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AIMIM-AIUDF: 'INDIA' में ओवैसी-बदरुद्दीन नजरअंदाज? कांग्रेस, TMC, SP किसे परहेज?

Opposition Parties की 18 जुलाई को बेंगलुरु में हुई बैठक में कुल 26 राजनीतिक दल के नेता शामिल हुए थे.

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लोकसभा चुनाव 2024 में अभी 9 से 10 महीने का वक्त बाकी है. इससे पहले ही राजनीतिक दलों ने अपनी रणनीति पर मंथन शुरू कर दिया है. बीजेपी को केंद्र की सत्ता में तीसरी बार आने से रोकने के लिए विपक्ष एक मजबूत गठबंधन बनाने में जुटा है. इस कड़ी में 18 जुलाई को विपक्ष की दूसरी बैठक दक्षिण के सबसे मजबूत किले कर्नाटक की राजधानी बेंगलुरु में हुई, जिसमें 26 दलों के नेता शामिल हुए.

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बैठक में विपक्ष के गठबंधन का नया नाम तय हुआ, जिसे I-N-D-I-A कहा जाएगा. लेकिन अब बैठक में शामिल दलों को लेकर सवाल उठ रहे हैं. क्योंकि कई दलों ने विपक्ष के गठबंधन में शामिल होने से या तो दूरी बना ली या फिर उन्हें शामिल नहीं किया गया है. इसमें AIMIM और AIUDF भी शामिल हैं, जो दोनों ही मीटिंग से गायब दिखे. अब इस पर सवाल उठ रहे हैं कि आखिर ये दोनों ही पार्टी विपक्षी गठबंधन का हिस्सा क्यों नहीं हैं?

इसको जानने से पहले ये समझ लेते हैं कि ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) और ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (AIUDF) का कितना प्रभाव हैं.

AIMIM-AIUDF का कहां-कहां प्रभाव?

ओवैसी पार्टी के एकमात्र सांसद हैं और तेलंगाना विधानसभा में उनके सात विधायक हैं. AIMIM तेलंगाना के बाहर, महाराष्ट्र, बिहार और उत्तर प्रदेश जैसे बड़ी मुस्लिम आबादी वाले राज्यों में अपनी किस्मत आजमा रही है.

2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में AIMIM ने सीमांचल पर बड़ी जीत हासिल की थी. पार्टी ने 20 उम्मीदवार उतारे थे, जिसमें से 14 सीमांचल में थे और पार्टी ने पांच सीट पर ऐतिहासिक जीत हासिल की थी. इसका सबसे बड़ा नुकसान आरजेडी को हुआ था, बाद में चार विधायक आरजेडी में शामिल हो गये थे.

उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव 2022 में भी AIMIM ने 100 से अधिक सीटों पर प्रत्याशी उतारे थे और लगभग आधा दर्जन सीटों पर समाजवादी पार्टी गठबंधन को नुकसान पहुंचाया था, जिसका सीधा लाभ बीजेपी को मिला था.

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महाराष्ट्र के कई जिलों में भी AIMIM का प्रभाव है. औरंगाबाद सीट से पार्टी का सांसद रह चुका है और 2019 के महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में AIMIM के मत प्रतिशत में भी इजाफा हुआ था. अब पार्टी ने राजस्थान और मध्य प्रदेश में भी चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया है, जिसने कांग्रेस की बड़ी परेशानी बढ़ा दी है, क्योंकि दोनों ही जगहों पर कांग्रेस बनाम बीजेपी का मुख्य मुकाबला है.

2011 की जनगणना के मुताबिक, मध्य प्रदेश की कुल आबादी में 6.57 प्रतिशत मुसलमान हैं. आंकड़ों के मुताबिक, प्रदेश के 51 जिलों में से 19 में मुसलमानों की आबादी 1 लाख से ज्यादा है.

