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राजस्थान में AAP के 3 दांव: दिल्ली मॉडल, जाति समीकरण, BJP-कांग्रेस के आंतरिक कलह

Rajasthan Election: क्या 2023 के विधानसभा चुनाव से पहले राजस्थान में जाट, मुस्लिम और आदिवासी वोटों पर AAP की नजर है?

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साल 2018 में आम आदमी पार्टी (AAP) ने राजस्थान (Rajasthan) में अपना पहला विधानसभा चुनाव लड़ा. इस चुनाव में पार्टी ने 200 में से 142 सीटों पर उम्मीदवार उतारे और वह केवल 0.4 प्रतिशत वोट हासिल करने में सफल रही. AAP के लिए राजस्थान में यह चुनावी प्रदर्शन पार्टी बनने के 6 साल बाद और दिल्ली में AAP की सरकार बनने के तीन साल बाद आया था.

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इसके ठीक पांच साल बाद, अरविंद केजरीवाल और उनकी पार्टी राज्य में एक और चुनाव की तैयारी कर रही है. पार्टी कैडर को लगता है कि कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी (BJP) को टक्कर देने के लिए वे बेहतर स्थिति में हैं.

हालांकि, यह सवाल बना हुआ है कि क्या राजस्थान, जो परंपरागत रूप से दो दलों वाला राज्य रहा है, तीसरे मोर्चे के प्रवेश के लिए तैयार है? चुनावी माहौल में राजनीतिक घटनाक्रम का विश्लेषण और जमीन पर AAP कार्यकर्ताओं के साथ बातचीत के बाद दिलचस्प पहलू सामने आते हैं.

अच्छे से आजमाया हुआ 'दिल्ली मॉडल'

पार्टी के राज्य संयुक्त सचिव प्रशांत जायसवाल ने द क्विंट से बात करते हुए कहा कि अन्य राज्यों की तरह राजस्थान में भी AAP नौकरियों, इंफ्रास्ट्रक्चर, स्वास्थ्य सेवा और पेंशन पर ध्यान देने के साथ विकास के 'दिल्ली मॉडल' पर बहुत अधिक जोर देगी.

प्रशांत जायसवाल ने कहा, "राजस्थान के लोग हर चुनाव में सत्ताधारियों को बाहर का रास्ता दिखा देते हैं. कांग्रेस और बीजेपी ने कई दशकों में सरकार बनाई. फिर भी, वे युवाओं के लिए रोजगार देने में सक्षम नही हैं. निश्चित रूप से राजस्थान आम आदमी पार्टी के मायने रखने वाले मुद्दों पर काम करने की जगह है.

उन्होंने आगे कहा, "पार्टी खुद को जमीन से खड़ा कर रही है. संगठन के राष्ट्रीय महासचिव संदीप पाठक जी व्यक्तिगत रूप से राजस्थान में चुनाव की देखरेख कर रहे हैं. हमने राज्य भर में युवा विंग, महिला विंग और कई अन्य विंग बनाया है. हम ज्यादा सा ज्यादा लोगों से जुड़ने के लिए बड़े पैमाने पर सदस्यता अभियान भी चला रहे हैं."

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जातिगत समीकरण

5 अप्रैल को, अरविंद केजरीवाल, पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान और राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी (RLP) के राष्ट्रीय संयोजक हनुमान बेनीवाल से मुलाकात की एक तस्वीर इंटरनेट पर वायरल हो गई. तस्वीर बेनीवाल की बेटी की बर्थडे पार्टी की थी.

फोटो वायरल होने के बाद कयास लगाए जा रहे थे कि AAP की नजर बेनीवाल की पार्टी के साथ चुनाव से पहले गठबंधन पर है.

नागौर से लोकसभा सांसद बेनीवाल एक महत्वपूर्ण जाट नेता हैं और पश्चिमी राजस्थान में उनका काफी दबदबा है. आरएलपी के साथ गठबंधन पार्टी को राज्य में जाट और मुस्लिम मतदाताओं के बीच अपनी स्थिति मजबूत करने में मददगार साबित हो सकती है.

