यूपी चुनाव में बीजेपी ने करीब तीन-चौथाई बहुमत हासिल कर तमाम राजनीतिक विश्लेषकों का ध्यान अपनी ओर खींचा है. ऐसे में लोगों के जेहन में पहला सवाल यही सामने आता है कि क्या इस चुनाव में भी जीत में बाहुबल और धनबल की अहम भूमिका रही या इस बार तस्वीर थोड़ी बेहतर हुई है.
ताजा आंकड़े बताते हैं कि नई विधानसभा में बाहुबलियों की तादाद में अच्छी-खासी कमी आई है. लेकिन पिछले विधानसभा चुनाव की तुलना में पैसे का जोर बढ़ा है.
यूपी में 2012 में चुनाव जीतने वाले विधायकों में 47 फीसदी पर क्रिमिनल केस दर्ज थे. 2017 में यह आंकड़ा घटकर 36 फीसदी रह गया है. हालांकि सीरियस क्रिमिनल केस वाले विधायकों के आंकड़े में 2 फीसदी का इजाफा हुआ है. देखें ग्राफिक्स
इन गंभीर अपराधों में हत्या, हत्या की कोशिश, रेप, अपहरण, सांप्रदायिक दंगे, चुनावी हिंसा, महिलाओं पर अत्याचार जैसे मामले शामिल हैं.
यह एक मानी हुई बात है कि आज के दौर में चुनाव जीतने में पैसों का रोल लगातार बढ़ता ही जा रहा है. ताजा आंकड़े भी इस बात की पुष्टि करते हैं.
2012 के चुनाव में विधानसभा पहुंचने वाले विधायकों में 67 फीसदी करोड़पति थे. 2017 में इस आंकड़े में काफी बढ़ोतरी हुई है. नई विधानसभा पहुंचने वाले 80 फीसदी विधायक करोड़पति हैं. देखें ग्राफिक्स
इन आंकड़ों से किसी बड़े नतीजे तक पहुंचना जल्दबाजी होगी, फिर भी इतना माना जा सकता है कि आने वाले दौर में लोग विकास और काम की बात पर वोट डालने को प्रेरित होंगे. अगर ऐसा हुआ, तो शायद दागियों के दिन धीरे-धीरे लदने शुरू हो जाएं.
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