राजस्थान में मुस्लिम आबादी 9 प्रतिशत है, लेकिन मतदाताओं के तौर पर यह समुदाय राज्य की 36 सीटों को प्रभावित करता है. इनमें 15 सीटें मुस्लिम मतदाताओं के वर्चस्व वाली हैं तो 8 से 10 सीटें ऐसी हैं, जहां बड़ा मुस्लिम वोट बैंक है और चुनाव के नतीजे तय करता है.

मौलाना बदरुद्दीन अजमल के नेतृत्व वाली AIUDF का असम में प्रभाव है. पार्टी का एक सांसद और 15 विधायक है. ये सभी असम विधानसभा के सदस्य हैं. हालांकि, 2014 के लोकसभा चुनाव में पार्टी के तीन सांसद जीते थे.

इसके अलावा, AIUDF बंगाल में भी अपने पांव पसारने की लगातार कोशिश करती दिख रही है. हालांकि, उसने कुछ जगहों पर टीएमसी को थोड़ा बहुत नुकसान पहुंचाया है.

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'INDIA' में AIMIM-AIUDF क्यों नहीं?

विपक्ष के नए गठबंधन 'INDIA' का AIMIM और AIUDF हिस्सा नहीं हैं. हालांकि, पूर्व में दोनों कांग्रेस के साथ गठबंधन में रह चुकी हैं. लेकिन आंध्र प्रदेश के विभाजन के बाद से AIMIM का झुकाव BRS की तरफ ज्यादा है. महाराष्ट्र में भी दोनों दलों के गठबंधन को लेकर चर्चा है.

AIMIM को गठबंधन में शामिल न करने की सबसे बड़ी वजह रही है, उसका बढ़ता जनाधार है. क्योंकि उसने जिस तरह से यूपी, बिहार, महाराष्ट्र जैसे राज्यों में जेडीयू, आरजेडी, समाजवादी पार्टी और कांग्रेस को नुकसान पहुंचाया है, उससे ये दल खासे नाराज हैं. ये दल नहीं चाहते हैं कि ओवैसी की पार्टी गठबंधन का हिस्सा बने है.

वहीं, AIMIM चीफ ओवैसी लगातार कांग्रेस पर हमला करते रहे हैं. वो बार-बार कहते रहे हैं कि सत्ता में रहने के दौरान कांग्रेस ने भी बीजेपी की तरह मुसलमानों को उनके हक से वंचित रखा और यही कारण है कि आज देश में मुस्लिमों की ये स्थिति है.

ओवैसी जितना हमला बीजेपी पर करते हैं, उससे अधिक कांग्रेस, टीएमसी, समाजवादी पार्टी, आरजेडी पर करते रहे हैं. और ये दल भी ओवैसी की पार्टी को बीजेपी की 'B' टीम करार देते रहे हैं.

वरिष्ठ पत्रकार अभिषेक झा ने क्विंट हिंदी से बात करते हुए कहा, "AIMIM मुसलमानों के मुद्दे जरूर उठाती रही है और बीजेपी की खुलकर मुखालफत करती आयी है, लेकिन उसने जितना कांग्रेस और अन्य क्षेत्रीय दलों को नुकसान पहुंचाया है, वो उसके गठबंधन में शामिल होने में रोड़ा हैं."

कांग्रेस, TMC, SP और RJD कभी नहीं चाहेंगे कि AIMIM विपक्षी गठबंधन का हिस्सा बनें, क्योंकि इनको लगता है कि ओवैसी की पार्टी वोट कटवा है, और इसके वजह से ही उन्हें नुकसान होता है.
अभिषेक झा, वरिष्ठ पत्रकार
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एक राजनीतिक टिप्पणीकार ने नाम न छपने की शर्त पर क्विंट हिंदी से बात करते हुए कहा, "मुसलमान टीएमसी, कांग्रेस, एसपी और आरजेडी का मजबूत वोटबैंक रहा है. बंगाल में ममता, यूपी में अखिलेश, बिहार में लालू और अन्य राज्यों में कांग्रेस मुसलमानों के सहारे सत्ता पर काबिज होते आये हैं, लेकिन अब ओवैसी और AIUDF इसमें सेंध लगा रहे हैं. कर्नाटक में जीत के बाद से कांग्रेस उत्साहित, वहां मुसलमानों ने पार्टी को भरपूर समर्थन दिया, और अब कांग्रेस मुसलमानों को अपनी तरफ रिझाने के लिए पूरी कोशिश कर रही है."

