ADVERTISEMENTREMOVE AD

Solapur: शादी के लिए नहीं मिल रही लड़की, कलेक्टर से की 'दुल्हन' की मांग

लड़कों ने बैनर पर लिखा था- "एक पत्नी चाहिए, एक पत्नी! मुझसे शादी करने के लिए कोई भी एक लड़की दे सकता है!",

Published
न्यूज
3 min read
story-hero-img
i
छोटा
मध्यम
बड़ा
Hindi Female

महाराष्ट्र के सोलापुर (Solapur) में करीब 50 लोग, गाजे बाजे के साथ शानदार शादी के कपड़ों में घोड़ों पर सवार होकर एक जुलूस में कलेक्टर के पास पहुंचे और दुल्हन की मांग करने लगे. एनजीओ (NGO) ज्योति क्रांति परिषद की ओर से आयोजित मार्च ने सोलापुर और आसपास के जिलों के ग्रामीण इलाकों में एक बड़ी समस्या को उजागर किया, जहां शादी के लिए लड़कियों की भारी कमी है. कई दूल्हों ने शेरवानी और कई ने कुर्ता-पायजामा पहना हुआ था और अपने गले में तख्तियां लिए हुए थे. एक किलोमीटर. लंबे जुलूस में उनकी एकमात्र इच्छा थी सरकार का ध्यान इस ओर खींचना.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

किसी भी लड़की से शादी के लिए तैयार हैं 'दूल्हे'

तख्तियों पर लिखा था, "एक पत्नी चाहिए, एक पत्नी! मुझसे शादी करने के लिए कोई भी एक लड़की दे सकता है!", "सरकार, होश में आओ और हमसे बात करो, तुम्हें हमारी दुर्दशा पर ध्यान देना होगा!" 12 साल के बच्चे विक्की सैडिगल ने अपनी तख्ती पर लिखा था, "मेरी शादी होगी या नहीं?"

जेकेपी के अध्यक्ष रमेश बारस्कर ने कहा कि बुधवार के जुलूस में सभी हताश कुंवारे लोग 25-40 के बीच की उम्र के थे, ज्यादातर पढ़े-लिखे और सम्मानित मध्यवर्गीय परिवारों से थे, जिनमें कुछ किसान, कुछ निजी कंपनियों में काम करने वाले भी थे.

बारस्कर ने आईएएनएस से बातचीत में कहा, स्त्री-पुरूष अनुपात बिगड़ने के कारण, इन स्वस्थ, कमाऊ और सक्षम पुरुषों को वर्षों तक विवाह के लिए लड़कियां नहीं मिलती. स्थिति इतनी खराब है कि वे किसी भी लड़की से शादी के लिए तैयार हैं, जाति, धर्म, विधवा, अनाथ, कुछ मायने नहीं रखता.

0

'दूल्हों' ने कलेक्टर को बताई दिल की बात

जुलूस कलेक्ट्रेट पर खत्म हुआ, जहां 'दूल्हों' ने बैठकर अपनी पीड़ा बताई और मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे को संबोधित करते हुए एक ज्ञापन सोलापुर के कलेक्टर मिलिंद शंभरकर को सौंपा.

जनवरी 2022 में 'बेटी बचाओ' आंदोलन शुरू करने वाले पुणे के डॉ. गणेश राख ने कहा कि भारत में आधिकारिक रूप से 1,000 लड़कों पर 940 लड़कियां हैं, पर महाराष्ट्र में 1,000 लड़कों पर 920 लड़कियां हैं.

केरल में 1,000 लड़कों पर 1,050 लड़कियां हैं, हालांकि देश के बाकी हिस्सों के आंकड़े भ्रामक हैं. ग्रामीण क्षेत्रों या मध्यम और निम्न-मध्यम वर्ग के लड़कों में बड़ी समस्याएं हैं, जिन्हें लड़कियां नहीं मिलती हैं. गर तत्काल उपाय नहीं किया गया तो स्थिति और खराब हो जाएगी.
डॉ. गणेश राख
ADVERTISEMENTREMOVE AD

दूल्हा बनने की चाह नहीं कोई राह...

राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के नेता और मोहोल शहर के पूर्व परिषद प्रमुख बारस्कर ने कहा कि "जेकेपी के अध्ययन से पता चलता है कि शादी के लिए लड़कियां सरकारी नौकरी, आर्मी या फिर विदेशों में काम करने वाले लोग चुनना चाहती हैं, या फिर मुंबई और पुणे जैसे बड़े शहरों में काम करने वाले लोग."

बारस्कर ने इस सामाजिक मुद्दे के बारे में बताया, "जो लोग पहले से ही शहरों में रह रहे हैं, वो अलग-अलग कारणों से गांव में आना नहीं चाहते, वो बहुत अमीर परिवारों से नहीं हैं"

इसका परिणाम अविवाहित पुरुषों के लिए विनाशकारी है, जो बुराईयों की ओर मुड़ जाते हैं, या शराब पीने लगते हैं. उनके माता-पिता अपने अविवाहित बेटों की चिंता से बीमारियों का शिकार हो जाते हैं.

ऐसे ही एक दूल्हा बनने की चाह रखने वाले 40 साल के लव माली ने आईएएनएस को बताया कि उनका पूरा परिवार दो दशक से अधिक समय से एक दुल्हन खोज रहा है, लेकिन सफलता नहीं मिली.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

कुवारे लड़कोंं की आपबीती

39 साल के किरण टोडकर ने कहा कि वो पिछले 20 सालों से अलग-अलग सोशल मीडिया साइटों पर अपनी तस्वीरें, बायो डाटा और पारिवारिक डिटेल अपलोड कर रहे हैं, लेकिन 'हिट' नहीं मिला. यहां तक कि सोलापुर में धार्मिक इवेंट और मैच-मेकिंग कार्यक्रमों में भी हिस्सा लिया, लेकिन कोई लड़की नहीं मिली.

"मेरा परिवार 15 साल से दुल्हन ढूंढ रहा है. वो किसी भी लड़की को स्वीकार करने के लिए तैयार हैं. मैं स्थानीय पुजारियों के माध्यम से भी खोजने के लिए संघर्ष कर रहा हूं जो 'मैच-मेकर्स' के रूप में कार्य करते हैं. मैं इस जुलूस के बाद भाग्यशाली होने की उम्मीद करता हूं," 36 साल के शोकग्रस्त गोरखा हेदे ने कहा.

निजी कंपनी में एक अधिकारी के रूप में काम करने वाले एक निराश 38 वर्षीय (नाम न छापने का अनुरोध करते हुए) ने खुलासा किया कि कैसे उसके माता-पिता लोगों को सड़कों पर, बसों में, मंदिरों में या सामाजिक समारोहों में रोकते हैं, और कहते हैं कि बेटे की शादी के लिए एक लड़की चाहिए.

बारस्कर ने कहा एक महीने से अधिक समय तक, इस मुद्दे को सार्वजनिक रूप से उजागर करने के प्रयासों को स्थानीय लोगों के कड़े प्रतिरोध और उपहास का सामना करना पड़ा, लेकिन आखिरकार जेकेपी ने इसकी शुरूआत की.

बारस्कर ने भी कहा कि "ज्यादातर गांवों में 100-150 अविवाहित पुरुष हैं और शहरों में अधिक हैं. अब, समर्थन की बाढ़ आ गई है और लोग हमें अन्य जिलों में भी इसी तरह के जुलूस निकालने के लिए कह रहे हैं. हम मुंबई में ऐसे कुंवारे लोगों के लिए एक राज्य-स्तरीय मोर्चा बनाने की योजना बना रहे हैं,".

इनपुट: IANS

(हैलो दोस्तों! हमारे Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां)

सत्ता से सच बोलने के लिए आप जैसे सहयोगियों की जरूरत होती है
मेंबर बनें
अधिक पढ़ें
×
×