ये पब्लिक है, किसी को नहीं बख्शती. हरियाणा विधानसभा चुनाव में वोटर ने बीजेपी के साथ वही किया है जो साल 2009 के चुनाव में उसने कांग्रेस के साथ किया था.
दोहराया इतिहास
मई 2009 में कांग्रेस पार्टी की अगुवाई में 262 सीट जीतकर यूपीए गठबंधन ने केंद्र में सरकार बनाई थी. हरियाणा की 10 लोकसभा सीट में से कांग्रेस ने 9 पर जीत दर्ज की थी. उस वक्त हरियाणा में भी कांग्रेस की सरकार की थी और बीजेपी के मौजूदा मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर की ही तरह भूपेंद्र सिंह हुड्डा पांच साल से मुख्यमंत्री थे. केंद्र में सरकार बनने के बाद हरियाणा में भी कांग्रेस का जलवा था और कांग्रेसी विधानसभा चुनाव में 90 में से 70 सीट जीतने का दावा कर रहे थे.
हुड्डा अपनी जीत को लेकर इतने आश्वस्त थे कि उन्होंने विधानसभा का कार्यकाल खत्म होने से 6 महीने पहले ही विधानसभा चुनाव करवाने की घोषणा कर दी. उधर लोकसभा की सभी दस सीट हार जाने के बाद, ओमप्रकाश चौटाला की आईएनएलडी और बीजेपी का चुनावी गठबंधन टूट गया था.
चौटाला की पार्टी में थी भगदड़
उस वक्त आईएनएलडी में जबरदस्त निराशा का माहौल था. चौटाला परिवार को छोड़कर आईएनएलडी के सभी दिग्गजों ने या तो पार्टी छोड़ दी थी या चुनाव लड़ने से किनारा कर लिया था. हाल में जिस तरह खिलाड़ियों से लेकर विपक्षी नेताओं तक ने बीजेपी का दामन थामा है उसी तरह 2009 के विधानसभा चुनाव से पहले नेता कांग्रेस में शामिल हो रहे थे.
आईएनएलडी के बड़े नेता धीरपाल सिंह ने चुनाव लड़ने से इनकार कर दिया और संपत सिंह, कैलाशो सैनी, सुशील इंदौरा, एमएल रंगा जैसे दिग्गजों ने अपनी पार्टियां छोड़कर कांग्रेस का दामन थाम लिया.
धरे रह गए सारे कयास
सियासी पंडित और मीडिया के सर्वे भी कांग्रेस को 60-70 सीटें दे रहे थे. लेकिन जब चुनाव नतीजे आए तो तमाम सर्वे धरे के धरे रह गए.
लोकसभा चुनाव में प्रचंड जीत हासिल करने वाली कांग्रेस पार्टी विधानसभा चुनाव में 35 सीटों पर सिमट गई और सरकार बनाने के लिए उसे कुलदीप बिश्नोई की हरियाणा जनहित कांग्रेस को तोड़ना पड़ा. हाशिये पर समझी जा रही आईएनएलडी को 31 सीटें मिलीं और बीजेपी को 4.
हरियाणा की राजनीति को जानने-समझने वाले कहते हैं कि उस वक्त ओमप्रकाश चौटाला ने बीजेपी से गठबंधन तोड़ने की गलती ना की होती तो आईएनएलडी और बीजेपी मिलकर सरकार भी बना सकते थे. ठीक से ही जैसे अब कहा जा रहा है कि अगर कांग्रेस पार्टी अपने अंदरूनी झगड़े निपटा कर लोकसभा चुनाव के ठीक बाद से हरियाणा पर फोकस करती तो वो सरकार बनाने की हालत में हो सकती थी.
लोकसभा चुनाव 2019 में हरियाणा की सभी 10 सीट जीतने वाली बीजेपी ने 58 फीसदी वोट भी हासिल किया था. विधानसभा चुनाव में इस वोट प्रतिशत में 15-20 फीसदी की कमी आती दिख रही है. साफ है कि आर्टिकल 370, कश्मीर, पाकिस्तान जैसे मुद्दों को पब्लिक ने नकारा है और बेरोजगारी और महंगाई जैसे लोकल मुद्दे चुनाव पर हावी रहे हैं.
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