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अमित शाह@3: बीजेपी के ‘चाणक्य’, विपक्ष के लिए बुरे सपने से कम नहीं

राजनीतिक शतरंज में अमित शाह की चाल को समझना कांग्रेस समेत सभी के लिए टेढ़ी खीर है.

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अमित शाह के बीजेपी अध्यक्ष बनने के बाद पिछले तीन सालों में बीजेपी-कांग्रेस के ‘चाणक्यों’ के बीच इससे बड़ा राजनीतिक युद्ध देखने को कभी नहीं मिला. शायद ये पहली बार है, जब उनके विरोधी और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अहमद पटेल उनकी जगह अखबारों और चैनलों की सुर्खियों में छाए रहे.

राज्यसभा चुनावों में अमित शाह की तमाम कोशिशों के बावजूद अहमद पटेल इस राजनीतिक शतरंज में जीत गए. इस दौर के शतरंज के बड़े खिलाड़ी अमित शाह की चाल अपने ही गढ़ में उल्टी पड़ गई.

राज्यसभा में अहमद पटेल का पहुंचना बीजेपी के लिए झटका जरूर हो, लेकिन अमित शाह की एंट्री भी बीजेपी के मौजूदा सांसदों के वजन को और बढ़ाने वाली साबित होगी.

अमित शाह ने सांसद पद के लिए पहली बार चुनाव लड़ा है. पांच बार विधायक रह चुके अमित शाह 2014 लोकसभा चुनावों के बाद से ही बीजेपी को लगातार मिल रही सफलताओं के रणनीतिकार और सूत्रधार रहे हैं.
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अगस्त 2014 में बने बीजेपी अध्यक्ष

2014 के लोकसभा चुनावों में बीजेपी को ऐतिहासिक जीत मिली. 30 सालों में पहली बार बीजेपी के नेतृत्व में केंद्र में पूर्ण बहुमत की सरकार बनी. ये वही समय था, जब अमित शाह के बीजेपी अध्यक्ष बनने की जमीन तैयार हो गई थी. बीजेपी अध्यक्ष राजनाथ सिंह के मंत्रिमंडल में शामिल होने के बाद शाह को पार्टी का 15वां अध्यक्ष बनाया गया.

'कांग्रेस मुक्त भारत' का जो नारा पीएम नरेंद्र मोदी ने लोकसभा चुनावों में दिया था, अमित शाह उसे अमलीजामा पहनाने का पक्का इरादा करके काम में जुट गए.

पार्टी अध्यक्ष बनने के बाद पहले ही साल बीजेपी ने पांच में से चार विधानसभा चुनाव जीते. महाराष्ट्र, झारखंड, हरियाणा में बीजेपी के मुख्यमंत्री बने, तो जम्मू-कश्मीर में उपमुख्यमंत्री के पद के साथ बीजेपी गठबंधन सरकार का हिस्सा बनी. शाह ने यूपी में भी प्रचंड बहुमत के साथ बीजेपी की सरकार बनाने की कामयाबी हासिल की. वे एक साथ कई मोर्चों पर ध्यान देते हुए चाल चल रहे हैं.

2015 में दिल्ली और बिहार विधानसभा चुनावों में हुई करारी हार से सीख लेकर उन्होंने पार्टी को एक नए मुकाम पर पहुंचाया. इसका असर जुलाई, 2017 में बिहार में राजनीतिक उठापटक के दौरान दिखा, जब बीजेपी ने एंट्री लेकर गठबंधन में सरकार बना ली. नीतीश कुमार का फिर से बीजेपी के साथ आना 2019 लोकसभा चुनावों के लिए काफी अहम माना जा रहा है.

हर दिन 541 KM का सफर

2014 में बीजेपी और उसके सहयोगियों की 6 राज्यों में सरकार थी. ये अमित शाह ही हैं, जिनकी वजह से कांग्रेस के बाद बीजेपी ऐसी पहली पार्टी बन गई है, जिसकी केंद्र में सरकार होने के साथ-साथ 18 राज्यों में भी सरकार है.

इसमें से 5 राज्यों में सहयोगियों के साथ और 13 में पूर्ण बहुमत के साथ सरकार बनाई है.

देश की करीब 70 फीसदी आबादी पर बीजेपी का शासन चल रहा है. इनमें से सात राज्यों में पहली बार बीजेपी सत्ता में आई है.

इन तीन सालों में अमित शाह कभी बैठे दिखाई नहीं दिए. कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी और असम से लेकर गुजरात तक वो पार्टी की जड़ें मजबूत करने में लगे रहे. पार्टी के मुताबिक, उन्होंने तीन सालों में औसतन रोजाना 541 किलोमीटर की यात्रा की.

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शाह की ‘सोशल इंजीनियरिंग’

ये प्रधानमंत्री और अमित शाह की प्लानिंग का ही नतीजा है कि बीजेपी ने समाज में आर्थिक और सामाजिक तौर पर पिछड़े वर्गों तक अपनी पहुंच बनाई है.

कभी ब्राह्मण और बनियों की पार्टी कहलाने वाली बीजेपी ने इसका उदाहरण सबसे पहले यूपी से दिया. केशव प्रसाद मौर्य को यूपी बीजेपी का अध्यक्ष और फिर डिप्टी सीएम बनाकर ये साफ कर दिया कि यहां पिछड़ी जातियों के लिए अवसर के दरवाजे खुले हैं.

हाल ही में यूपी पहुंचे अमित शाह के सोशल इंजीनियरिंग का इफेक्ट भी दिखा. एसपी, बीएसपी, कांग्रेस से बागी हुए नेता बीजेपी में शामिल हो गए.

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क्या है 2019 का एजेंडा?

अमित शाह पार्टी का जमीनी ढांचा मजबूत करने की कोशिश में लगे हुए हैं. तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, ओडिशा, केरल और पश्चिम बंगाल जैसे पारंपरिक तौर से कमजोर राज्यों पर शाह ने ध्यान देना शुरू किया है. इसका असर भी दिखना शुरू हो गया है. एक-एक कर अब तक एनडीए के छाते के नीचे बीजेपी के साथ तीन दर्जन से ज्यादा पार्टियां जुड़ चुकी हैं.

शाह के एजेंडे में बंगाल की 42, तमिलनाडु की 39, आंध्र प्रदेश की 25, उड़ीसा की 21, केरल की 20, तेलंगाना की 17 सीटें प्रमुख हैं. कुल मिलाकर ये 161 सीटें बनती हैं, जहां 2014 में बीजेपी ने महज 7 सीटें जीती थीं.

अगर बढ़ते जनसमर्थन को पार्टी अध्यक्ष की लोकप्रियता से मापा जाए, तो अमित शाह सबसे सफल बीजेपी अध्यक्ष हैं. उनके बीजेपी अध्यक्ष बनने के बाद से पार्टी डिफेंसिव की बजाय आक्रमक दिखने लगी है. ये ही वजह है कि विपक्ष को घेरने की उनकी रणनीति की वजह से पार्टी कार्यकर्ताओं का मनोबल भी काफी ऊंचा हो गया है. हालात ये हैं कि बीजेपी का ‘कांग्रेस मुक्त भारत’ का नारा अब ‘विपक्ष मुक्त भारत’ का बन गया है.

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