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BSP का सोशल इंजीनियरिंग से मोहभंग! स्टार प्रचारकों में सतीश मिश्रा का नाम नहीं

Satish Chandra Mishra के करीब रहे नकुल दुबे को भी मायावती ने BSP से बाहर का रास्ता दिखा दिया है.

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आजमगढ़ लोकसभा उपचुनाव (Azamgarh Lok Sabha By-Election) 2022 के लिए BSP ने अपने 40 स्टार प्रचारकों की लिस्ट जारी कर दी है. इस लिस्ट में BSP सुप्रीमो मायावती (Mayawati) से लेकर यूपी बीएसपी के एक मात्र विधायक उमाशंकर सिंह (Uma Shankar Singh) का भी नाम शामिल है. लेकिन, हैरानी इस बात की है कि BSP के इस लिस्ट में मायावती के खास और पार्टी के ब्राह्मण चेहरा माने जाने वाले सतीश चंद्र मिश्रा (Satish Chandra Mishra) का नाम शामिल नहीं है.

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यूपी विधानसभा चुनाव 2022 में सतीश चंद्र मिश्रा ने तूफानी रैलियां की थीं. इस लिहाज से उनका इस लिस्‍ट में नाम न होना बता रहा है कि या तो उनके लिए कुछ और योजना है या फिर उनके और हाइकमान के बीच सबकुछ ठीक-ठाक नहीं चल रहा है.

यूपी में आजमगढ़ (Azamgarh) और रामपुर (Rampur) में लोकसभा सीटों पर उपचुनाव होने हैं. लेकिन, BSP केवल आजमगढ़ से चुनाव लड़ रही है. यहां से पार्टी ने गुड्डू जमाली (Guddu Jamali) को मैदान में उतारा है. बीएसपी ने रामपुर सीट पर चुनाव न लड़ने का ऐलान किया है. इस लिहाज से रामपुर सीट पर BSP ने उम्मीदवार नहीं खड़ा कर एक तरह से आजम खान (Azam Khan) के गुट को वॉकओवर दे दिया है.

अब हम कुछ आंकड़ों और राजनीतिक समीकरणों से समझने की कोशिश करते हैं कि आखिर सतीश चंद्र मिश्रा का स्टार प्रचारकों की लिस्ट में नाम ना शामिल होना क्या दर्शाता है. इसके लिए हमें कुछ पीछे जाना होगा.

BSP में सोशल इंजीनियरिंग का फॉर्मूला लाने वाले सतीश चंद्र मिश्रा ही थे

दरअसल, 1984 में बनी पार्टी साल 2007 तक दलित और मुस्लिमों की नुमाइंदगी करती आई. लेकिन, साल 2007 के विधानसभा चुनाव में पहली बार अकेले दम पर बहुमत हासिल कर BSP ने राजनीतिक पंडितों को चौंका दिया था. BSP सुप्रीमो मायावती ने इस बड़ी जीत के लिए दलितों, मुस्लिमों के साथ ब्राह्मणों सबसे बड़ा सहयोगी बताया था. BSP की इसी जीत को आगे चलकर सोशल इंजीनियरिंग का नाम दिया गया. बताया गया कि इस सोशल इंजीनियरिंग फॉर्मूले को लाने वाले मायावती के सबसे करीबी नेता सतीश चंद्र मिश्रा ही थे.

लेकिन, 5 साल बाद साल 2012 के विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी ने BSP के सोशल इंजीनियरिंग के फॉर्मूले का गला घोंट दिया. साल 2007 में 206 सीटें जीतने वाली बीएसपी 2012 में 80 सीटों पर सिमट कर रह गई.
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अब आता है साल 2014 का लोकसभा चुनाव. इस चुनाव में भी मायावती ने सोशल इंजीनियरिंग का ही सहारा लिया, नतीजा एक सीट भी नहीं जीत सकीं. उसके बाद साल 2017 के विधानसभा चुनाव में भी बीएसपी सोशल इंजीनियरिंग के फॉर्मूले पर अड़ी रही और उसे सिर्फ 19 सीटों से ही संतोष करना पड़ा. इस बीच लगातार हार की वजह से पार्टी के तमाम नेता बीएसपी छोड़कर दूसरी पार्टियों में शामिल होते रहे, बावजूद पार्टी सोशल इंजीनियरिंग के फॉर्मूले पर कायम रही.

