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कांग्रेस अध्यक्ष चुनाव: थरूर की डिक्शनरी में इंदिरा के 'तुरुप' गहलोत का जवाब है?

Ashok Gehlot vs Shashi Tharoor: संगठनात्मक अनुभव, गांधी परिवार से करीबी और इमेज के मोर्चे पर गहलोत आगे क्यों हैं?

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देश की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी कांग्रेस अपने अगले अध्यक्ष के चुनाव (Congress President Election) के लिए गांधी परिवार के बाहर खोज कर रही है. अभी आधिकारिक तौर पर तो नहीं, लेकिन अगर कांग्रेस के सियासी गलियारी से आती खबरों, बैठकों के दौर और कयासों को आधार बनाए तो यह मुकाबला अशोक गहलोत और शशि थरूर के बीच का नजर आ रहा है. सवाल है कि राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और तिरुवनंतपुरम से तीन बार के कांग्रेस सांसद शशि थरूर कांग्रेस अध्यक्ष के इस चुनाव में अपने साथ कितना राजनीतिक रसूख और अनुभव लेकर उतर रहे हैं? दोनों नेताओं की क्या खासियत है और दोनों अध्यक्ष बनने पर पार्टी के लिए किस तरह से फायदा पहुंचा सकते हैं? आइए इन्हीं सवालों का जवाब खोजने की कोशिश करते हैं.

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अशोक गहलोत Vs शशि थरूर: दोनों की राजनीति और कांग्रेस एंट्री कैसे हुई?

पेशेवर जादूगरों के परिवार में पैदा हुए अशोक गहलोत पिछले 2 दशकों में राजस्थान के अंदर सबसे बड़े कांग्रेसी नेता बनने के बाद पार्टी अध्यक्ष पद के लिए फेवरेट दिख रहे हैं- यानी भले ही उन्होंने जादूगर के रूप में पारिवारिक पेशा न अपनाया हो, उन्हें राजनीतिक जादू करने का श्रेय जरूर दिया जाना चाहिए. यहां तक कि गहलोत अपने जादूगर पिता लक्ष्मण सिंह गहलोत के साथ जोधपुर में शो में उनकी सहायता करने भी गए थे. हालांकि वे डॉक्टर बनना चाहते थे लेकिन किस्मत उन्हें राजनीति में ले आई.

गहलोत को इंदिरा गांधी ने सक्रिय राजनीति के लिए उस समय खुद चुना, जब उन्होंने गहलोत को सन 1971 में एक शरणार्थी शिविर में काम करते देखा था. इंदिरा ने 1974 में गहलोत को कांग्रेस स्टूडेंट विंग, NSUI का पहला राज्य अध्यक्ष बनाया. हालांकि वो स्टूडेंट यूनियन का चुनाव और 1977 में विधायकी का चुनाव भी 4,329 वोट से हारे.

1980 में गहलोत ने लोकसभा का चुनाव जीता और इंदिरा गांधी की कैबिनेट में डिप्टी मंत्री भी बने. वह 1984, 1991, 1996 और 1998 में भी सांसदी चुनाव जीते हैं. 1998 में राजस्थान के मुख्यमंत्री बनने के बाद उपचुनाव जीतकर विधानसभा पहुंचे. आगे उन्होंने 2008-2013 के बीच मुख्यमंत्री के रूप में अपना दूसरा कार्यकाल पूरा किया और फिर 2018 में उनका तीसरा कार्यकाल शुरू हुआ.

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दूसरी तरफ राजनीतिक फील्ड के बाहर युवा पीढ़ी के बीच एक बुद्धिजीवी और अंग्रेजी के कठिन शब्दों के प्रयोग के लिए प्रसिद्ध शशि थरूर दिल्ली के प्रतिष्ठित सेंट स्टीफंस कॉलेज के पूर्व छात्र रहे हैं. वह फ्लेचर स्कूल ऑफ लॉ एंड डिप्लोमेसी से सबसे कम उम्र में अंतर्राष्ट्रीय संबंधों और मामलों (इंटरनेशनल रिलेशन एंड अफेयर्स) में डॉक्टरेट करने वाले छात्र भी रहे हैं.

राजनीति में आने से पहले थरूर ने 1978 से 2007 तक संयुक्त राष्ट्र (UN) के साथ काम किया था. संयुक्त राष्ट्र महासचिव पद के लिए 2006 के चुनाव में बान की-मून के हाथों हारकर दूसरे स्थान पर रहने के बाद उन्होंने अपना रास्ता बदल लिया.

थरूर 2009 में कांग्रेस में शामिल हुए और केरल में तिरुवनंतपुरम सीट से जीतकर लोकसभा पहुंचे. UPA सरकार में थरूर ने विदेश राज्य मंत्री (2009-2010) और मानव संसाधन विकास मंत्री (2012-2014) के रूप में काम किया है. अभी शशि थरूर सांसद के रूप में अपने तीसरा कार्यकाल पूरा कर रहे हैं.
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अशोक गहलोत Vs शशि थरूर: दोनों नेताओं की क्या खासियत है और कौन किसपर भारी है?

राजनीतिक और संगठनात्मक अनुभव

अनुभवी अशोक गहलोत की सबसे बड़ी खासियत उनका अनुभव ही है- चाहे यह एक प्रशासक के तौर पर हो या कांग्रेस के अंदर संगठन स्तर पर काम करने का. अशोक गहलोत तीन बार केंद्रीय कैबिनेट में मंत्री में रह चुके हैं और तीन कांग्रेसी पीएम- इंदिरा गांधी, राजीव गांधी और पीवी नरसिम्हा राव के साथ कैबिनेट मंत्री के रूप में काम कर चुके हैं. इसके अलावा उनके पास तीन बार के मुख्यमंत्री कार्यकाल का अनुभव भी है.

