लोकसभा चुनाव में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) को जबरदस्त जीत मिली, तो लगा कि अगले साल होने वाले बिहार विधानसभा चुनाव में भी ये गठबंधन अटूट रहेगा. हालांकि, सूबे की 40 में से 39 लोकसभा सीटें जीतने के बाद इस गठजोड़ में गांठ उभरने लगी है. जेडीयू और बीजेपी के बीच रिश्तों में खटास तेजी से बढ़ती जा रही है.
संजय पासवान के बयान के बाद जेडीयू भड़की
कारण है, मुख्यमंत्री की कुर्सी. करीब 20 सालों के साथ के बाद बीजेपी की नजरें अब नीतीश कुमार की कुर्सी पर जम गई है. सोमवार को बीजेपी के विधान पार्षद संजय पासवान के बयान के बाद तो सियासी गरमी तेज हो गई. पासवान ने कहा था, “नीतीश जी ने अच्छा काम किया है, लेकिन बिहार में उन्हें 15 साल हो गए. उन्हें अब बिहार की बागडोर डिप्टी सीएम सुशील मोदी के हवाले कर दिल्ली की ओर रुख करना चाहिए.” बता दें कि पासवान पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य भी हैं.
इसके बाद तो बयानबाजी का दौर ही शुरू हो गया. पासवान के बयान पर जेडीयू ने कड़ी प्रतिक्रिया दी. पार्टी के प्रधान महासचिव के सी त्यागी ने पलटवार किया. उन्होंने कहा,
“नीतीश कुमार किसी के रहमोकरम पर मुख्यमंत्री नहीं बने हैं. उन्हें जनता ने चुना है. बयानवीरों को बड़े बोलों से बचना चाहिए. याद रखें कि हमने कभी बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व के बारे में कुछ नहीं कहा है. ऐसे बयान एनडीए की चुनावी रणनीति को कमजोर करते हैं.”के सी त्यागी, वरिष्ठ नेता, जेडीयू
विवाद बढ़ता देख बीजेपी नेतृत्व ने पासवान के बयान से पल्ला झाड़ लिया. हालांकि, इस बारे में स्थिति साफ करने से पार्टी के बड़े नेता कन्नी काटते रहे. जिन नेताओं ने मीडिया से बात भी की, उनके बयानों से स्थिति और उलझ गई. बीजेपी सांसद सी पी ठाकुर के मुताबिक इस बारे में फैसला चुनाव के बाद होगा. पार्टी के दूसरे नेता जेडीयू-बीजेपी के साथ को तो अटूट बता रहे हैं, लेकिन इस गठबंधन का नेता कौन होगा, ये नहीं बता रहे हैं.
साफ है कि लोकसभा चुनाव के बाद बीजेपी की महत्वाकांक्षा बढ़ी है. पहले जो बातें दबी जुबान में कही जाती थी, अब बीजेपी नेता उन्हें खुलकर कह रहे हैं.
अपने स्टैंड पर अड़ी जेडीयू
दूसरी तरफ, जेडीयू भी अपने रुख पर अड़ी हुई है. पार्टी किसी भी कीमत पर इस बारे में समझौता करने को तैयार नहीं है. पार्टी के नेता संजय सिंह भी बीजेपी को उसका “कद” याद दिला रहे हैं. सिंह ने कहा, “बीजेपी नेताओं को 2015 को भी याद रखना चाहिए. उस साल भी क्या कोर-कसर छोड़ी गई थी? हुआ क्या? सरकार का मॉडल जनता तय करती है. नीतीश कुमार की अहमियत बीजेपी के नेता भी अच्छे से समझते हैं.”
जेडीयू ने तो अपनी बात रखने के लिए बकायदा “पोस्टर वॉर” भी शुरू कर दिया है. पार्टी के पटना में राज्य कार्यालय के बाहर नए-नए पोस्टरों के जरिए पार्टी अपने दावे को पेश कर रही है. अप्रैल से ही जेडीयू के दफ्तर के बाहर “अच्छा है, सच्चा है, चलो नीतीश कुमार के साथ” का पोस्टर लगा हुआ था.
बीते महीने पार्टी ने इसे बदल कर “क्यों करें विचार, ठीके तो है नीतीश कुमार” कर दिया. 9 सितंबर को फिर से बदल दिया. अब ये पोस्टर बन गया है, “क्यूं करें विचार, जब है ही नीतीश कुमार”. जेडीयू दफ्तर के पास ही बीजेपी का भी दफ्तर है, लेकिन पार्टी ने इस पर चुप्पी साध रखी है.
नीतीश को साथ रखने पर बीजेपी में नहीं है एक राय!
राजनीतिक विश्लेषक इस विवाद को खास तौर पर जेडीयू की बेकरारी का सबब बता रहे हैं. जेडीयू नेतृत्व चाहता है कि बीजेपी मुख्यमंत्री पद के लिए नीतीश कुमार की दावेदारी को स्वीकार कर ले. पार्टी सूत्रों के मुताबिक, अरुण जेटली के निधन के बाद जेडीयू और बीजेपी के केंद्रीय नेतृत्व के बीच सबसे मजबूत कड़ी खत्म हो गई है.
वहीं, नीतीश कुमार का साथ देने वाले दूसरे नेताओं ने भी या तो सक्रिय राजनीति से किनारा कर लिया है या फिर बीजेपी में उनकी हैसियत कमजोर हुई है. इसलिए जेडीयू के बड़े नेताओं के मन में असुरक्षा का भाव भी घर कर रहा है.
वहीं, बीजेपी में भी इस बारे में स्पष्ट मत नहीं है. पार्टी का एक बड़ा वर्ग अब बिहार की सत्ता पर किसी बीजेपी नेता को देखना चाहता है. उनके मुताबिक लोकसभा चुनाव में बीजेपी को सबसे ज्यादा मत-प्रतिशत (23 फीसदी) और सबसे ज्यादा सीटें मिली हैं. इसलिए अब बिहार में बीजेपी के उदय का वक्त आ गया है.
वहीं, बीजेपी के एक वर्ग का ये भी मानना है कि लालू की स्थिति कमजोर हुई है और अब बिहार की राजनीति नीतीश कुमार के इर्द-गिर्द ही घूमेगी. इसलिए नीतीश कुमार को अपने साथ रखने में ही भलाई है. दिलचस्प बात ये है कि पार्टी नेतृत्व इस बारे में स्थिति स्पष्ट करना भी नहीं चाहती. कारण है बीजेपी, नीतीश को साथ भी रखना चाहती है और काबू में भी.
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