पतरा खुर्द पंचायत का वह रास्ता जिसपर मोरम की सड़क काग़ज़ पर दिखाई गई
क्या है पूरा मामला
'झारखंड नरेगा वाच' फोरम के स्टेट कन्वेनर जेम्स हेंरेज ने क्विंट से बताया कि पलामू जिले के हुसैनाबाद के 'पतरा खुर्द' पंचायत में 12 मनरेगा योजनाओं में फर्जी मास्टर रोल तैयार कर सरकारी राशि गबन की गई. इन योजनाओं में 6 योजनाएं अमल में लाई ही नहीं गई.
मैंने जब इसकी जांच की तो पाया कि जो राशि की निकासी हुई वह वास्तविक काम से कई गुना अधिक है. मैंने कार्रवाई के लिए एक आवेदन महात्मा गांधी मनरेगा कानून 2005 अनुसूची 1 की धारा 29 के तहत पलामू जिले के उप विकास आयुक्त सह जिला कार्यक्रम समन्वयक को लिखा है.
जेम्स हेंरेज आगे कहते हैं कि मनरेगा को लेकर इस तरह के भ्रष्टाचार का पंचायत पतरा खुर्द एकमात्र उदाहरण नहीं है. मनरेगा में हुए भ्रष्टाचार को लेकर मैंने सरायकेला-खरसांवां, सिमडेगा, रांची, देवघर जैसे दर्जनों उदाहरण मेरे पास हैं. राज्य भर के उन सभी क्षेत्रों की जांच होनी चाहिए जहां मनरेगा योजना अमल में है.
'झारखंड नरेगा वाच' फोरम के मुताबिक पलामू जिले की 'पतरा खुर्द' पंचायत में मनरेगा के तहत खेत में सिचाई कूप निर्माण, मिट्टी मोरम पथ निर्माण, चबुतरा निर्माण जैसी योजनाओं में श्रमिक हेतु 8.7 लाख एवं मैटेरियल के लिए 4.5 लाख रुपये की निकासी हुई है.
क्या कहते हैं ग्रामीण?
पतरा खुर्द पंचायत के अशोक मेहता कहते हैं मनरेगा में दिखाकर फर्जी तरीके से पैसे की निकासी की गई. पैसे की फर्जी निकासी का पता तब चला जब गांव कर धर्मेंद्र मेहता नाम का युवक जो बैंगलोर में काम कर रहा था. उसके बैंक खाता में मनरेगा का पैसा मनरेगा मेट से डलवाया गया. उसके बाद उसको फोन करकर पैसा मांगा जाने लगा कि खाते में जो पैसा डलवाया है वह पैसा वापस करो.
"जब मैं गांव में था, तब मेरा मनरेगा जॉब कार्ड बना था, लेकिन बैंगलोर में जॉब मिलने के बाद मैं वहां चला गया. कुछ दिन बाद मनरेगा मेट के साथी ने कॉल किया कि मैंने अपने बैंक खाते में पैसा डलवाया है वह दीजिए. मेरे बैंगलोर से वापस गांव आने के बाद मनरेगा मेट के द्वारा दबाव डाला गया कि 9 हजार रुपये जो खाते में है, वह निकाल कर दीजिए. मैंने फिर वह पैसा हरिनंदन को दे दिया.
हरिनंदन ब्लॉक से ऐसे काम लेकर गांव आता है, जिसके तहत काम सिर्फ कागज पर दिखाया जाता है और ग्रामीणों के जॉब कार्ड पर पैसे की निकासी हो जाती है. मेरे घर में चार जॉब कार्ड हैं, मेरे अलावा पिताजी, माताजी और बहन के नाम पर. हमने कभी काम नहीं किया, लेकिन हरिनंदन ने सभी के बैंक खाता खुलवाकर मनरेगा के पैसे खाता में डलवाए. पैसे खाता में आने के बाद निकलवा लिए. मैं थोड़ा पढ़ा लिखा हूं तो इस घोटाले को समझ सका बाकी गांव के लोग जो साक्षर नहीं हैं उनके नाम पर खूब पैसे की निकासी हो रही है. इस तरह का घपला लंबे समय से हो रहा है. मैंने लिखित शिकायत भी की लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई."धर्मेंद्र मेहता
हरिनंदन मेहता ने आरोपों से इनकार करते हुए कहा कि "मेरे ऊपर गलत आरोप है मैंने ऐसा कुछ नहीं किया. योजना पूरी की गई है. धरातल पर बहुत अच्छा काम किया गया है, काम के बदले पैसा दिया जाता है."
