दिल्ली के मुख्यमंत्री और आम आदमी पार्टी (AAP) के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) का 21 जून को अमृतसर दौरा पंजाब में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए अहम साबित हुआ. दो महत्वपूर्ण घटनाक्रम हैं, जो संकेत देते हैं कि आम आदमी पार्टी 2017 के विधानसभा चुनावों में हुई गलतियों को सुधारने की कोशिश कर रही है:
1. मीडिया से बात करते हुए, केजरीवाल ने स्पष्ट रूप से घोषणा की कि अगर AAP सत्ता में आती है तो पंजाब में एक सिख मुख्यमंत्री बनेगा. उन्होंने प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा, “पंजाब के मुख्यमंत्री सिख समुदाय से होंगे. ये कोई ऐसा होगा जिसपर पूरा पंजाब गर्व महसूस करे. हमें लगता है कि ये सिख समुदाय का अधिकार है.”
साल 2017 में, AAP ने मुख्यमंत्री का चेहरा साफ नहीं किया था. AAP ने इस मामले को अस्पष्ट छोड़ दिया था, जिससे अटकलें लगाई गई थीं कि केजरीवाल खुद इस पद की रेस में हैं.
हो सकता है कि किसी गैर-पंजाबी के मुख्यमंत्री बनने की आशंका ने AAP के सरकार बनाने की संभावनाओं को नुकसान पहुंचाया हो. अब, ये स्पष्ट कर के कि AAP का मुख्यमंत्री चेहरा एक सिख होगा और “कोई ऐसा व्यक्ति जिसपर पंजाब को गर्व महसूस हो,” केजरीवाल ने उन चिंताओं को दूर कर दिया है.
2. AAP ने पूर्व IG पुलिस कुंवर विजय प्रताप सिंह को पार्टी में शामिल किया. पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने उन्हें बरगारी घटना और बहबल कलां में पुलिस फायरिंग में विशेष जांच दल के प्रमुख के रूप में नियुक्त किया था, जिसमें 2015 में SAD-BJP के कार्यकाल के दौरान दो लोग मारे गए थे.
हालांकि, पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट द्वारा SIT की रिपोर्ट खारिज किए जाने के बाद कुंवर विजय ने इस्तीफा दे दिया था. उनके आने से बरगारी मामले में कथित निष्क्रियता पर AAP को कैप्टन अमरिंदर सिंह के खिलाफ मदद मिलेगी.
कौन-कौन AAP में हो सकता है शामिल?
ऐसी अटकलें हैं कि और भी हाई प्रोफाइल नाम AAP में शामिल हो सकते हैं. जिन नामों पर चर्चा हो रही है, उनमें बीजेपी के वरिष्ठ नेता लक्ष्मीकांत चावला और अनिल जोशी हैं. ये दोनों अमृतसर से हैं.
केजरीवाल ने चावला से इस साल की शुरुआत में अपने आखिरी पंजाब दौरे के दौरान मुलाकात की थी. चावला और जोशी दोनों ही किसान प्रदर्शन के प्रति बीजेपी के रवैये के खिलाफ खुलकर सामने आए थे.
दिलचस्प बात ये है कि शिरोमणि अकाली दल-संयुक्ता के नेता सुखदेव ढींडसा और रंजीत सिंह ब्रह्मपुरा ने भी 21 जून को अमृतसर में हरमंदिर साहिब का दौरा किया. इससे अटकलें लगाई गईं कि वो अपने अकाली दल के गुट का AAP में विलय कर सकते हैं. सुखबीर बादल से अलग होने के बाद दोनों नेताओं ने अपना-अपना अकाली दल बनाया था.
हॉकी खिलाड़ी से नेता बने परगट सिंह, जो वर्तमान में जालंधर छावनी से कांग्रेस विधायक हैं, AAP में शामिल हो सकते हैं. वो कांग्रेस में कैप्टन अमरिंदर के लगातार आलोचक रहे हैं.
क्या हैं इसके मायने?
ऐसा लगता है कि मुख्यमंत्री के चेहरे के बारे में चिंताओं को दूर करने के अलावा, AAP पंजाब में अपनी छवि को थोड़ा बदलने की कोशिश कर रही है. 2017 के चुनाव में, AAP को प्रोपेगैंडा का सामना करना पड़ा था कि उसके खालिस्तान समर्थकों के साथ संबंध थे. चुनाव से ठीक पहले की शाम में मौर मंडी विस्फोट ने पुरानी आशंकाओं को फिर से जगा दिया और कहा जाता है कि इससे हिंदू वोटर्स का रुझान कांग्रेस की तरफ चला गया.
बेशक, बाद में विस्फोट में डेरा सच्चा सौदा के फॉलोअर्स का नाम सामने आया और पता चला कि खालिस्तान समर्थकों का इससे कोई लेना-देना नहीं था. लेकिन तब तक नुकसान हो चुका था.
AAP ने केवल ग्रामीण मालवा में अच्छा प्रदर्शन किया, जहां जाट सिख किसानों का वर्चस्व है और ज्यादातर हिंदू बहुल क्षेत्रों में प्रदर्शन खराब रहा. ऐसा लगता है कि AAP खासतौर पर हिंदू वोटर्स को लुभाने की कोशिश कर रही है. कुंवर विजय प्रताप सिंह जैसे वरिष्ठ पुलिस अधिकारी को शामिल करना भी 2017 के ‘खालिस्तान समर्थक’ टैग को हटाने की एक कोशिश नजर आती है.
ये साफ है कि AAP अब उन इलाकों में भी पहुंच बढ़ाने की कोशिश कर रही है, जहां वो कमजोर है - जैसे माझा, डोबा और शहरी क्षेत्र.
ये 2017 से बहुत अलग AAP है. तब केजरीवाल इसका मुख्य चेहरा थे, लेकिन इसके वोट ज्यादातर मालवा के गरीब जाट सिख किसानों से आए, खासकर मानसा, संगरूर और बरनाला जैसे क्षेत्रों से, जहां कृषि संकट सबसे ज्यादा था.
लोकसभा चुनाव में फरीदकोट, पटियाला और फतेहगढ़ साहिब में हार को देखते हुए, AAP मालवा में थोड़ी कमजोर जरूर हुई हो, लेकिन ये शहरों में उच्च जाति के हिंदू वोटर्स और दलितों में पहुंच बढ़ाने की कोशिश कर रही है.
AAP के लिए सबसे बड़ी चुनौती मुख्यमंत्री का चेहरा तलाशना होगा. AAP नेतृत्व स्वाभाविक रूप से संगरूर के सांसद भगवंत मान को तरजीह देगा. 2019 आम चुनावों में दूसरे सभी उम्मीदवारों के हारने के बावजूद, वो अपनी सीट जीतने में सफल रहे, और वो केजरीवाल के कट्टर वफादार भी हैं.
लेकिन क्या वो बाकी पार्टी को साथ ला सकते हैं, खासकर उन बड़े नेताओं के साथ, जिनके शामिल होने की संभावना है? या पार्टी किसी नए चेहरे को चुनेगी?
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