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2024 चुनाव में कितना कारगर है ओवैसी फैक्टर? किन राज्यों में हो सकता है AIMIM का असर?

असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी AIMIM के मौजूदा समय में दो लोकसभा सांसद हैं.

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असदुद्दीन ओवैसी (Asaduddin Owaisi) के नेतृत्व वाली ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहाद-उल-मुस्लिमीन (AIMIM) लोकसभा चुनाव 2024 के रण के लिए तैयार है. पार्टी ने इस बार 2019 के चुनाव से दो कदम आगे बढ़ाते हुए कई राज्यों में चुनाव लड़ने का ऐलान किया है.

ऐसे में सवाल है कि 96 साल पहले (साल 1927) बनी मजलिस-ए-इत्तेहाद-उल मुस्लिमीन, जिसने 1957, में अपने नाम में "ऑल इंडिया" जोड़ा, का हैदराबाद के बाहर कितना जनाधार है? AIMIM किन-किन राज्यों में असर डाल सकती है? और आगामी लोकसभा चुनाव में AIMIM कितना कारगर साबित हो सकती है?

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AIMIM का हैदराबाद के बाहर कितना जनाधार?

असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी AIMIM के मौजूदा समय में दो लोकसभा सांसद हैं. एक खुद हैदराबाद सीट से पार्टी प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी और दूसरा महाराष्ट्र की औरंगाबाद से इम्तियाज जलील. हालांकि, 2019 के आम चुनाव में पार्टी तीन जगहों पर चुनाव लड़ी थी जिसमें किशनगंज (बिहार), औरंगाबाद (महाराष्ट्र) और तेलंगाना (हैदराबाद) शामिल हैं लेकिन उसे किशनगंज सीट पर हार का सामना करना पड़ा था.

वोट शेयर के हिसाब से देखें तो AIMIM को हैदराबाद में 58.95 प्रतिशत, औरंगाबाद में 32.47 और किशनगंज में 26.78 फीसदी वोट मिले थे. किशनगंज में भले ही पार्टी तीसरे नंबर पर रही लेकिन उसका मत प्रतिशत 26.78 रहा था.

वहीं, 2014 के लोकसभा चुनाव में एआईएमआईएम तेलंगाना की चार सीट-मलकाजगिरी, सिकंदराबाद, भोंगीर, हैदराबाद और आंध्र प्रदेश की नंदयाल से मैदान में उतरी थी लेकिन हैदराबाद छोड़कर पार्टी कोई भी सीट जीत नहीं पाई. सिकंदराबाद सीट पर पार्टी को 14.46 प्रतिशत वोट मिले थे जबकि अन्य सीटों पर स्थिति बहुत खराब थी.

हालांकि, 2019 के लोकसभा चुनाव के बाद ओवैसी ज्यादा आक्रामक हुए और उन्होंने महाराष्ट्र में 2019 में हुए विधानसभा चुनाव में 14 सीटों पर प्रत्याशी उतारे,जिसमें दो पर उन्हें जीत मिली. इस दौरान एआईएमआईएम का मत प्रतिशत 1.34 था.

2020 में बिहार विधानसभा चुनाव में AIMIM को बड़ी सफलता मिली. पार्टी ने 20 सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारे जिसमें से 5 पर उसे जीत मिली. कई सीटों पर ओवैसी की पार्टी ने आरजेडी और जेडीयू को नुकसान भी पहुंचाया. हालांकि, बाद में ओवैसी की पार्टी के चार विधायक आरजेडी के संग चले गए.

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2021 के बंगाल चुनाव में AIMIM 6 सीटों पर मैदान में उतरी लेकिन उसे सफलता नहीं मिली, पार्टी का मत प्रतिशत 0.93 रहा. जबकि 2022 के यूपी विधानसभा चुनाव में ओवैसी की पार्टी ने 95 सीटों पर दावेदारी की लेकिन खाता नहीं खुला. पार्टी के चुनाव लड़ने से सबसे ज्यादा नुकसान समाजवादी पार्टी को हुआ. यहां ओवैसी की पार्टी को 2.01 प्रतिशत वोट मिले.

इसके बाद ओवैसी ने अपने गृह राज्य तेलंगाना में 9 सीटों पर उम्मीदवार उतारे और उसे 7 पर जीत हासिल हुई. यहां पार्टी का वोट शेयर 34.45 है.

