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Bharat Jodo Yatra के 100 दिन: राहुल-कांग्रेस की इमेज चमकी लेकिन क्या वोट बढ़ेगा?

भारत जोड़ो यात्रा ने 100 दिनों में 8 राज्यों में लगभग 2400KM की दूरी तय की है. क्या कांग्रेस को चुनावी मदद मिलेगी?

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कांग्रेस पार्टी की 'भारत जोड़ो यात्रा' (Bharat Jodo Yatra) ने 16 दिसंबर को 100 दिन पूरे कर लिए. इस यात्रा में अब तक आठ राज्यों में लगभग 2400 किलोमीटर की दूरी तय की गई है कर यह वर्तमान में पूर्वी राजस्थान में है. यह तथ्य कि कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी और उनके साथ चल रहे अन्य यात्रियों ने पिछले 100 दिनों में निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार मार्च किया है, न सिर्फ उनकी शारीरिक सहनशक्ति की गवाही देता है बल्कि साथ-साथ यात्रा के पीछे की लॉजिस्टिक टीम की दक्षता भी बताता है.

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भारत जोड़ो यात्रा लगभग 70 प्रतिशत का सफर तय कर चुकी है. यह जनवरी महीने के आखिर में श्रीनगर में अपना कारवां पूरा करेगी.

इस यात्रा के दौरान कांग्रेस के भीतर कई अहम घटनाक्रम भी हुए- इसमें शामिल है पार्टी अध्यक्ष चुनाव के दौरान राजस्थान में सामने आया आंतरिक कलह, पिछले 25 सालों में गांधी परिवार के बाहर अध्यक्ष के रूप में मल्लिकार्जुन खड़गे का चुनाव, हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की जीत और गुजरात में मिली करारी हार. इसके अलावा कई उपचुनाव और निकाय चुनाव के नतीजे भी है.

यात्रा के सौ दिन गुजरने के मौके पर सवाल का जवाब खाजा जा सकता है कि इसने अबतक राजनीतिक रूप से क्या हासिल किया है और कहां कमी रह गई है?

पार्टी कैडर का विश्वास फिर से बहाल

ऑल इंडिया कांग्रेस कमिटी (AICC) के सचिव रणजीत मुखर्जी कहते हैं कि "कांग्रेस पार्टी संगठन में काम करने वाले व्यक्ति के रूप में, मैं पूरे विश्वास के साथ कह सकता हूं कि यात्रा ने पार्टी कैडर में फिर से जान फूंक दी है."

उन्होंने आगे कहा "इसे इस तरह से सोचिए. यदि आप पार्टी के वरिष्ठ कार्यकर्ताओं से बात करते हैं, तो वे कहेंगे कि इंदिरा जी का उनके क्षेत्र में आना या राजीव जी का उनसे मिलना उनके जीवन का एक बड़ा मौका रहा है. भारत जोड़ो यात्रा ने भारत भर के लाखों पार्टी कार्यकर्ताओं को एक ऐसा ही क्षण दिया है"

कई पार्टी कार्यकर्ता जो पार्टी आलाकमान से मायूस या निराशा महसूस करने लगे थे, उन्होंने फिर से विश्वास करना शुरू कर दिया है. और यह कोई छोटी उपलब्धि नहीं है.

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नए कलेवर में राहुल गांधी

जब भारत जोड़ो यात्रा दक्षिणी राज्यों से पार हो गयी, तो CVoter ने एक सर्वे किया. इसमें पता चला कि राहुल गांधी की अप्रूवल रेटिंग में उन सभी राज्यों में सुधार हुआ है जहां से यात्रा गुजरी थी.

रणजीत मुखर्जी का कहना है कि, ''राहुल गांधी की छवि खराब करने और उनका कैरिकेचर बनाने के लिए 2012 से अबतक करोड़ों रुपये खर्च किए गए हैं. भारत जोड़ो यात्रा ने राहुल की खड़ी की गयी उस छवि को तोड़ दिया है.''

