टीवी और अखबारों को दिए इंटरव्यू में बहुजन समाज पार्टी (BSP) के नंबर दो नेता आकाश आनंद (Akash Anand) ने यह साफ कर दिया था कि बीजेपी की नीतियों के खिलाफ जब वह आवाज उठाएंगे तो उन्हें पलटवार का सामना भी करना पड़ेगा. आकाश आनंद को शायद ही इसकी उम्मीद रही होगी कि सत्ताधारी बीजेपी के खिलाफ आवाज उठाने की "सजा" उन्हें खुद मायावती (Mayawati) से मिलेगी.
जितनी तेजी से मायावती ने आकाश आनंद को अपना उत्तराधिकारी बनाया, उसी तेजी से 7 मई को एक अप्रत्याशित फैसले में बीएसपी सुप्रीमो ने आकाश आनंद को नेशनल कोऑर्डिनेटर और अपने उत्तराधिकारी की जिम्मेदारी से हटाने का ऐलान किया. साल 2017 से राजनीति में सक्रिय आकाश आनंद को मायावती ने न सिर्फ इन दो अहम जिम्मेदारियों से हटाया बल्कि उन्हें अपरिपक्व/ इमेच्योर भी करार दिया.
अपनी राजनीतिक पहचान खोने के कगार पर पहुंच चुकी बीएसपी को पुनर्जीवित करने का प्रयास कर रहे आकाश आनंद 2024 लोकसभा चुनाव में लगातार रैलियों और अपने तेज-तर्रार भाषणों से लोगों के बीच पहुंच रहे हैं.
जिस राजनीतिक धार की उम्मीद लोग कई सालों से मायावती से लगाकर बैठे थे वह अब उन्हें आकाश आनंद में देखने को मिल रही थी. लेकिन राजनीतिक पिच पर तगड़ी बैटिंग कर रहे आकाश आनंद अचानक 'क्लीन बोल्ड' हो गए हैं.
इसके पीछे सीतापुर में हुई एक रैली के दौरान उनका एक भाषण और कभी दलितों की मसीहा माने जाने वालीं यूपी की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती का कथित राजनीतिक समझौता कारण माना जा रहा है.
लगातार मुद्दों पर बीजेपी को घेरते रहे आकाश आनंद
29 अप्रैल को सीतापुर में अपनी रैली के दौरान दिए गए कथित विवादित भाषण के बाद आकाश आनंद सार्वजनिक मंच पर दिखाई नहीं दिए. बीजेपी की नीतियों पर लगातार प्रहार कर रहे आकाश आनंद ने सत्ताधारी दल पर सबसे तीखा हमला इसी रैली में किया.
उन्होंने कहा था कि:
"भाजपा की सरकार बुलडोजर की सरकार नहीं, आतंकवादियों की सरकार है. अपनी अवाम को गुलाम बनाकर रखा है. ऐसी सरकार का समय आ गया है अब खत्म होने का. अब समय आ गया है बहुजन समाज पार्टी की सरकार बनाकर बहनजी को प्रधानमंत्री बनाकर उत्तर प्रदेश में बीएसपी का राज कायम करने का."
आकाश आनंद ने अपने भाषणों से जो राजनीतिक तापमान बढ़ाया था उसकी गर्मी बीजेपी तक पहुंच गई.
सीतापुर पुलिस ने इस भाषण पर संज्ञान लेते हुए बीएसपी के नेशनल कोऑर्डिनेटर आकाश आनंद और सीतापुर के बीएसपी जिला अध्यक्ष विकास राजवंशी समेत पांच नामजद और 30 से 35 अज्ञात लोगों पर भारतीय दंड संहिता की धारा 171(ग), 153-B, 188, 505(2) और लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम 1950,1951,1989 की धारा 125 के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया. मुकदमा दर्ज होने के बाद आकाश आनंद का चुनावी कैंपेन थम सा गया.
सीतापुर से पहले कौशांबी, अंबेडकरनगर, आजमगढ़ और नगीना में हुए चुनावी सभाओं में आकाश आनंद ने इलेक्टोरल बॉन्ड, पेपर लीक, बेरोजगारी, महिलाओं के खिलाफ अत्याचार और राशन के मुद्दों पर बीजेपी को लगातार घेरा. यह तेवर बीएसपी सुप्रीमो मायावती के पिछले कुछ सालों की चिर-परिचित शैली से काफी अलग नजर आ रहा था.
27 अप्रैल को अंबेडकरनगर में एक रैली को संबोधित करते हुए आकाश आनंद ने कहा:
"आपको पता है आपके साथ पिछले 10 सालों में क्या हुआ है? 15 लाख का वादा किया था. आपको पता है आपकी यूपी सरकार के ऊपर कितना कर्जा है? आप लोग जानते हैं कि जब-जब यहां यूपी में एक बच्चा पैदा होता है तो आज वो साढ़े तीन लाख कर्जे के साथ पैदा होता है. सरकार ने इतना कर्ज ले लेकर यहां की जनता को भिखारी बना दिया. गरीब बना दिया."
