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भारत जोड़ो यात्रा के जरिए कांग्रेस की 'विपक्षी एकता' की कोशिश कितनी सफल?

Bharat Jodo Yatra के जरिए कांग्रेस ने खुद को मुख्य विपक्षी दल के रूप में पेश करने की कोशिश की है.

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कांग्रेस (Congress) की भारत जोड़ो यात्रा (Bharat Jodo Yatra) अपने मुकाम तक पहुंच चुकी है. पिछले 5 महीनों में कांग्रेस नेता राहुल गांधी (Rahul Gandhi) ने कन्याकुमारी से कश्मीर तक की पैदल यात्रा कर देश को मोहब्बत और एकता का पैगाम देने की कोशिश की है. लेकिन प्रेम के दिखावटी संदेश से परे, भारत जोड़ो यात्रा अंततः कांग्रेस को पुनर्जीवित करने और कई चुनावों में हार से निराश हो चुके कार्यकर्ताओं में जोश जगाने की कोशिश है.

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मुख्य विपक्षी पार्टी के रूप में खुद को पेश करने की कोशिश

इस यात्रा के जरिए कांग्रेस ने खुद को मुख्य विपक्षी पार्टी के रूप में भी पेश करने की कोशिश की है. यात्रा के दौरान कांग्रेस नेताओं द्वारा दिए गए लगभग हर राजनीतिक बयान का आधार यह रहा है कि वह खुद को मुख्य विपक्षी दल के रूप में पेश करें, जो बीजेपी सरकार के खिलाफ 'विपक्षी एकता' का नेतृत्व करेगा.

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता जयराम रमेश ने पिछले हफ्ते मीडिया से बातचीत में कहा था कि कांग्रेस को विपक्षी गठबंधन का आधार होना चाहिए. इसके बिना कोई भी गठबंधन प्रासंगिक नहीं हो सकता.

समापन समारोह के लिए 21 पार्टियों को न्योता था

कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने भारत जोड़ो यात्रा के समापन समारोह में भाग लेने के लिए 21 "समान विचारधारा वाले" राजनीतिक दलों को पत्र लिखा था. इसमें झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM), इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग (IUML), द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (DMK) और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) जैसे सहयोगी दल शामिल हैं. इनके अलावा तृणमूल कांग्रेस (TMC), राष्ट्रीय जनता दल (RJD), JDU, तेलुगु देशम पार्टी (TDP), समाजवादी पार्टी (SP), बहुजन समाज पार्टी (BSP), नेशनल कॉन्फ्रेंस (NC), पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (PDP), भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (CPI), NCP सहित अन्य को भी न्योता दिया गया था.

हालांकि, SP, BSP और TMC जैसे दलों के कार्यक्रम में शामिल नहीं हो रहे. वहीं JDU और RJD भी इसमें शामिल नहीं होगी. कुछ अन्य पार्टियों ने सुरक्षा का हवाला देते हुए कार्यक्रम से दूरी बना ली है.

सूत्रों के मुताबिक, आम आदमी पार्टी (AAP), शिरोमणि अकाली दल (SAD), भारत राष्ट्र समिति (पूर्व में TRS) और गुलाम नबी आजाद की डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव आजाद पार्टी (DPAP) को न्योता नहीं दिया गया था.

विपक्षी पार्टियों को एकजुट करने की कांग्रेस की कोशिश तब ही कामयाब मानी जाएगी, जब गैर-सहयोगी दल भी उसके साथ आएंगे.

पिछले हफ्ते, JDU के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह ने कार्यक्रम में शामिल होने में असमर्थता जताते हुए खड़गे को लिखा था, "एक एकीकृत विपक्ष समय की जरूरत है. JDU उम्मीद करता है कि कांग्रेस इस दिशा में उचित कदम उठाएगी.”

कई पार्टियों को कांग्रेस के पीछे खड़ा होना मंजूर नहीं

कांग्रेस द्वारा विपक्षी पार्टियों को एकजुट करना इतना आसान नहीं है. यात्रा के दौरान इसकी बानगी देखने को मिली. जब ये यात्रा उत्तर प्रदेश पहुंची तो इसमें समाजवादी प्रमुख अखिलेश यादव शामिल, बीएसपी सहित विपक्षी दलों ने यात्रा में भाग लेने से इनकार कर दिया.

आमंत्रित किए जाने से पहले, अखिलेश ने यह कहते हुए यात्रा को खारिज कर दिया था कि "कांग्रेस और बीजेपी एक ही हैं." इसके जवाब में राहुल गांधी ने कहा था कि एसपी के पास चुनाव लड़ने के लिए कोई राष्ट्रीय ढांचा नहीं है.

दिलचस्प बात है कि एसपी की सहयोगी राष्ट्रीय लोकदल (RLD) ने यात्रा का समर्थन किया था. हालांकि, जयंत चौधरी खुद यात्रा में शामिल नहीं हुए थे, लेकिन उन्होंने यात्रा की तारीफ करते हुए ट्वीट किया था.