उन्होंने कहा, "कर्नाटक के बाद कांग्रेस एमपी और राजस्थान में भी मुसलमानों पर फोकस किये हुए हैं. इसको लेकर पार्टी के रणनीतिकार लगातार रणनीति बनाने में जुटे हैं. कांग्रेस का पूरा फोकस है कि विधानसभा और लोकसभा चुनावों में कैसे भी मुस्लिमों को पार्टी के साथ लाया जाये."

विपक्षी बैठक में शामिल एक नेता ने कहा, "AIUDF और AIMIM के साथ गठबंधन में सबसे बड़ी दिक्कत ये है कि ये मुस्लिम प्रभाव वाली सीटों पर अपने ही उम्मीदवार उतारेंगी और समझौता करने को तैयार नहीं होंगी. ऐसे में इनसे गठबंधन करने का कोई फायदा नहीं है."

राजनीतिक जानकारों की मानें तो, मुस्लिम मुद्दे को लेकर मुखर रहने वाली AIMIM और AIUDF अगर विपक्ष के साथ आती तो बीजेपी 80 बनाम 20 की लड़ाई बनाने की कोशिश करती है, जिससे उन्हें नुकसान हो सकता है.

कांग्रेस के एक नेता ने नाम न प्रकाशित करने की शर्त पर कहा, "मुसलमान 2024 के लोकसभा चुनाव में उसी को वोट करेंगे, जो बीजेपी को हराएगा और ओवैसी और अजमल की पार्टी ऐसा नहीं कर सकती हैं.

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कांग्रेस नेता ने आगे कहा कि ये सच है कि AIUDF गठबंधन में शामिल होने के लिए इच्छुक थी, लेकिन हमारी रणनीति अधिक से अधिक मुस्लिम सीटों पर लड़ने की है. ऐसे में हम समझौता नहीं करने के मूड में हैं.

जेडीयू के एक नेता ने कहा, "नीतीश कुमार चाहते थे कि AIUDF को शामिल किया जाए, लेकिन कांग्रेस तैयार नहीं थी, वो अजमल की पार्टी से कतई समझौता नहीं करना चाहती है. इसलिए उसने बेंगलुरु बैठक से दूर रखा.

वरिष्ठ पत्रकार संजय दुबे कहते हैं कि भले ही विपक्ष के गठबंधन का नाम रख गया हो और सबकुछ ठीक दिखाने की कोशिश है लेकिन सब 'ऑल इज वेल' नहीं है. AIUDF और AIMIM को शामिल नहीं करने की राजनीतिक दलों की मजबूरी है वोटबैंक, जिस पर अभी भी समझौता ठीक से नहीं हुआ है. इसका प्रभाव जल्द ही देखने को मिलेगा.

हालांकि, AIUDF प्रमुख मौलाना बदरुद्दीन अजमल कई बार इशारा कर चुके हैं कि वो बीजेपी को हराने के लिए समझौता करने को तैयार है, लेकिन सूत्रों की मानें तो, असम की राज्य कांग्रेस इकाई इस पर तैयार नहीं है. वो नहीं चाहती कि अजमल से समझौता किया जाए, वो उन्हें बीजेपी का 'बी' टीम करार देती है.

अब देखना दिलचस्प होगा कि आखिर दोनों दलों के गठबंधन में शामिल नहीं होने का क्या असर होगा और क्या इन्हें भविष्य में फिर से शामिल करने की कोशिश होगी?

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