बेशक यह देखा जाना बाकी है कि राहुल गांधी की छवि को किस हद तक पुनर्जीवित किया गया है, लेकिन इसमें कोई संदेह नहीं है कि कांग्रेस के भीतर उनके पोजीशन पर अब कोई किंतु-परंतु नहीं बचा है. यहां तक ​​कि गांधी परिवार के खिलाफ लेटर लिखने वाले बागी G23 ग्रुप के बचे हुए सदस्यों ने भी इस तथ्य को स्वीकार कर लिया है.

उदाहरण के लिए, G23 ग्रुप के सदस्य और महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण ने कहा है कि "G23 अब अतीत की बात हो गई है".

कांग्रेस की वैचारिक नींव को फिर मजबूत किया

राहुल गांधी ने राजस्थान में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि "कांग्रेस को यह समझने की जरूरत है कि वह कौन है और उनकी विचारधारा क्या है." उन्होंने कहा कि भारत जोड़ो यात्रा के पीछे यही मुख्य उद्देश्य है.

ऐसा लगता है कि यात्रा ने इस उद्देश्य को प्रभावी ढंग से हासिल भी कर लिया है. राजनीतिक शोधकर्ता असीम अली का कहना है कि "भारत जोड़ो यात्रा कांग्रेस द्वारा अपने मूल विचार की सबसे प्रभावी अभिव्यक्ति रही है. और इसने इसे मुख्य रूप से इमेज और रूपकों के जरिये व्यक्त किया गया है, शब्दों से नहीं."

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बीजेपी के सामने मुख्य विरोधी पार्टी के रूप में कांग्रेस की साख में सुधार

कांग्रेस से नहीं जुड़े भी कई बड़े नाम इस यात्रा में शामिल हुए हैं- जैसे कि मारे गए पत्रकार गौरी लंकेश की बहन कविता लंकेश, दिवंगत रोहित वेमुला की मां राधिका वेमुला, RBI के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन, एक्टिविस्ट प्रशांत भूषण, मेधा पाटकर और योगेंद्र यादव. इसमें अमोल पालेकर, पूजा भट्ट, रिया सेन और सुशांत सिंह जैसे एक्टर भी जुड़े तो स्टैंड अप कॉमेडियन कुणाल कामरा भी शामिल हुए.

ये न केवल अपने क्षेत्र में बड़े नाम हैं, बल्कि पब्लिक ओपिनियन को प्रभावित करने की कूवत भी रखते हैं.

यह दर्शाता है कि कुछ मायनों में, जो लोग पहले से ही बीजेपी के खिलाफ हैं लेकिन कांग्रेस की क्षमताओं के बारे में संदेह करते थे, अब उसे बीजेपी को हराने के मुख्य दावेदार के रूप में देखने को तैयार हैं.

यह भी गौर करने लायक है कि यात्रा में शामिल होने वालों में कुछ ऐसे लोग भी हैं, जिन्होंने अतीत में कांग्रेस का विरोध किया है. प्रशांत भूषण और योगेंद्र यादव दोनों इंडिया अगेंस्ट करप्शन आंदोलन और बाद में आम आदमी पार्टी का हिस्सा थे. मेधा पाटकर भी दोनों का हिस्सा थीं और उन्होंने पहले भी कई अन्य मुद्दों पर कांग्रेस का विरोध किया है.

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लेकिन क्या इससे कांग्रेस को चुनावी लाभ होगा?

जब राहुल गांधी से एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान सवाल किया गया कि क्या यात्रा 2024 के लोकसभा चुनावों को ध्यान में रखकर शुरू की गयी है, तो उन्होंने कहा "यह मुख्य फोकस नहीं है". इसके बावजूद इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है कि सत्ता पर काबिज होना किसी भी राजनीतिक पार्टी के सबसे महत्वपूर्ण उद्देश्यों में से एक होता है, यदि सबसे महत्वपूर्ण नहीं भी हो.