बिहार के नेताओं ने भी इस यात्रा का समर्थन नहीं किया. नीतीश कुमार जो कि खुद 'समाधान यात्रा' कर रहे हैं उन्होंने भारत जोड़ो यात्रा को 'कांग्रेस का निजी मामला' बताया था. वहीं तेजस्वी यादव भी इस यात्रा से दूरी बनाए हुए हैं. द हिंदू को दिए इंटरव्यू में उन्होंने कहा कि "बिहार की तरह जहां भी क्षेत्रीय दल मजबूत हैं, कांग्रेस को हमें ड्राइविंग सीट पर बैठने देना चाहिए."

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दक्षिण में KCR की मोर्चाबंदी

विपक्षी एकता की राह में कांग्रेस के सामने कई चुनौतियां है. तेलंगाना के मुख्यमंत्री केसीआर (K Chandrasekhar Rao) भी विपक्षी पार्टियों को एक साथ लाने में जुटे हैं. हाल ही में BRS ने खम्मम में एक जनसभा का आयोजन किया. इसमें AAP के मुखिया अरविंद केजरीवाल, पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान, केरल के मुख्यमंत्री और CPI(M) नेता पिनाराई विजयन, समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव और CPI महासचिव डी. राजा शामिल हुए थे.

अगले महीने हैदराबाद में नए सचिवालय का उद्घाटन होना है. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, केसीआर ने कई पार्टियों के प्रमुखों को न्योता भेजा है. इस कार्यक्रम के जरिए भी केसीआर विपक्षी एकता का मैसेज देने की कोशिश करते दिख सकते हैं.

क्या कहती है यात्रा से TMC की दूरी?

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री और टीएमसी नेता ममता बनर्जी को अगर कांग्रेस अपने साथ एक मंच पर लेकर आती है तो वो उसके लिए सबसे बड़ी कामयाबी होगी. अब तक ममता बनर्जी भारत जोड़ो यात्रा को लेकर चुप रही हैं. हालांकि, टीएमसी के अन्य शीर्ष नेताओं से जरूर प्रशंसा मिली है. लेकिन इतना काफी नहीं है.

दिग्गज अभिनेता और टीएमसी के सांसद शत्रुघ्न सिन्हा ने यात्रा की खूब तारीफ करते हुए कहा था, "देश में ऐसी यात्रा पहले कभी नहीं हुई. राहुल का व्यक्तित्व देश के युवाओं को प्रेरित करेगा."

टीएमसी विधायक चिरंजीत चक्रवर्ती ने यात्रा को "भारत को एकजुट करने" के लिए "एक बहुत अच्छी पहल" करार दिया था.

हालांकि, टीएमसी ने इन बयानों से खुद को अलग कर लिया था. पार्टी प्रवक्ता सौगत रॉय ने कहा था कि ये नेताओं की निजी राय है. इस दौरान कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी सवाल किया था कि ममता बनर्जी यात्रा की प्रशंसा से क्यों कतरा रही हैं? ANI से बातचीत में चौधरी ने कहा था कि,

“ममता जी ऐसा कुछ नहीं करना चाहतीं जिससे मोदी जी नाराज हों. जब मोदी जी कहते हैं- 'कांग्रेस-मुक्त' भारत, तो ममता जी भी कहती हैं कि बंगाल से कांग्रेस को हटा देना चाहिए. कई नेता भारत जोड़ो यात्रा की सराहना करते रहे हैं, लेकिन उनकी नहीं."

कांग्रेस को कई पार्टियों का मिला साथ

कई पार्टियों ने यात्रा से दूरी बनाए रखी तो कई पार्टियों ने यात्रा में शामिल होकर कांग्रेस का समर्थन किया है. नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता और जम्मू-कश्मीर के पूर्व सीएम फारूक अब्दुल्ला गाजियाबाद में यात्रा में शामिल हुए थे. श्रीनगर में उनके बेटे और पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला भी राहुल गांधी के साथ चले.

महबूबा मुफ्ती और कमल हासन भी यात्रा में शामिल हो चुके हैं. इनके अलावा आदित्य ठाकरे, संजय राउत, सुप्रिया सूले, एमके स्टालिन सहित कई अन्य नेता भी यात्रा में शामिल हो चुके हैं.

यह स्पष्ट है कि कांग्रेस का उद्देश्य एकजुट विपक्ष के चेहरे के लिए खुद को स्पष्ट विकल्प बनाना है- ऐसा कि उसे खुद को सुरक्षित करने के लिए बाद में संघर्ष न करना पड़े- और यात्रा उस लक्ष्य को हासिल करने का एक साधन है. लेकिन ऐसा लगता है कि एक बार यात्रा समाप्त हो जाने के बाद भी, पार्टी को विपक्षी पार्टियों को समझाने के लिए कड़ी लड़ाई जारी रखनी होगी.

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