यानी अब तक की तस्वीर ओवैसी और AIMIM दोनों के लिए बहुत सुखद नहीं है. अपने स्थापना के शताब्दी वर्ष के करीब पहुंचने वाली पार्टी फिलहाल हैदराबाद के अलावा, बहुत पांव नहीं पसार पाई है.

ऐसे में अगर ओवैसी को पूरे भारत में अपने वोट बेस (अल्पसंख्यकों और सामाजिक रूप से उत्पीड़ित वर्गों) के लिए प्रासंगिक होना है तो वह सिर्फ हैदराबाद को अपनी झोली में डालकर खुश नहीं हो सकते. जब तक वह अपना जनाधार अपनी सीट से आगे नहीं बढ़ाते, तब तक वह 'हैदराबाद के नेता' जैसी टिप्पणियों को ही आमंत्रित करते रहेंगे.

हालांकि, जितना ओवैसी बीजेपी और कांग्रेस पर आक्रमक होते हैं, उतना ही वो, एसपी, जेडीयू, आरजेडी, एनसीपी, टीएमसी और अन्य क्षेत्रीय दलों की भी मुखर होकर खिलाफत करते हैं. लेकिन उन्हें अभी तक इसका बहुत फायदा नहीं मिला है. हालांकि उन्हें बीजेपी की 'बी' टीम होने का लेबल भगवा विरोधी दलों ने जरूर दे दिया है.

AIMIM किन-किन राज्यों में असर डाल सकती है?

वैसे पिछले कुछ सालों से ओवैसी यूपी, बिहार, राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, असम, दिल्ली, हरियाणा, झारखंड, गुजरात, आंध्र प्रदेश जैसे राज्यों में जाकर प्रचार कर रहे हैं लेकिन आगामी लोकसभा चुनाव में ओवैसी ने उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, गुजरात, बंगाल में चुनाव लड़ने का ऐलान किया है. तमिलनाडु में AIMIM क्षेत्रीय दल AIADMK को समर्थन करेगी.

अब तक की जानकारी के अनुसार, ओवैसी बिहार की 11 सीटों पर चुनाव लड़ेंगे जिसमें किशनगंज, कटिहार, अररिया, पूर्णिया, दरभंगा, भागलपुर, काराकाट, बक्सर, गया, मुजफ्फरपुर और उजियारपुर सीट हैं.

गुजरात में AIMIM दो सीट- भरूच और गांधीनगर में अपने प्रत्याशी उतारेगी. गांधीनगर से बीजेपी के पूर्व अध्यक्ष और वर्तमान में देश के गृहमंत्री अमित शाह मैदान में हैं.

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उत्तर प्रदेश में AIMIM ने अपना दल (कमेरावादी) के साथ गठबंधन किया है. इस गठबंधन में बाबूराम पाल की राष्ट्रीय उदय पार्टी, प्रेमचंद बिंद की प्रगतिशील मानव समाज पार्टी भी शामिल है. इसे नाम दिया गया है पीडीएम न्याय मोर्चा यानि पिछड़ा दलित मुस्लिम न्याय मोर्चा.

हालांकि, AIMIM कितने सीटों पर चुनाव लड़ेगी, इसकी कोई आधिकारिक घोषणा नहीं हुई है लेकिन उम्मीद की जा रही है कि AIMIM 20 से 22 सीटों पर चुनाव लड़ेगी.

आंकड़ों के हिसाब से देखें तो यूपी में पूर्वांचल के कुछ हिस्से और पश्चिम में बड़ी संख्या में मुस्लिम वोटर्स है. राज्य में मुस्लिम आबादी 20 फीसदी के करीब है जबकि 80 में से 65 सीटों पर मुस्लिम वोटर्स 30 प्रतिशत के करीब है.

महाराष्ट्र में तो वैसे पार्टी का एक सांसद है लेकिन यहां भी AIMIM चार सीट पर प्रत्याशी उतार सकती है. बंगाल की चार और झारखंड की दो से तीन सीटों पर AIMIM अपने प्रत्याशी उतार सकती है. झारखंड में पार्टी उन सीटों पर प्रत्याशी उतार सकती है जहां मुस्लिम और आदिवासी वोटर्स निर्णायक भूमिका में हैं. वहीं, बंगाल में पार्टी बिहार के सीमांचल से सटे इलाकों पर प्रत्याशी दे सकती हैं. ये भी वो सीटें होंगे, जहां मुस्लिम वोटर्स 30 प्रतिशत से ज्यादा हैं.