यदि वास्तव में बीजेपी और RSS नफरत फैला रहे हैं, जैसा कि राहुल गांधी कहते रहे हैं, तो निश्चित रूप से 2024 में बीजेपी को हराना 'भारत जोड़ो' जैसी किसी भी कवायद का मुख्य उद्देश्य होना चाहिए.

ऐसा लगता है कि कांग्रेस ने 'भारत जोड़ो यात्रा' के माध्यम से उन सभी लोगों को एकजुट करने की प्रक्रिया शुरू कर दी है जो पहले से ही वैचारिक रूप से बीजेपी विरोधी हैं.

दूसरी तरफ, ऐसा लगता नहीं है कि बीजेपी खेमे के वोटर कांग्रेस में जाने के लिए राजी हो रहे हैं. मूल रूप से, जो लोग बीजेपी के खिलाफ थे और सोच रहे थे "कहां है कांग्रेस?" या "कांग्रेस क्या कर रही है?", उन्हें तो जवाब दिया गया है. लेकिन उन बीजेपी वोटर्स को नहीं जो विकल्प चाहते हैं.

CVoters के सर्वे के मुताबिक, राहुल गांधी की अप्रूवल रेटिंग में बढ़ोतरी के साथ-साथ पीएम मोदी की रेटिंग में कोई कमी नहीं आई है. दरअसल, इस दौरान पीएम मोदी की रेटिंग भी बढ़ी ही है.

2024 में बीजेपी को हराने के लिए जरूरी है कि बीजेपी का वोट बैंक तोड़कर ही कांग्रेस या किसी और पार्टी फायदा उठाए .

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भारत जोड़ो यात्रा के संभावित चुनावी प्रभाव को देखने का दूसरा तरीका इस दौरान हुए चुनाव हैं. कांग्रेस ने हिमाचल प्रदेश जीता लेकिन गुजरात में हार गई. हालांकि, दोनों ऐसे राज्य हैं जहां भारत जोड़ो यात्रा नहीं पहुंची है.

संयोग से, राहुल गांधी हिमाचल प्रदेश में प्रचार से दूर रहे जहां कांग्रेस जीत गई. जबकि यात्रा के तेलंगाना से गुजरने के बाद पार्टी वहां की मुनुगोडे में हार गयी. हालांकि इस सीट से भी यात्रा नहीं गुजरी थी.

यात्रा का वास्तविक चुनावी प्रभाव, या उसकी गैर-मौजूदगी, अगले साल कर्नाटक, मध्य प्रदेश, राजस्थान और तेलंगाना में होने जा रहे विधानसभा चुनावों के दौरान दिखाई दे सकती है. ये राज्य यात्रा में बड़े स्तर पर कवर किये गए हैं. बेशक इसके अलावा 2024 के लोकसभा चुनाव तो हैं ही.

पार्टी के राजस्थान और मध्य प्रदेश इकाइयों के कुछ नेताओं ने महसूस किया कि अगर यात्रा में "प्यार बनाव नफरत" की जगह साफ-साफ नौकरियों और किसानों के मुद्दों को सामने रखा जाता तो, चुनावी रूप से अधिक फायदेमंद होता.

राजस्थान कांग्रेस के एक पदाधिकारी ने क्विंट से कहा कि 'प्यार' का यह संदेश अस्पष्ट और सब्जेक्टिव भी है. इससे बेहतर होता अगर सभी लोगों को प्रभावित करने वाले मुद्दों पर स्पष्ट ध्यान दिया जाता - जैसे कि नौकरियों की कमी. 'प्यार' के बारे में बात करने से बड़ी संख्या में लोग खुद को उससे नहीं जोड़ पाएंगे".

2024 के चुनाव के संदर्भ में यात्रा एक मोर्चे पर सही लगती है कि राष्ट्रीय स्तर के चुनाव को राज्यों के चुनाव के योग के तौर पर नहीं देखा जा सकता, इसके लिए अलग नैरेटिव और तैयारी की जरूरत है. यात्रा को उसी दिशा में एक कदम के रूप में देखा जा सकता है.

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