नाम न बताने की शर्त पर एक ग्रामीण ने क्विंट से बताया कि "हरिनंदन मेहता पहले हुसैनाबाद विधानसभा के पूर्व विधायक कुशवाहा शिव पूजन मेहता के कार्यकाल में विधायक कोटा से काम लाकर करवाता था, जिसमें कुछ काम हुआ था. लेकिन अब ब्लॉक से मनरेगा के तहत काम लाता है जो धरातल पर नहीं दिखाई देता. जबकि ये न तो ठेकेदार है न ही मनरेगा-मेट, लेकिन इसकी सक्रियता एक एजेंट की तरह है, जो सरकारी धन की फर्जी निकासी कर के खा रहा है.
मनरेगा की योजना में काम न करने के बाद लाभुक के बैंक खाते में फर्जी भुगतान क्यों हो जाती है? इस सवाल पर ग्राम पंचायत पतरा खुर्द के मुखिया लल्लू रजावार ने कहा कि मेरा साइन सबसे अंत में होता है, मुझ से पहले रोजगार सेवक और जेई के हस्ताक्षर होते हैं. मैं हस्ताक्षर से पहले जेई साहब और रोजगार सेवक से पूछता हूं सब ठीक है, वह कहते हैं ठीक है तब मैं साइन कर देता हूं. एक दो लाभुक बाहर हैं और उनका नाम भी मास्टर रोल में लगा होता है, तो वह भी ऐसे में साइन हो जाता है. जिससे पैसा उसके खाते में चला जाता है. ऐसे में एक दो गलती हो ही जाती है. लेकिन मैं जिम्मेदार नहीं हूं. मुझ से साइन कराने से पहले रोजगार सेवक को जांच करनी चाहिए, इस लिए सवाल भी उसी से होना चाहिए कि लाभुक गांव में नहीं है, तो उसका नाम मास्टर रोल में क्यों लगा है. रही बात जेई साहब की तो वह काम पूरा होने से पहले मेजरमेंट वाउचर बना देते हैं. उनको कई बार मैंने मना किया, लेकिन वह नहीं मानते.
रोजगार सेवक उमेश कुमार चौधरी ग्रामीणों के द्वारा खुद पता लगाए गए आरोपों से इंकार करते हुए जेई मितेश सिंह पर आरोप लगाते हुए कहा कि योजना के तहत होने वाला काम पूरा होने से पहले ही उसका मेजरमेंट वाउचर बनाकर साइन कर देते हैं, जिसके बाद पैसा की निकासी हो जाती है. जबकि मैंने जेई साहब को ऐसा करने से मना किया."
जेई मितेश सिंह ने खुद पर लगे आरोपों पर सफाई देते हुए क्विंट से कहा कि
"जो लाभार्थी गांव में नहीं रहते और उनके खाते में पैसे जा रहे हैं, तो उसके लिए मैं जिम्मेदार नहीं हूं. इस के लिए रोजगार सेवक जिम्मेदार हैं. बाकी जो मसले हैं वह मेरे कार्यकाल के नहीं हैं. मैंने जनवरी में ज्वाइन किया है. रही बात मेजरमेंट वाउचर की तो इसे मैंने कभी काम पूरा होने से पहले नहीं बनाया. मेरे ऊपर लगे सारे आरोप बेबुनियाद हैं."
मनरेगा को लेकर पतरा खुर्द के ग्रामीणों द्वारा की गई शिकायत को लेकर क्विंट ने पलामू जिले के DDC मेधा भारद्वाज से बात की. उन्होंने कहा कि "7 जुलाई के आसपास ही मैंने यहां ज्वाइन किया है. इसलिए अभी मैंने बहुत सारी चीजें नहीं देखी हैं, अभी एक हफ्ता ही हुआ है ज्वाइन किए हुए. लेकिन ऐसा कोई मामला है तो हम इस मामले की जांच करा लेंगे.
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