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मेरे हाथ में तलवार, लेकिन चलाएं नहीं, यह संभव नहीं- अखिलेश

यूपी में सपा की सरकार एक बार फिर लौटकर आएगी. साढ़े चार साल में हमने देश में कई उदाहरण पेश किए हैं: अखिलेश यादव

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समाजावादी पार्टी के सिल्वर जुबली फंक्शन में वही पुराना स्क्रिप्ट फिर से दुहराया गया. हल्की फुल्की नोकझोंक हुई, भाईचारा दिखाया गया, कार्यकर्ताओं को धन्यवाद दिया गया, और नेताजी नेताजी के नारे लगे.

‘कुछ लोगों को विरासत में मिली दिल्ली’

पार्टी अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव के भाई और उत्तर प्रदेश सरकार में पूर्व मंत्री शिवपाल यादव की वही पुरानी बात- नेताजी (मुलायम सिंह यादव) का कोई अपमान करेगा तो वो इसको बर्दास्त नहीं करेंगे. अपने भाषण में उन्होंने अपने भतीजे और राज्य के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की चुटकी भी ली- कुछ लोगों को संघर्ष से सत्ता मिलती है और किसी को विरासत में. विरासत वाली बात शायद अखिलेश के लिए ही थी.

सीएम ने भी दिया जवाब !

लेकिन, मुख्यमंत्री का जवाब काबिले गौर है. उन्होंने कहा कि उनके हाथ में तलवार दी जाती है, लेकिन उसे चलाने से मना कर दिया जाता है. इस बात पर खूब ताली बजी. उनका यह कहना कि ऐसा हो नहीं सकता, यह साफ बताता है कि अपने परिवार वालों और सपा के बाकी नेताओं को वह यह संकेत देना चाहते हैं कि अब पार्टी में और सरकार में वही होगा जो वो चाहेंगे.

लालू ने की सुलह कराने की कोशिश

सिल्वर जुबली कार्यक्रम में मुलायम भी बोले और लालू प्रसाद यादव भी, पूर्व प्रधानमंत्री एच डी देवेगॉड़ा का भी भाषण हुआ और राष्ट्रीय लोक दल के अजित सिंह भी बोले. इसी दौरान लालू यादव ने चाचा-भतीजा के बीच सुलह कराने की भी कोशिश की. मंच में अखिलेश ने शिवपाल के पैर छुए.

लेकिन, अखिलेश ने यह कह कर कि उनके हाथ में तलवार होगा तो उन्हें उसे चलाने का अधिकार हो साफ संकेत दे दिया.

संकेत साफ है. देर से ही सही पुराने समाजवादियों ने मान लिया है कि अब चुनाव में पार्टी की नैय्या पार लगाने की जिम्मेदारी अखिलेश के पास ही रहेगी. इस संकेत से बहुत कुछ साफ होता है. सबसे पहला यह कि दूसरी पार्टियों से अगर गठबंधन हो तो किन शर्तों पर हो यह अखिलेश ही तय करेंगे.

कन्फ्यूजन हुआ दूर?

इससे दूसरी पार्टियों का कंफ्यूजन भी दूर होगा. उन्हें लग रहा था कि मुलायम परिवार के हाल के झगड़ों के बाद अगर समाजवादी पार्टी का बंटवारा होता है कि एलायंस की बातचीत किस गुट से की जाए. इस बात पर भी कंफ्यूजन था कि संभावित बंटवारे के बाद कौन का गुट ज्यादा मजबूत होगा, किसके साथ कौन होगा इसका आंकलन मुश्किल हो सकता था. अब संभावित सहयोगियों के मन से भी कंफ्यूजन दूर हो जाएगा. वोटरों के मन का कंफ्यूजन दूर हो सकता है. उन्हें अब पता है कि समाजवादी पार्टी का कौन सा चेहरा सामने रहने वाला है.

फंक्शन में दूसरे नेताओं का शामिल होना इस बात का संकेत देता है कि चुनाव से पहले उत्तर प्रदेश में सपा की अगुवाई में एक गठबंधन बनाने की कोशिश अब तेज होने वाली है. क्या यह गठबंधन गेम चेंगर होगा? यह इस बात पर निर्भर करेगा कि इसमें कौन-कौन जुड़ता है और इनमें किस तरह का तालमेल बन पाता है.

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