अशोक गहलोत को कांग्रेस संगठन में मिली अब तक कि जिम्मेदारियों की बात करें तो वो राष्ट्रीय महासचिव रहे हैं, राजस्थान कांग्रेस का नेतृत्व किया है, पार्टी के लिए कई राज्यों के प्रभारी रहे हैं और के सी वेणुगोपाल से पहले महासचिव (संगठन) थे.

गहलोत को पार्टी में अतीत और वर्तमान के बीच की कड़ी, युवा और पुराने नेताओं के बीच पुल के रूप में देखा जाता है. संगठन के निचले स्तर पर भी उनकी प्रभावशाली पकड़ है.

अशोक गहलोत के मुकाबले अनुभव के मोर्चे पर शशि थरूर मात खाते हैं. शशि थरूर दो बार भले ही केंद्रीय मंत्री रहे हैं लेकिन दोनों ही बार उनका कार्यकाल सीमित समय के लिए रहा है. थरूर के मामले में एक और गंभीर कमी यह है कि उनके पास सही मायनों में कोई संगठनात्मक अनुभव नहीं है. 2017 से अखिल भारतीय पेशेवर कांग्रेस के प्रमुख के रूप में कार्यकाल को छोड़कर उन्होंने कांग्रेस संगठन में कभी काम नहीं किया है.

जब कांग्रेस संगठनात्मक रूप से अपने सबसे खराब दौर से गुजर रही हो, चुनाव-दर-चुनाव पार्टी अपनी पकड़ खो रही हो, उस समय पार्टी के लिए अध्यक्ष के रूप में अशोक गहलोत का अनुभव संजीवनी का काम कर सकता है.

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गांधी परिवार से संबंध और बगावत

कांग्रेस अध्यक्ष पद के चुनाव के बीच एक सवाल लगातार सरगर्म है कि क्या कांग्रेस के नेताओं से लेकर आम कार्यकर्त्ता और आम नागरिक गांधी परिवार के बाहर किसी और का नेतृत्व स्वीकार करने को तैयार है? उससे भी बड़ा सवाल, क्या खुद गांधी परिवार उस नेता को स्वीकार करने को तैयार है?

अगर अशोक गहलोत Vs शशि थरूर के खांचे में रखकर इस सवाल पर विचार करें तो अशोक गहलोत बाजी मारते दिखते हैं. जहां अशोक गहलोत गांधी परिवार के खास माने जाते हैं वहीं शशि थरूर उस बागी G-23 ग्रुप का हिस्सा हैं जिसने 2020 में सोनिया गांधी को लेटर लिखकर पार्टी के अंदर सुधार/रिफार्म तथा निर्णय लेने में पारदर्शिता लाने की मांग की थी.

कांग्रेस अध्यक्ष पद के चुनाव में शशि थरूर का नाम उम्मीदवार के रूप में सामने आने के बाद खुद केरल के नेता उनका विरोध कर रहे हैं.

युवा पीढ़ी और नैरेटिव पर पकड़

23 किताब लिख चुके शशि थरूर देश के बाहर डिबेट्स में ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के खिलाफ भारत का पुरजोर पक्ष रखते नजर आते हैं और युवाओं का एक वर्ग बुद्धिजीवी के तौर पर उनसे कनेक्ट करता है. शशि थरूर सोशल मीडिया पर एक्टिव हैं और GEN Z कहे जाने वाले सोशल मीडिया पर एक्टिव युवा पीढ़ी में उनकी अंग्रेजी पर पकड़ एक अलग कल्ट बना चुकी है. 2013 तक वह ट्विटर पर भारत के सबसे अधिक फॉलो किए जाने वाले नेता थे, जिसके बाद पीएम मोदी आगे निकल गए. दूसरी तरफ अशोक गहलोत इस मोर्चे पर पुराने राजनीतिज्ञ नजर आते हैं.

लेकिन सवाल है कि क्या शशि थरूर इस नैरेटिव को पार्टी के लिए वोट में बदलने की कूवत रखते हैं?

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इमेज

शशि थरूर का नाता कई विवादों से भी रहा है. अप्रैल 2010 में थरूर ने आईपीएल फ्रेंचाइजी के शेयर खरीदने के आरोप लगने के बाद इस्तीफा दिया था. जनवरी 2014 में थरूर एक बार फिर विवादों में घिरे जब उनकी पत्नी सुनंदा पुष्कर की मौत के बाद उनका नाम आरोपी के रूप में सामने आया. अगस्त 2021 में उन्हें आरोप मुक्त कर दिया गया. दूसरी तरफ अशोक गहलोत की छवि साफ मानी जाती है.

अशोक गहलोत Vs शशि थरूर के मुकाबले में गहलोत लगभग हर मोर्चे पर बाजी मारते दिखते हैं. अगर दोनों आधिकारिक तौर पर कांग्रेस अध्यक्ष पद के चुनाव में उतरते हैं तो गहलोत फेवरेट होंगे यानी उनके जीतने के चांस अधिक होंगे. हालांकि दूसरी तरफ अगर आखिरी लम्हों में राहुल गांधी अपना मन बदलकर अध्यक्ष बनने के लिए हामी भर देते हैं तो खेल बदल जाएगा और खुद अशोक गहलोत उनके लिए रास्ता खाली कर सकते हैं.

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