को कम काटना पड़ रहा है।

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