एनसीपी नेता अजीत पवार (Ajit Pawar) इस महीने की शुरुआत में एक दिन के लिए पहुंच से बाहर क्या हुए, राजनीतिक गलियारों में अफवाहें फैल कि वह फिर से भारतीय जनता पार्टी के साथ हाथ मिला सकते हैं. मीडिया अंतहीन अटकलें लगा रही है कि राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी सुप्रीमो शरद पवार (Sharad Pawar) के भतीजे गुप्त रूप से मुख्यमंत्री पद पाने के लिए बीजेपी के साथ सौदा करने की कोशिश कर रहे हैं.
अजीत पवार महाराष्ट्र विधानसभा में विपक्ष के नेता हैं और उन्होंने खुद मीडियाकर्मियों से बात करते हुए अपने मजाकिया और व्यंग्यात्मक अंदाज में इन अफवाहों को हवा दी है.
यह भी आरोप लगाया गया कि उन्होंने दिल्ली में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के साथ गुपचुप तरीके से मुलाकात की थी. हालांकि इसकी पुष्टि कोई नहीं कर पाया है. साथ ही, प्रवर्तन निदेशालय ने महाराष्ट्र स्टेट कोऑपरेटिव (MSC) बैंक मनी लॉन्ड्रिंग मामले में चार्जशीट से पवार और उनकी पत्नी सुनेत्रा के नाम को आश्चर्यजनक रूप से हटा दिया है.
अजित पवार अपने चाचा की तरह एक ऐसे अप्रत्याशित राजनेता हैं, जिनका अगला कदम कोई नहीं जानता. इसके अलावा, उन्होंने पहले ही 2019 में देवेंद्र फडणवीस को मुख्यमंत्री स्वीकार कर खुद उप मुख्यमंत्री के रूप में शपथ लेने के लिए कुछ ऐसी ही (यद्यपि यह असफल रहा) तख्तापलट का प्रयास किया था. यही कारण है कि मौजूदा अफवाहों को इतना अधिक बल मिला है.
हालांकि, ऐसे चार कारण हैं जो यह बताते हैं कि यह विश्वास करना मुश्किल है कि बीजेपी और अजीत दादा गुट मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे को हटाने की योजना बना रहे हैं.
1. बीजेपी को ज्यादा फायदा नहीं
भले ही अजीत पवार तैयार हों, बीजेपी के पास शिंदे के नेतृत्व वाली शिवसेना से नाता तोड़ने का कोई कारण नहीं है. हालांकि सीएम पद वर्तमान में शिवसेना के पास है, लेकिन गठबंधन में बीजेपी का दबदबा है. पूरी संभावना है कि वह 2024 के विधानसभा चुनाव में शिंदे गुट से ज्यादा सीटें जीतेगी, जिसके बाद अगर गठबंधन को बहुमत मिलता है तो बीजेपी शीर्ष पद पर दावा पेश कर सकती है.
हालांकि यह सच है कि पांच साल तक मुख्यमंत्री रहने के बाद फडणवीस के लिए डिप्टी सीएम का पद डिमोशन था, लेकिन अब वह इसके बारे में ज्यादा कुछ नहीं कर सकते हैं. बीजेपी का शीर्ष नेतृत्व सिर्फ अपने राज्य के नेता की महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने के लिए एक और तख्तापलट नहीं करने जा रहा है.
साथ ही, महाराष्ट्र के मतदाताओं का एक वर्ग बीजेपी द्वारा उद्धव ठाकरे को मुख्यमंत्री पद से हटाने और शिवसेना को विभाजित करने में सक्रिय भूमिका निभाने के तरीके के लिए लगातार नाराज रहा है. अगर उद्धव ठाकरे को उनकी जनसभाओं में मिल रही प्रतिक्रिया कोई संकेत है, तो महाराष्ट्र के मतदाताओं की एक बड़ी संख्या उनके साथ सहानुभूति रखती है.
यदि बीजेपी शिंदे को छोड़कर पवार के साथ गठबंधन करती है, तो इससे भगवा पार्टी की छवि को और नुकसान होगा. शिंदे के सीएम बने रहने तक अजित पवार के गठबंधन में शामिल होने का सवाल ही नहीं उठता. गठबंधन में तीन महत्वाकांक्षी नेताओं के लिए जगह नहीं है क्योंकि शीर्ष पद केवल दो हैं.
2. विधानसभा चुनाव केवल डेढ़ साल दूर हैं
महाराष्ट्र विधानसभा का कार्यकाल अक्टूबर 2024 में समाप्त होगा. यानी मौजूदा सरकार केवल डेढ़ साल चलने वाली है. ऐसे में न तो अजीत पवार और न ही बीजेपी इतना कुछ दांव पर लगाना चाहेगी.
