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पंजाब में 'भारत जोड़ो यात्रा' से कांग्रेस को उम्मीद हासिल हुई,लेकिन संजीवनी नहीं

Punjab में Bharat Jodo Yatra का प्रभाव क्या रहा? क्या यह राज्य में कांग्रेस को पुनर्जीवित करने में मदद कर सकता है?

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राहुल गांधी (Rahul Gandhi) के नेतृत्व में कांग्रेस पार्टी की 'भारत जोड़ो यात्रा' (Bharat Jodo Yatra) के पंजाब चरण में जालंधर से पार्टी के सांसद संतोख सिंह चौधरी की दुखद मौत की खबर हावी रही.

दो बार के सांसद और एक प्रमुख आदि-धर्मी नेता संतोख सिंह चौधरी को सभी पार्टियों से सम्मान मिलता था और उनका निधन कांग्रेस के लिए एक बड़ी क्षति है. एक सच्चे कांग्रेसी, संतोख सिंह चौधरी की फिल्लौर में भारत जोड़ो यात्रा के दौरान मृत्यु हो गई. इससे एक घंटे से भी कम समय पहले वो विभिन्न धर्मों के नेताओं की एक सार्वजनिक बैठक में शामिल हुए थे.

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हालांकि, पंजाब में इससे इतर भारत जोड़ो यात्रा के अपने कुछ बड़े मौके भी थे. दिवंगत सिद्धू मूस वाला के पिता बलकौर सिंह जालंधर में यात्रा में शामिल हुए, पूर्व AAP सांसद धर्मवीर गांधी फतेहगढ़ साहिब में शामिल हुए. साथ ही राहुल गांधी की बुद्धिजीवियों, पूर्व सैनिकों, आढ़तियों, वकीलों और अन्य वर्गों के साथ बातचीत अच्छी रही.

लेकिन सवाल है कि पंजाब में भारत जोड़ो यात्रा का प्रभाव क्या रहा? क्या यह राज्य में कांग्रेस को पुनर्जीवित करने में मदद कर सकता है?

यह पता लगाने के लिए, द क्विंट लुधियाना और जालंधर जिलों में यात्रा में शामिल हुआ और इससे पहले यात्रा जिन कुछ क्षेत्रों से गुजरी वहां वापस गया.

कांग्रेस पार्टी के लिए क्या काम कर गया?

1. काडर में ऊर्जा बढ़ी

कुल मिलाकर यात्रा ने कांग्रेस कार्यकर्ताओं में ऊर्जा का संचार किया है. 2022 के विधानसभा चुनाव में पार्टी की हार के बाद कांग्रेस कार्यकर्ता बेहद मायूस हो गए थे. सुनील जाखड़, गुरप्रीत कांगड़, राज कुमार वेरका, बलबीर सिद्धू, सुंदर शाम अरोड़ा जैसे नेताओं के बीजेपी में शामिल होने के साथ शुरू हुई दलबदल की आंधी से वे और कमजोर हो गए. यात्रा के दौरान भी पूर्व वित्त मंत्री मनप्रीत बादल, जो कांग्रेस के केंद्रीय नेतृत्व के पसंदीदा माने जाते थे, बीजेपी में चले गए.

भारत जोड़ो यात्रा ने पंजाब में कार्यकर्ताओं को संदेश दिया है कि पार्टी न तो हार मान रही है और न ही जगह छोड़ रही है और पंजाब उसके लिए प्राथमिकता बना हुआ है.

लेकिन यात्रा ने पार्टी के कार्यकर्ताओं को एक सकारात्मक मोड़ पर लामबंद किया और वे बड़ी संख्या में यात्रा में शामिल हुए. जालंधर शहर जैसी जगहों पर, यात्रा ने विशेष रूप से पार्टी के पारंपरिक दलित और उच्च जाति के हिंदू वोट बेस के बीच आम लोगों की एक बड़ी संख्या को अपनी ओर आकर्षित किया.

यात्रा के दौरान पीसीसी प्रमुख अमरिंदर सिंह राजा वारिंग, नेता प्रतिपक्ष प्रताप सिंह बाजवा, पूर्व सीएम चरनजीत चन्नी, राजस्थान प्रभारी सुखजिंदर रंधावा जैसे नेताओं ने संयुक्त मोर्चा पेश किया. यहां तक ​​कि नाराज खडूर साहिब के सांसद जसबीर सिंह डिंपा ने भी यात्रा को अपना समर्थन दिया.

2. पांच लोकसभा सीटों को कवर किया गया

भारत जोड़ो यात्रा पंजाब की 13 लोकसभा सीटों में से पांच - फतेहगढ़ साहिब, लुधियाना, जालंधर, होशियारपुर और गुरदासपुर से होकर गुजरी. आनंदपुर साहिब के साथ ये 5 सीट लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के सबसे बड़ी उम्मीद भी हैं.