बैठक के बारे में पूछे जाने पर जायसवाल ने कहा कि AAP विकास समर्थक पार्टी है. जायसवाल ने मीटिंग के इरादे पर साफ-साफ बात करने से इनकार कर दिया लेकिन दिल्ली में पार्टी नेतृत्व के एक करीबी सूत्र ने द क्विंट को बताया कि पंजाब या गुजरात के विपरीत, राजस्थान में छोटे खिलाड़ियों के साथ गठबंधन राज्य में पार्टी की स्थिति को मजबूत करने में मदद कर सकता है.

राजस्थान में चुनावी जातीय समीकरण पंजाब या गुजरात की तुलना में अधिक उलझा हुआ है. केवल नौकरियों, घर, बुनियादी ढांचे या स्वास्थ्य सेवा पर ध्यान केंद्रित करना पर्याप्त नहीं हो सकता है. हमें जातिगत समीकरणों को भी ध्यान में रखना होगा.
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राजस्थान में जाट और मुस्लिम वोटों पर ध्यान खींचने के अलावा, गुजरात में AAP विधायक चैतर वसावा ने गुजरात और राजस्थान सहित तीन पड़ोसी राज्यों में आदिवासी आबादी के लिए 'भील प्रदेश' के एक अलग राज्य की मांग फिर से उठाई है. मांग के मुताबिक यह एक ऐसा अलग राज्य है, जो चार राज्यों में फैले 39 जिलों (गुजरात में 16, राजस्थान में 10, मध्य प्रदेश में सात और महाराष्ट्र में 6) से बना है.

अनुसूचित जनजाति (एसटी) के रूप में लिस्टेड, राजस्थान में भील आबादी चार लाख है. 2018 के विधानसभा चुनाव में भील बहुल आठ सीटों पर कांग्रेस ने 33.81 फीसदी वोट हासिल किए थे, जबकि बीजेपी 32.91 फीसदी वोटों के साथ दूसरे नंबर पर थी. हालांकि, दिलचस्प बात यह थी कि गुजरात स्थित भारतीय ट्राइबल पार्टी (BTP) की एंट्री हुई, जिसने 12.49 प्रतिशत वोट हासिल किए.

'भील प्रदेश' के लिए एक नई पिच बनाकर, AAP इन वोटों के एक बड़े हिस्से पर नजर गड़ा सकती है.

यह ध्यान रखना जरूरी है कि जाट, मुस्लिम और आदिवासी राजस्थान में कांग्रेस के वोट का अहम हिस्सा हैं. इसलिए, AAP की एंट्री से बीजेपी की तुलना में कांग्रेस के वोट शेयर में सेंध लगने की ज्यादा उम्मीद है.

कांग्रेस-बीजेपी में अंदरूनी कलह

एक साल से भी कम वक्त में होने वाले विधानसभा चुनावों के साथ, दोनों मुख्य दावेदार- कांग्रेस और बीजेपी अपनी राज्य इकाइयों में अंदरूनी कलह से जूझ रहे हैं.

जहां कांग्रेस में अशोक गहलोत और सचिन पायलट खेमे के बीच का टकराव कई महीनों से खुलकर सामने है, वहीं बीजेपी में पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा को केंद्रीय जल शक्ति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत और राज्य के पूर्व बीजेपी अध्यक्ष सतीश पूनिया से प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ रहा है.

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राज्य में तीसरे मोर्चे के रूप में उभरने की कोशिश करने वाली आम आदमी पार्टी को लगता है कि दोनों दलों के बीच इस अंदरूनी कलह से उसे फायदा होगा.

राजस्थान में मार्च के दौरान पार्टी के चुनाव अभियान की शुरुआत करते हुए, जयपुर की तिरंगा यात्रा में केजरीवाल ने कहा कि

बीजेपी और कांग्रेस दोनों सत्ता के लिए अपने ही लोगों से लड़ रहे हैं. वे राज्य के लोगों के लिए नहीं लड़ रहे हैं, वो सीएम की कुर्सी के लिए लड़ रहे हैं. मैंने सुना है कि वसुंधरा राजे और अशोक गहलोत के बीच एक सम्झौता हुआ है.

उन्होंने आगे कहा कि जब भी उनमें से किसी को सत्ता खोने का खतरा होता है, तो दूसरा उनके बचाव में कूद पड़ता है. बीजेपी और कांग्रेस राजस्थान में अलग-अलग दल नहीं हैं, वे दोनो एक ही हैं.

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