लोकसभा चुनाव में AIMIM कितना कारगर साबित हो सकती है?

चुनाव लड़ने के ऐलान के बावजूद AIMIM अभी तक कई जगहों पर अपने प्रत्याशी और सीट का ऐलान नहीं कर पाई है. ऐसे में ये कहना अभी जल्दबाजी होगी कि वो चुनाव में कितना असर डालेगी लेकिन ये उम्मीद की जा सकती है कि अगर ओवैसी इन जगहों पर अपने प्रत्याशी उतारते हैं तो इसका नुकसान बीजेपी विरोधी दलों को हो सकता है. क्योंकि AIMIM के चुनाव लड़ने से मुस्लिम वोटर्स में बिखराव होगा जिसका लाभ बीजेपी को मिल सकता है.

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यूपी में पल्लवी पटेल से गठबंधन करने के कारण ओवैसी की निगाह कुर्मी वोट पर भी है, जो अपना दल (कामेरावादी) का बेस है. इसका नुकसान समाजवादी पार्टी को होने की उम्मीद है. बिहार में ओवैसी के लड़ने से सीधा नुकसान महागठबंधन के वोट पर पड़ेगा. कुछ ऐसी ही स्थिति झारखंड में भी बनने की संभावना है.

महाराष्ट्र में अगर ओवैसी अपने प्रत्याशी खड़े करते हैं तो इसका सीधा नुकसान इंडिया ब्लॉक को होगा क्योंकि यहां पर मुस्लिम आबादी 12 प्रतिशत के करीब है.

ओवैसी के सामने सबसे बड़ी चुनौती उनकी रणनीति है क्योंकि AIMIM उन्हीं सीटों पर अपने प्रत्याशी उतार रही है या उतारने का विचार कर रही है, जहां मुस्लिम मतदाता निर्णयाक भूमिका में हैं. दूसरी सबसे बड़ी समस्या ओवैसी के सामने, उनके चुनावी संचालन की शैली में विरोधाभास होना.

दरअसल, भले ही वह एक सच्चे तेलंगानावासी हैं और उन्हें राष्ट्रीय स्तर पर हैदराबाद के एक महत्वपूर्ण राजनीतिक चेहरे के रूप में देखा जाता है लेकिन तेलंगाना के अन्य लोकसभा क्षेत्रों में, जो ग्रेटर हैदराबाद का हिस्सा हैं, वहां ओवैसी अन्य दलों के लिए कोई चुनौती पेश नहीं कर पा रहे हैं हैं जबकि पड़ोसी राज्य आंध्र प्रदेश में भी अब तक ओवैसी का कोई जादू नहीं चल पाया है.

2023 में हुए तेलंगाना विधानसभा चुनाव में ओवैसी मुसलमानों को बीआरएस के पक्ष में वोट करने के लिए प्रेरित करने में असमर्थ रहे. बीआरएस के साथ तेलंगाना में उनकी मित्रता है. वर्तमान में तेलंगाना हो या उससे पहले संयुक्त आंध्र प्रदेश, असदुद्दीन ओवैसी स्टाइल ऑफ पॉलिटिक्स 'पिक एंड चूज' और सत्तारूढ़ दल के साथ मेल-मिलाप की रही है और 2024 में भी इसमें बदलाव की संभावना नहीं है.
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वैसे AIMIM मुखिया अपने युवावस्था में एक तेज गेंदबाज हुआ करते थे, लेकिन अब 54 साल की उम्र में, उन्हें चुनावी लाभ हासिल करने के लिए, स्पीड गन को प्रभावित करने के बजाय अपनी पॉलिटिकल लाइन एंड लेंथ पर अधिक ध्यान देना होगा तभी कुछ स्थिति में बदलाव संभव है, लेकिन मौजूदा सियासी हालात में ओवैसी अब तक ऐसा नहीं कर पाए हैं. ऐसे में अगर AIMIM ने अपनी रणनीति में बदलाव नहीं किया तो उन्हें हैदराबाद के बाहर प्रासंगिक बनना बहुत मुश्किल हो जाएगा.

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