कवर की गई लोकसभा सीटों के प्रतिशत के संदर्भ में बात करें तो पंजाब संभवतः केरल के बाद यात्रा में सबसे अधिक कवर किए गए राज्यों में से एक था.

3. अहम चेहरों का शामिल होना और राहुल गांधी की बातचीत

निस्संदेह, यात्रा में बलकौर सिंह का शामिल होना महत्वपूर्ण था. जब तक सिद्धू मूसावाला की हत्या के पीछे के कथित मास्टरमाइंड खुले घूम रहे हैं, यह कई लोगों के लिए एक प्रमुख मुद्दा बना रहेगा और बलकौर सिंह इस शिकायत को व्यक्त करने वाला मुख्य चेहरा हैं.

इसी तरह, डॉ. धर्मवीर गांधी एक सम्मानित व्यक्ति हैं, जिन्होंने एक डॉक्टर और एक्टिविस्ट के रूप में निस्वार्थ भाव से लोगों के लिए काम किया है. यात्रा में उनकी उपस्थिति निस्संदेह इसे कांग्रेस के वफादारों से परे कुछ विश्वसनीयता प्रदान करती है.

राहुल गांधी ने पगड़ी पहनी, हरमंदिर साहिब और फतेहगढ़ साहिब का दौरा किया. इसकी तस्वीरें भी सोशल मीडिया पर खूब दौड़ीं. हालांकि इसने ऑपरेशन ब्लू स्टार और 1984 के सिख विरोधी नरसंहार पर कांग्रेस को सवालों के घेरे के बीच भी ला खड़ा किया.

बुद्धिजीवियों, वकीलों, आढ़तियों, युवा किसानों, पूर्व सैनिकों और अन्य वर्गों के साथ राहुल गांधी की बातचीत भी अच्छी रही. इसे रायकोट से पार्टी के पूर्व उम्मीदवार कामिल अमर सिंह ने कॉर्डिनेट किया था.

इन मुलाकातों के चश्मदीदों का कहना है कि गांधी को कुछ कठिन सवालों और जमीनी वास्तविकता का सामना करना पड़ा था. लेकिन उनका कहना है कि राहुल ने स्थिति को शिष्टता से संभाला. कम से कम इसने विभिन्न वर्गों को यह संकेत दिया कि कांग्रेस बातचीत के लिए तैयार है और समाधान के साथ सामने आने की कोशिश कर रही है.

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कांग्रेस पार्टी के लिए क्या काम नहीं कर पाया?

1. वोटर का अभी भी कांग्रेस से मोहभंग

पंजाब एक ऐसा राज्य है जहां अगर वजह सही हो तो लोगों को लामबंद करना मुश्किल नहीं है. यहां तक ​​कि जब यात्रा पंजाब से होकर गुजरी तब राज्य में कई विरोध प्रदर्शन चल रहे थे - सिख समूहों द्वारा पंजाब-चंडीगढ़ सीमा पर राजनीतिक बंदियों की रिहाई की मांग को लेकर सड़क जाम करने से लेकर जीरा में किसानों और जालंधर के लतीफपुरा में विस्थापितों का विरोध.

किसानों के विरोध के बाद पंजाब सरकार को जीरा में शराब के कारखाने को बंद करने का आदेश देना पड़ा.

कई अन्य राज्यों के विपरीत, पंजाब के लोग सड़कों पर उतर रहे हैं. लेकिन भारत जोड़ो यात्रा में वास्तव में आम लोगों की भारी भागीदारी नहीं देखी गई. यात्रा के साथ चल रहे लोगों में से अधिकांश कांग्रेस कार्यकर्ता थे या किसी तरह से कांग्रेस से जुड़े हुए थे. यह इस तथ्य के बावजूद है कि यात्रा द्वारा उठाए जा रहे बेरोजगारी, सांप्रदायिक सद्भाव और संघवाद जैसे मुद्दे पंजाब में हावी हैं.

ऐसा लगता है कि पंजाब में कई लोग भारत जोड़ो यात्रा के संदेश से सहमत हो सकते हैं, लेकिन वे इसके मैसेंजर को लेकर विशेष रूप से उत्साहित नहीं थे.

पंजाब के वोटर, विशेष रूप से ग्रामीण सिख वोटर, बेअदबी की घटनाओं और उसके बाद के विरोधों के साथ-साथ 2020-21 के किसान आंदोलन के बाद से एक बड़े मंथन के दौर से गुजर रहे हैं. आम तौर पर असंतोष का माहौल है. 2022 के विधानसभा चुनाव में AAP इसका डिफॉल्ट लाभार्थी थी लेकिन तब से इसके समर्थन में कुछ गिरावट आई है.

