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अहमद पटेल: मस्जिद को अकीदतमंद,कांग्रेस को संकटमोचक हमेशा याद रहेगा

ऐसा शख्स जो अपने व्यक्तिगत समीकरणों और वाक पटुता से पार्टी को किसी भी संकट से उबार सकता था.

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कांग्रेस नेता अहमद पटेल 25 नवंबर की अलसुबह गुजर गए. वह चार दशकों से कांग्रेस से जुड़े थे लेकिन 1999 में सोनिया गांधी की अध्यक्षता की शुरुआत के समय से पार्टी के स्तंभ बन गए थे. उनकी मृत्यु के बाद पार्टी में एक खालीपन सा आ गया. यह उन सभी के लिए बड़ा नुकसान है जो उनके नजदीकी थे.

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मदर टेरेसा क्रेसेंट की मस्जिद

मैं अहमद पटेल से प्रेजिडेंट्स ऐस्टेट की छोटी सी मस्जिद में मिला था. यह अहमद पटेल के 23 मदर टेरेसा क्रेसेंट रोड स्थित निवास के बहुत पास है. उनके निवास स्थान को कांग्रेस सर्किल में नंबर 23 के नाम से जाना जाता है. यह यूपीए का दौर था और अहमद पटेल को देश के सबसे प्रभावशाली लोगों में से एक माना जाता था. उनके बारे में यह कहा जाता था कि वह मंच के पीछे से अपने दमखम का इस्तेमाल करते हैं.

लेकिन मस्जिद उस ताकत को दर्शाने की जगह नहीं. वह जुमे का दिन था- नमाज चल रही थी. अहमद पटेल धीमे से आए और बीच की एक कतार में बाएं कोने पर बैठ गए. खुत्बा सुना और नमाज खत्म की. फिर अपनी जेब से कुछ रुपए निकालकर डोनेशन के लिए रखे गए प्लास्टिक के बक्से में डाल दिए.

उन्होंने अपनी मुट्ठी बंद की हुई थी ताकि यह पता न चले कि वह कितने रुपए बक्से में डाल रहे हैं. इस्लाम में कहा जाता है कि दान हमेशा गुप्त होना चाहिए. मस्जिद के बाहर वह लोगों से बहुत विनम्रता से मिले. उनकी खैरियत के बारे में पूछा.

जब भी मैं उस मस्जिद में शुक्रवार को पहुंचता, मुझे यही नजारा देखने को मिलता. एक बार मस्जिद के एक कर्मचारी ने मुझे बताया था कि अहमद पटेल यहां अक्सर आते हैं और खुले दिल से दान देते हैं.यह अहमद पटेल के काम करने के तरीके को दर्शाता था.

परोपकार का काम हो, ईमान हो या राजनीति, वह चुपचाप किया करते थे, विनम्रता और व्यक्तिगत पुट के साथ. यह उस छवि से बहुत अलग था, जो लुटियंस दिल्ली के गलियारों में उनके लिए रची गई थी- एक सौदेबाज राजनेता की, या किसी ऐसे घाघ शख्स की जो रहस्यमयी राजनीति में सिद्धहस्त है.
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सबको साथ लेकर चलोगे तो आगे बढ़ोगे

असलियत में अहमद पटेल के सार्वजनिक और निजी आचरण में बहुत फर्क नहीं था. वह प्रचार से दूर रहते थे लेकिन उनके संपर्क में आने वाले हर शख्स का कहना था कि वह बहुत फ्रैंक थे और बहुत नरम तरीके से बातचीत करते थे. कांग्रेसी सांसद जयराम रमेश के सहायक वरुण संतोष का कहना है, “वह (अहमद पटेल) कभी इस बात का अहसास नहीं होने देते थे कि वह इतने ताकतवर नेता हैं और सभी के साथ बहुत शालीनता से बात करते थे.”

एक और कांग्रेसी ने एक बार कहा था कि अहमद पटेल में “गॉडफादर होने का गुण था लेकिन उन्होंने सलाहकार बनना कबूल किया था.”

मैं जब-जब भी उनसे मिला, मुझे अहसास हुआ कि उनके बारे में जो मशहूर था कि वह एक ‘रहस्यमयी’ शख्सीयत हैं, वह सिर्फ अफवाह ही था.हां, उनके बारे में एक बात जो सच थी, वह यह कि वह देर रात लोगों से मिलते थे.