साथ ही महाराष्ट्र ने मौजूदा कार्यकाल में अपनी राजनीति में पहले ही काफी अस्थिरता देखी है. जो कोई भी अगली 'तख्तापलट' की कोशिश करेगा, उसे राज्य के मतदाताओं शायद ही पसंद करें.
और हमें यह भी स्वीकार करना चाहिए कि- शरद पवार उद्धव ठाकरे नहीं हैं. शरद पवार 1967 में पहली बार विधायक बने थे और वो पिछले पांच दशकों से महाराष्ट्र की राजनीति में हावी हैं - अगर अजीत दादा शरद पवार की पीठ के पीछे तख्तापलट की योजना बनाते हैं, तो 2019 की तरह वे फिर से हार सकते हैं.
3. कहीं पे निगाहें कहीं पे निशाना?
बात मुख्यमंत्री पद की हो रही है लेकिन लगता है कि अजित पवार ने इस अफवाह की चक्की को कुछ और ही मकसद से हवा दी है. कहा जा रहा है कि अगले साल का लोकसभा और विधानसभा चुनाव आखिरी चुनाव होगा जिसमें शरद पवार सक्रिय रूप से भाग लेंगे क्योंकि वह पहले से ही 82 साल के हैं. उनका उत्तराधिकारी कौन होगा, इसका जवाब अभी साफ नहीं है. क्या कमान उनके भतीजे अजीत पवार, बेटी सुप्रिया सुले या जयंत पाटिल जैसे बाहरी व्यक्ति के पास जाएगी?
चूंकि सीएम पद, वह सबसे बड़ा पद है जो एनसीपी नेता (जो शरद पवार नहीं है) के लिए लक्ष्य बन सकता है. अगर यह मान लिया जाए कि यह पद एनसीपी के सबसे बड़े नेता के पास जाएगा, तो ऐसे में अजीत पवार ने पहले से ही अपने पत्ते खेलना शुरू कर दिया है.
सुले की सबसे बड़ी खूबी यह है कि वह सीनियर पवार की बेटी हैं. उन्होंने एक सक्षम सांसद के रूप में भी अपना हुनर दिखाया है. हालांकि, 2006 से एक सांसद के रूप में, उन्हें राज्य की राजनीति के लिए एक बाहरी व्यक्ति माना जाता है. वह अजीत पवार से भी 10 साल छोटी हैं.
वहीं, अजीत पवार राज्य की राजनीति में शुरू से ही सक्रिय रहे हैं. वह 1991 में विधायक के रूप में चुने गए थे और तब से उस क्षमता में सेवा कर रहे हैं. उन्होंने दो बार उपमुख्यमंत्री के रूप में भी काम किया है, एक बार पृथ्वीराज चव्हाण के नेतृत्व में और एक बार उद्धव ठाकरे के नेतृत्व में.
4. महा विकास अघाड़ी के लिए एक संदेश?
रामराव आदिक से लेकर गोपीनाथ मुंडे से लेकर छगन भुजबल तक, महाराष्ट्र ने कई डिप्टी सीएम देखे हैं, लेकिन उनमें से कोई भी शीर्ष पद पर चढ़ने में कामयाब नहीं हुआ. अजित पवार निश्चित रूप से उस भ्रम को तोड़ना चाहेंगे.
पिछली महा विकास अघाड़ी सरकार के सीएम के रूप में, उद्धव ठाकरे खुद को गठबंधन के नेता के रूप में सोचना पसंद कर सकते हैं. लेकिन शिंदे गुट के हाथों अधिकांश विधायक और कैडर खोने के बाद, ठाकरे समूह की शक्ति बहुत कम हो गई है.
ऐसे में अगर अगले विधानसभा चुनाव में एनसीपी सबसे ज्यादा विधायकों वाली पार्टी के रूप में उभरती है, तो अजीत पवार चाहेंगे कि सीएम पद एनसीपी को मिले, यानी खुद उन्हें मिले.
हाल ही में एक मराठी मीडिया हाउस को दिए एक इंटरव्यू में, अजीत पवार ने इस तथ्य पर निराशा व्यक्त की कि 2004 में, जब एनसीपी ने कांग्रेस से दो अधिक सीटें जीती थीं, तब भी सीएम पद कांग्रेस के पास चला गया था. 1999 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस से अलग होकर बनी पार्टी- एनसीपी को कभी भी महाराष्ट्र की मुख्यमंत्री की कुर्सी नहीं मिली है. अजीत पवार उस बदकिस्मती को भी तोड़ना चाह सकते हैं.
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