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केंद्र ने भीमा कोरेगांव केस NIA को दिया, महाराष्ट्र सरकार खफा

अनिल देशमुख ने कड़े शब्दों में इसकी निंदा की है.

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भीमा कोरेगांव केस में शिवसेना और नेशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) के बीच मतभेद खुलकर सामने आ गया है. बिना महाराष्ट्र सरकार को बताये इस मामले की जांच केंद्र सरकार ने NIA को सौंपे जाने से महाराष्ट्र के गृह मंत्री अनिल देशमुख नाराज हो गए.

अनिल देशमुख ने कड़े शब्दों में इसकी निंदा की है. उन्होंने इस फैसले को राज्य सरकार के काम में दखलंदाजी जैसा बताया.

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राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) ने शुक्रवार को महाराष्ट्र सरकार को बताया कि एजेंसी ‘एनआईए एक्ट’ का हवाला देते हुए 2018 भीमा-कोरेगांव मामले की जांच कर रही है और जांच कई राज्यों में फैली हुई है. महाराष्ट्र के गृह मंत्री अनिल देशमुख ने शुक्रवार को केंद्र सरकार पर निशाना साधते हुए दावा किया कि उसने राज्य सरकार की सहमति के बिना 2018 भीमा-कोरेगाव हिंसा मामले की जांच एनआईए को सौंप दी है.

अनिल देशमुख और उपमुख्यमंत्री अजीत पवार ने महाराष्ट्र पुलिस डीजी के साथ जांच में शामिल पुलिस अधिकारियों की एक बैठक बुलाई थी ताकि जांच के दायरे को समझा जा सके.

एनसीपी प्रमुख शरद पवार ने कुछ दिन पहले बैठक बुलाई थी, इस मामले में एसआईटी से जांच के लिए उन्होंने राज्य के गृह विभाग को पत्र लिखा था और पुलिस के खिलाफ जांच के लिए भी कहा था. इसके अलावा जांच अधिकारियों के तौर-तरीकों पर भी सवाल उठाया गया. पत्र में इस बात का भी जिक्र किया गया था कि एल्गर परिषद मामले में कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी गलत और बदले की भावना से प्रेरित थी. शरद पवार ने की गई कार्रवाई में रिटायर्ड जज से जांच की मांग की थी.

बता दें महाराष्ट्र की महाविकास अघाड़ी की सरकार ने भीमा कोरेगांव मामले में हुई जांच और बाद में 9 एक्टिविस्ट की गिरफ्तारियों की समीक्षा शुरू कर दी है. एनसीपी प्रमुख शरद पवार पहले ही गिरफ्तारियों की SIT जांच की मांग कर चुके हैं. उधर शिवसेना का कहना है कि भीमा कोरेगांव मामले में पुणे पुलिस ने सबूतों के आधार पर ही कार्रवाई की है. साफ है कि सरकार में ही इस मसले को लेकर मतभेद है.

1 जनवरी 2018 को पुणे के भीमा कोरेगांव कोरेगाव में दो गुटों में हिंसक झड़प हुई थी. पुणे पुलिस ने इस मामले की तफ्तीश की और 9 एक्टिविस्ट को गिरफ्तार किया. पवार का आरोप ये है कि तत्कालीन फडणवीस सरकार की कार्रवाई बदले की भावना से की गई थी.

क्या है पूरा मामला ?

31 दिसंबर 2017 को पुणे में एल्गार परिषद का आयोजन किया गया था. 250 साल पहले दलितों और मराठाओं के बीच हुए युद्ध में दलितों की जीत का जश्न मनाने के लिए हर साल दलित यहां जमा होते हैं. इस कार्यक्रम में कुछ भड़काऊ भाषण देने का आरोप है.

इसी के अगले दिन हिंसा हुई थी. सरकार का आरोप था कि कार्यक्रम आयोजित करने वालों के माओवादियों से संबंध हैं. इस बिनाह पर पुलिस ने सुधीर धवले, रोना विल्सन, सुरेंद्र गाडलिंग, महेश राउत, सोम सेन,अरुण परेरा समेत 9 लोगो को गिरफ्तार किया था, जिन्हें आज भी जमानत नहीं मिल सकी है.

एनसीपी और कांग्रेस गिरफ्तारियों को गलत बता रही है तो शिवसेना विधायक और पूर्व गृह राज्य मंत्री दीपक केसरकर ने कहा है कि पुणे पुलिस ने कार्रवाई सबूतों के आधार पर की थी. कुल मिलाकर भीमा कोरेगांव मामले पर महाराष्ट्र की सहयोगी पार्टियों के बीच मतभेद साफ नजर आ रहा है.

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