उनसे मेरी मुनासिब मुलाकात उनके घर पर रात एक बजे के करीब हुई थी. गुजरात के एक परिचित के जरिए मैं उनसे मिला जिसे वह भी जानते थे. उन्होंने मेरे काम, परिवार के बारे में पूछा. मैं कहां रहता हूं, और क्या अपने काम से खुश हूं. बातचीत के आखिर में उन्होंने दुआ की कि मैं कामयाब और खुशहाल रहूं. इसके बाद भी उनसे मुलाकात हुईं. अब वह अपने राजनीतिक नजरिए को और खुलकर साझा करते थे.

देर रात मुलाकातों के सिलसिले में कांग्रेस प्रवक्ता जयवीर शेरगिल ने ट्विटर पर लिखा है, “नंबर 23 में देर रात हुई मुलाकातों में एक बार मैंने उनसे कहा था- सर, आप इतनी रात को इतने सारे लोगों से मिलकर थक नहीं जाते? उन्होंने हंसकर कहा था- याद रखना, जयवीर. सबको साथ लेकर चलोगे तो आगे बढ़ोगे.”

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कई राज्यों के पार्टी वर्कर्स को नाम से याद रखते थे

कांग्रेस में बहुत से नेता अबस्ट्रैक्ट या पॉलिसी के लिहाज से चीजों को लेते हैं. लेकिन अहमद पटेल अनुभव से सोचते थे. उनकी समझ उनकी राजनीतिक निपुणता की देन थी और जमीनी स्तर पर लोगों से लगातार संवाद करने से उत्पन्न हुई थी. जैसा कि अच्छे राजनेताओं की खासियत होती है, वह कई राज्यों के पार्टी वर्कर्स को नाम से याद रखते थे. पार्टी से इतर, वह दूसरी पार्टियों के नेताओं, उद्योग जगत के दिग्गजों, नागरिक समाज के लोगों और पत्रकारों के लगातार संपर्क में रहते थे.

लेकिन उनके बारे में एक उल्लेखनीय बात यह थी कि चाहे वह अमीर उद्योगपति से बात करें, या साधारण कांग्रेसी कार्यकर्ता से, उनका स्वर हमेशा एक सा रहता था- खरा और मृदु.

कांग्रेस के संकटमोचन

कांग्रेस में जब राहुल गांधी को कमान सौंपी गई तो अहमद पटेल के साथ उनकी टीम के मतभेदों के बारे में बहुत कहा गया. हां, मतभेद होने की बात कुछ हद तक सच जरूर थी लेकिन बहुत कुछ अतिशयोक्ति भी था. सच्चाई तो यह थी कि उन दोनों के रिश्ते में एक दूसरे के लिए पूरा सम्मान था. उनके बीच का मतभेद विचारधारा या अहम का नहीं था, बल्कि काम करने के तरीके को लेकर था.

अहमद पटेल ह्यूमन टच देने में विश्वास करते थे- लोगों के साथ सीधे बात करते थे. लेकिन राहुल गांधी के नजदीकी लोग प्रोसेस ऑरिएंटेड थे और अहमद पटेल की इस सोच को आउटडेटेड मानते थे.उनके लिए अहमद पटेल के देर रात वाले दरबार और अनौपचारिक संवाद की संस्कृति व्यर्थ थी.

लेकिन धीरे-धीरे उन लोगों की सोच में बदलाव आया और खुद राहुल गांधी ने कई मौकों पर कहा कि वह अहमद पटेल की राजनीतिक समझ, संकट काल में उनकी युक्तियों के कायल हैं.

जयराम रमेश का कहना है कि, “वह शांत मिजाज के इनसान थे और तारणहार भी.”

कांग्रेस अपने संकटमोचन को हमेशा याद रखेगी. ऐसा शख्स जो अपने व्यक्तिगत समीकरणों और वाक पटुता से पार्टी को किसी भी संकट से उबार सकता था.

जो अलग-अलग किस्म के क्षेत्रों, उद्योग जगत, मीडिया, नागरिक समाज के लोगों, धार्मिक नेताओं, दूसरी पार्टियों के नेताओं से सुलह-समझौता कर लेता था. बेशक, कांग्रेस को यह सब हमेशा याद आएगा.

मुझे इस बात में भी शक नहीं कि मदर टेरेसा क्रेसेंट की मस्जिद भी अपने अकीदतमंद को हमेशा याद करेगी.

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