हालांकि, यह स्पष्ट है कि AAP से कुछ असंतोष के बावजूद, बहुत से वोटर कांग्रेस में वापस जाने के इच्छुक नहीं हैं. इसका लाभ मुख्य रूप से शहरी हिंदू मतदाताओं के एक वर्ग के बीच बीजेपी के लिए और सिख मतदाताओं के एक वर्ग के बीच स्वतंत्र पंथिक राजनीति को मिला है.
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2. नैरेटिव गायब

ऐसा लगता है कि कांग्रेस के पास फिलहाल पंजाब में स्पष्ट नैरेटिव नहीं है. राजा वारिंग और रवनीत बिट्टू जैसे नेता "राष्ट्रीय सुरक्षा" के मुद्दे को उठाने और राज्य के हिंदू अल्पसंख्यक को मजबूत करने की कोशिश करने की पंजाब में कांग्रेस की पुरानी रणनीति को फिर से दोहरा रहे हैं.

यह नैरेटिव अपने आप में पंजाब में कांग्रेस को पुनर्जीवित करने में वास्तव में मदद नहीं कर सकता है. यहां तक ​​कि शहरी हिंदू मतदाताओं के भी पार्टी में तब तक लौटने की संभावना नहीं है जब तक कि वह कुछ जाट सिख समर्थन हासिल नहीं कर लेती. और लोकसभा स्तर पर, बीजेपी हिंदुओं के बीच विधानसभा चुनावों की तुलना में कहीं अधिक महत्वपूर्ण खिलाड़ी होगी.

जाट सिख समर्थन वापस पाने के सपने के बीच कांग्रेस का यह 'राष्ट्रीय सुरक्षा' केंद्रित दृष्टिकोण प्रतिकूल साबित हो सकता है.

3. लीडरशिप की गैर-मौजूदगी

पार्टी राज्य स्तर पर और साथ ही इसके कुछ इलाकों में नेतृत्व की कमी का सामना कर रही है. पंजाब में भारत जोड़ो यात्रा का एक पहलू जो बहुत से लोग चूक गए हैं, वह यह है कि यह हरियाणा-पंजाब सीमा से नहीं बल्कि पंजाब में लगभग 40 किलोमीटर सरहिंद में शुरू हुई.

ऐसा इसलिए था क्योंकि पार्टी के राजपुरा प्रभारी हरदयाल कंबोज के साथ-साथ उनके बेटे एक्शन से गायब थे. कुछ का कहना है कि यह एक केस के कारण है जिसका वह सामना कर रहे हैं. एक स्थानीय पत्रकार को आत्महत्या के लिए कथित रूप से उकसाने के आरोप में उनके और उनके बेटे के खिलाफ लुकआउट नोटिस जारी किया गया था.
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कई क्षेत्रों में, पार्टी ऐसे ही नेतृत्व की गैर-मौजूदगी का सामना कर रही है क्योंकि इसके मुख्य नेता या तो दलबदल कर चुके हैं या मुकदमों का सामना कर रहे हैं. जिन क्षेत्रों में पार्टी का मजबूत नेतृत्व है, पार्टी ने भीड़ को इकट्ठा करने में कामयाबी हासिल की, जैसे कि जालंधर शहर में, जहां पार्टी के दो मौजूदा विधायक हैं - परगट सिंह और अवतार सिंह जूनियर उर्फ ​​बावा हेनरी.

इस खालीपन की कीमत पार्टी को लोकसभा चुनाव में चुकानी पड़ सकती है. मालवा में, जहां आठ लोकसभा सीटें हैं, पार्टी के केवल दो विधायक हैं. और पार्टी के लिए सिटिंग विधायकों के बिना मतदाताओं को लामबंद करना आसान नहीं होगा.

प्रदेश स्तर पर भी खालीपन है. राजा वारिंग मेहनती और अपने दृष्टिकोण में व्यावहारिक हैं. यात्रा में उन्हें इधर-उधर भागते और व्यक्तिगत रूप से पार्टी कार्यकर्ताओं को निर्देश देते देखा जा सकता था. लेकिन उनका अखिल पंजाब जैसा कद नहीं है. आखिर में, बहुत कुछ नवजोत सिद्धू और सुखपाल सिंह खैरा जैसे नेताओं का उपयोग करने की कांग्रेस की क्षमता पर निर्भर हो सकता है. अपनी कमियों के बावजूद, दोनों की साफ-सुथरी छवि है और स्वतंत्र, पंजाब-समर्थक, सिख-समर्थक स्टैंड लेने के कारण कुछ विश्वसनीयता है.

दलबदल का सिलसिला जारी रह सकता है जैसा कि मनप्रीत बादल के जाने से जाहिर है. जनवरी के अंत तक और भी रास्ते निकल सकते हैं. लेकिन दल-बदल से ज्यादा, पार्टी के लिए बड़े मील के पत्थर 'हाथ से हाथ जोड़ो अभियान' और चार नगर निगमों- लुधियाना, अमृतसर, जालंधर और पटियाला के आगामी चुनाव होंगे.

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