साल 2019 के बाद मायावती का बीजेपी के प्रति रवैया नरम ही रहा है. कभी ट्वीट तो कभी प्रेस कॉन्फ्रेंस के माध्यम से मायावती ने बीजेपी के ऊपर निशाना जरूर साधा लेकिन उसकी धार वैसी नहीं थी जिससे बीजेपी को कोई परेशानी हो. आकाश आनंद इसी कमी को पूरा कर रहे थे.
इसकी एक झलक आजमगढ़ में बीएसपी की एक रैली में भी देखने को मिली, जहां मंच से आकाश आनंद ने बीजेपी पर निशाना साधते हुए कहा, "जो सरकार अपने बच्चों को भूखा रखे, जो सरकार अपनी बहन बेटियों पर अत्याचार होने दे, जो सरकार अपने युवाओं को बेरोजगार रखे, जो सरकार अपने आवाम को राशन के नाम पर गुलाम बना कर रखे वो सरकार अब बदलनी है साथियों."
क्या है मायावती की मजबूरी?
लंदन से पढ़ाई करके लौटे आकाश आनंद ने 2017 में राजनीति में कदम रखा. अपनी बुआ मायावती से राजनीति का ककहरा सीख रहे आकाश आनंद 2019 में सक्रिय राजनीति में दिखे जहां उन्होंने मायावती की गैर-मौजूदगी में चुनावी कमान भी संभाली थी. धीरे-धीरे पार्टी के अंदर आकाश आनंद की जिम्मेदारियां और कद, दोनों बढ़ता गया.
पहले उनको नेशनल कोऑर्डिनेटर और फिर मायावती ने उन्हें अपना उत्तराधिकारी घोषित कर दिया. अपने भाषणों से लोगों में लोकप्रिय हो रहे आकाश आनंद को अब अचानक से साइड लाइन कर दिया गया है. इसके पीछे मायावती की क्या मजबूरी या मंशा है, इसको समझने के लिए हमने उत्तरप्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार रतन मणिलाल से बातचीत की.
उन्होंने कहा,
"मायावती ने इतने सालों से आकाश आनंद को जो तैयार किया था उसमें उन्होंने आकाश को जातीय समीकरणों के बारे में बताया होगा, कुछ राजनीति इतिहास बताया होगा और उसके साथ ही बीएसपी का जो राजनीतिक स्टैंड रहा है वह भी बताया होगा. चुनाव में भाषणों के दौरान आकाश आनंद ने वह बातें कह दी होंगी जो उनको राजनीतिक रूप से तैयार करने के दौरान उनसे नहीं कहा गया था."
राजनीतिक विशेषज्ञों का यह भी मानना है कि आकाश आनंद को हटाकर मायावती ने उन्हें बचाया है और आकाश की अगुवाई में जो नेतृत्व तैयार करना चाहती हैं उसे एक और मौका दिया है.
वरिष्ठ पत्रकार रतन मणिलाल ने कहा कि, "मायावती के ऊपर जो लीगल मामले चल रहे हैं उसमें वह बची हुई हैं या निपटती आई है. जिस तरीके से उन्होंने आकाश आनंद को अपना उत्तराधिकारी बनाया था, वह नहीं चाहेंगी कि आकाश भी अपने करियर की शुरुआत में ऐसे मामलों में घिरता नजर आए. आकाश के ऊपर FIR हुई थी और हो सकता है चुनाव आयोग इसका संज्ञान लेकर इनके प्रचार पर रोक लगा दे. अभी भी तीन हफ्ते का चुनाव प्रचार बाकी है. ऐसा होने से पहले ही मायावती ने उन्हें हटा लिया. शायद ऐसी स्थिति से निपटने के लिए मायावती ने आकाश आनंद को तैयार नहीं किया था."
आलोचकों के एक वर्ग का यह भी मानना है कि मायावती और बीएसपी, सत्ताधारी बीजेपी के इशारों पर काम कर रही है. इन आरोपों को कई बार बल मिला.
अभी हाल ही में बीएसपी ने बस्ती और जौनपुर सीट पर अपने प्रत्याशी बदले. बस्ती लोकसभा सीट पर बीजेपी के ब्राह्मण प्रत्याशी के सामने अपने ब्राह्मण प्रत्याशी दयाशंकर मिश्रा को हटाकर कुर्मी चेहरा लवकुश पटेल को खड़ा किया.
जौनपुर में माफिया और पूर्व सांसद धनंजय सिंह की पत्नी श्रीकला रेड्डी की दावेदारी वापस होने के बाद पार्टी ने मौजूदा सांसद श्याम सिंह यादव को अपना प्रत्याशी बनाया. इन दोनों फैसलों में कहीं ना कहीं बीजेपी की स्थिति मजबूत होती दिख रही है.
बीजेपी से लगातार मोर्चा ले रहे आकाश आनंद को हटाए जाने के बाद एक बार फिर इन आरोपों को हवा मिली. हालांकि बीजेपी के साथ बीएसपी के बैकडोर समझौते वाले आरोपी पर सभी सहमत नहीं है.
"मुझे नहीं लगता मायावती इस समय कोई समझौता करने की स्थिति में हैं. जिस तरीके से उन्होंने प्रत्याशी खड़े किए हैं उससे वह एनडीए और इंडिया गठबंधन, दोनों को नुकसान पहुंचा रही हैं."रतनमणि लाल
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