सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने मथुरा में कृष्ण जन्मभूमि मंदिर से सटे शाही ईदगाह के अदालत की निगरानी में सर्वेक्षण के लिए इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश के कार्यान्वयन पर रोक लगा दी. शीर्ष अदालत ने शाही ईदगाह के सर्वेक्षण पर हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ मस्जिद समिति की याचिका पर हिंदू संगठन भगवान श्रीकृष्ण विराजमान और अन्य से जवाब मांगा है.
इससे पहले इलाहाबाद हाई कोर्ट द्वारा तीन सदस्यीय टीम से सर्वे कराने का आदेश दिए जाने के बाद मुस्लिम पक्ष हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट चला गया था. हालांकि, शीर्ष अदालत ने आदेश पर रोक लगाने से इनकार कर दिया.
19 मई 2022 को, मथुरा की एक अदालत ने कटरा केशव देव मंदिर - एक हिंदू मंदिर के पास, शाही ईदगाह मस्जिद स्थित जमीन के एक टुकड़े पर दायर मुकदमे को फिर से खोलने की अनुमति दी थी.
"13.37 एकड़ की जमीन हिंदुओं की है और वहां एक मंदिर का निर्माण किया जाना चाहिए. यह जमीन बिल्कुल वही है जहां भगवान कृष्ण का जन्म हुआ था, और यह हमारे प्राचीन ग्रंथों और पुस्तकों में लिखा है. यह पहले से ही सिद्ध है और मैं यह जानता हूं क्योंकि मैं एक बृजवासी हूं.”महेंद्र प्रताप सिंह, याचिकाकर्ता
आखिर 13.37 एकड़ की जमीन किसकी है?
शाही ईदगाह मस्जिद कथित तौर पर 1670 ईस्वी में मुगल सम्राट औरंगजेब के आदेश पर बनाई गई थी, जब उसने कथित तौर पर वीर सिंह के केशवदेव मंदिर को ध्वस्त करने का फैसला किया था. वीर सिंह कथित तौर पर ओरछा के राजपूत शासक और मुगल सहयोगी थे.
ये जमीन गैर-कृषि राज्य भूमि थी. मुगलों से लेकर मराठों और अंग्रेजों तक, 13.77 एकड़ की जमीन 1944 तक कई हाथों से गुजरती रही, जब जुगल किशोर बिड़ला ने 13,400 रुपये में जमीन खरीदी और श्री कृष्ण जन्म भूमि ट्रस्ट की स्थापना की, जिसने मंदिर का मालिकाना हक हासिल कर लिया.
बाद में 1956 में, मंदिर मामलों के प्रबंधन के लिए श्री कृष्ण जन्मस्थान सेवा संघ की स्थापना की गई. बाद में इसका नाम बदलकर श्री कृष्ण जमस्थान सेवा संस्थान कर दिया गया.
हालांकि, 1968 में, एक 'समझौते' ने कथित तौर पर यह सुनिश्चित किया कि मंदिर ट्रस्ट को जमीन का मालिकाना हक मिले, जबकि मस्जिद के प्रबंधन के अधिकार ईदगाह समिति को दिए गए. समझौते में कथित तौर पर कहा गया है कि मंदिर ट्रस्ट को शाह ईदगाह मस्जिद पर दावा करने का कानूनी अधिकार है. लेकिन याचिकाकर्ताओं ने 1968 के समझौते की कानूनी वैधता को चुनौती दी थी.
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