SP ने दी थी लोकसभा 2019 में बीएसपी को संजीवनी!

फिर, साल 2019 के लोकसभा चुनाव में बीएसपी ने एसपी के साथ मिलकर चुनाव लड़ा और 2014 में शून्य सीट पर रही बीएसपी को समाजवादी पार्टी ने संजीवनी दी और 10 सीटें जीतकर बीजेपी के बाद प्रदेश की सबसे बड़ी पार्टी बनी. यहां भी पार्टी को सोशल इंजीनियरिंग का फायदा नहीं मिला, बल्कि समाजवादी पार्टी से गठबंधन का फायदा मिला. हालांकि, ये जरूर है कि चुनाव बाद ही मायावती ने ये कहते हुए गठबंधन तोड़ लिया कि एसपी से उन्हें वोट नहीं मिले, बल्की बीएसपी के वोट कनवर्ट होकर एसपी पर चढ़ गए. जबकि, तथ्य इससे अलग था. अगर ऐसा होता तो समाजवादी पार्टी सिर्फ 5 सीटों पर सिमटकर नहीं रहती.

अब आते हैं साल 2022 के विधानसभा चुनाव पर, जिसके परिणाम बीएसपी को सोचने पर मजबूर कर दिए. यूपी विधानसभा चुनाव 2022 में भी बीएसपी ने अपने सोशल इंजीनियरिंग फॉर्मूले को पूरी ताकत के साथ आगे बढ़ाया.

बीएसपी ने ब्राह्मण वोटरों को लुभाने के लिए बड़े-बड़े सम्मेलन किए. सतीश चंद्र मिश्रा और उनके परिवार ने इस अभियान का नेतृत्व किया. इसमें पूर्व मंत्री और सतीश चंद्र मिश्र के करीबी माने जाने वाले नकुल दुबे ने भी बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया. लेकिन, नतीजा ढाक के तीन पात रहा. बीएसपी का सिर्फ एक उम्मीदवार ही जीतकर विधानसभा पहुंचा. मौजूदा समय में बलिया के रसड़ा से उमाशंकर सिंह विधानसभा में बीएसपी से विधायक हैं.

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क्या सोशल इंजीनियरिंग के फॉर्मूले से किनारा कर गईं मायावती?

साल 2022 का विधानसभा चुनाव परिणाम ही था, जिसके बाद बीएसपी ने गंभीरता से अपने सोशल इंजीनयिरंग फॉर्मूले पर ध्यान देना शुरू किया. प्रदेश में साल 2012 के बाद से बीएसपी का राजनीतिक ग्राफ तेजी से गिरा है. ऐसे में मायावती अब सोशल इंजीनियरिंग (दलित-ब्राह्मण-मुस्लिम) फार्मूले को छोड़ वापस पुराने दलित-मुस्लिम फॉर्मूले पर लौटती दिख रही हैं.

इसका इशारा अजमगढ़ लोकसभा उपचुनाव में जारी बीएसपी के स्टार प्रचारों की लिस्ट से देखा जा सकता है. जिसमें मायावती के बाद पार्टी के दूसरे सबसे बड़े नेता सतीश चंद्र मिश्रा का नाम पार्टी के स्टार प्रचारकों की लिस्ट से गायब है. इससे पहले मायावती ने सतीश चंद्र मिश्रा के करीबी रहे नकुल दुबे को भी पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया था.

ऐसे में अब सत्ता के गलियारों में चर्चा तेज हो गई है कि मायावती का ब्रह्मण वोटर से मोहभंग हो गया है और वो फिर दोबारा अपने पुराने दलित-मुस्लिम फॉर्मूले पर वापस लौटना चाह रही है. जिसका संदेश उन्होंने आजमगढ़ लोकसभा उपचुनाव 2022 से दे दिया है. ऐसे में अब आने वाला वक्त ही बताएगा की पार्टी में सतीश चंद्र मिश्रा की क्या हैसियत रहने वाली है?

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