महाराष्ट्र में 23 नवंबर की सुबह कुछ ऐसा हुआ है, जिसे भारतीय राजनीतिक इतिहास के सबसे बड़े उलटफेरों में से एक माना जा रहा है. इस उलटफेर का पता तब चला, जब सबको चौंकाते हुए एक खबर आई कि बीजेपी नेता देवेंद्र फडणवीस महाराष्ट्र के सीएम पद की शपथ ले रहे हैं और एनसीपी नेता अजित पवार डिप्टी सीएम पद की शपथ ले रहे हैं.
यह खबर चौंकाने वाली इसलिए थी क्योंकि इसके आने से पहले महाराष्ट्र में शिवसेना-एनसीपी-कांग्रेस की सरकार बनना लगभग तय माना जा रहा था. 22 नवंबर की शाम शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस के शीर्ष नेताओं के बीच बैठक हुई थी. बैठक से बाहर निकलते हुए एनसीपी चीफ शरद पवार ने कहा था- ‘’मुख्यमंत्री के तौर पर उद्धव ठाकरे के नाम पर हम सबके बीच सहमति बनी है.’’
वहीं कांग्रेस नेता और महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण ने बैठक के बाद कहा, ''सभी (तीनों) पार्टियों के नेता मौजूद थे. बातचीत सकारात्मक रही. बातचीत कल भी जारी रहेगी.''
इन बयानों के आने के बाद मीडिया में शिवसेना-एनसीपी-कांग्रेस के बीच सत्ता साझेदारी के फॉर्मूले भी आने लगे.
22 नवंबर को ही केंद्रीय मंत्री और बीजेपी नेता नितिन गडकरी का भी एक बयान आया, जिसमें उन्होंने भी कहीं ना कहीं इस बात को माना कि महाराष्ट्र में फिलहाल शिवसेना-एनसीपी-कांग्रेस की सरकार बन सकती है. उन्होंने न्यूज एजेंसी पीटीआई से कहा था, ''उनके (शिवसेना-एनसीपी-कांग्रेस) के गठबंधन का आधार अवसरवादिता है. ये तीनों पार्टियां केवल बीजेपी को सत्ता से बाहर रखने के मकसद से एकजुट हुई हैं. मुझे इस सरकार के बनने पर शक है...अगर यह सरकार बन भी गई तो यह 6-8 महीनों से ज्यादा नहीं चलेगी.''
गडकरी के बयान के अलावा बीजेपी की टॉप लीडरशिप इस मामले पर लगभग चुप्पी साधे दिख रही थी. मगर चुप्पी साधकर बीजेपी ने किस तरह तरह बड़ा राजनीतिक दांव चला है, इसे समझने के लिए महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव होने से लेकर अब तक के घटनाक्रम पर नजर दौड़ानी पड़ेगी.
विधानसभा चुनाव के बाद इस तरह आगे बढ़ा घटनाक्रम
महाराष्ट्र में 21 अक्टूबर को विधानसभा चुनाव की वोटिंग हुई. इस चुनाव का मुकाबला मुख्य तौर पर दो गठबंधनों के बीच था. एक गठबंधन बीजेपी-शिवसेना का था और दूसरा एनसीपी-कांग्रेस का.
24 अक्टूबर को इस चुनाव के नतीजे आए. बीजेपी-शिवसेना गठबंधन को राज्य की 288 सीटों में से 161 सीटें मिलीं. पार्टियों के हिसाब से बात करें तो बीजेपी को 105 और शिवसेना को 56 सीटें मिलीं. वहीं एनसीपी को 54 और कांग्रेस को 44 सीटें मिलीं.
किसी पार्टी को पूर्ण बहुमत नहीं मिला, लेकिन बीजेपी-शिवसेना गठबंधन के पास सरकार बनाने के 145 सीटों का जरूरी आंकड़े से ज्यादा सीटें थीं. ऐसे में इस गठबंधन के लिए सरकार बनाने का रास्ता साफ था. मगर इसी बीच शिवसेना ने दावा करना शुरू कर दिया कि बीजेपी ने शिवसेना से सत्ता साझेदारी के 50-50 फॉर्मूले का वादा किया था. शिवसेना ने इसी दावे के आधार पर मुख्यमंत्री पद भी साझेदारी की मांग कर दी.
हालांकि बीजेपी ने ना सिर्फ शिवसेना के दावे को खारिज कर दिया, बल्कि उसने साफ भी कर दिया कि देवेंद्र फडणवीस ही महाराष्ट्र के अगले मुख्यमंत्री होंगे. इसके बाद महाराष्ट्र की सियासत चौंकाने वाले करवट लेने लगी. एक तरफ बीजेपी और शिवसेना के बीच तल्खियां लगातार बढ़ती चली गईं. दूसरी तरफ सरकार बनाने के लिए शिवसेना चुनाव से पहले के अपने विपक्षी गठबंधन कांग्रेस-एनसीपी के करीब बढ़ने लगी. इस बीच शिवसेना नेता अरविंद सावंत ने भी बीजेपी की अगुवाई वाली केंद्र सरकार में अपने मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया.
हालांकि सरकार बनाने के लिए शिवसेना-कांग्रेस-एनसीपी मुद्दों को सुलझाने में लगी ही हुई थीं, इसी बीच महाराष्ट्र में राष्ट्रपति शासन लागू कर दिया गया.
इसके बाद शिवसेना खुलकर बीजेपी पर हमला बोलने लगी. पार्टी के मुख्यपत्र सामना में लगभग हर रोज बीजेपी के खिलाफ संपादकीय छपने लगा. शिवसेना नेता संजय राउत ने 21 नवंबर को ट्वीट कर कहा, ''कभी-कभी कुछ रिश्तों से बाहर आ जाना ही अच्छा होता है, अहंकार के लिए नहीं...स्वाभिमान के लिए.''
शिवसेना और कांग्रेस के साथ मिलकर सरकार बनाने की दिशा में आगे बढ़ चुकी एनसीपी ने 22 नवंबर को बीजेपी की चुटकी भी ली. दरअसल एनसीपी के मुख्य प्रवक्ता नवाब मलिक ने ट्वीट कर कहा, ‘आखिर भारतीय राजनीति के तथाकथित चाणक्य को पवार साहब ने मात दे ही दी, महाराष्ट्र को दिल्ली का तख्त नहीं झुका पाया, जय महाराष्ट्र.’’
माना गया कि मलिक का संकेत केंद्रीय गृह मंत्री और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह की ओर था जिनके बारे में माना जाता है कि कई चुनावों में बीजेपी की जीत और सरकार गठन में उनकी अहम भूमिका रही है.
इस बीच सियासी गलियारों में इस बात को लेकर चर्चा तेज थी कि महाराष्ट्र में बीजेपी इतनी आसानी से अपने हाथ से सत्ता को कैसे जाने दे रही है.
मगर कई राजनीतिक विश्लेषक कह रहे थे कि 'बड़ी पार्टी' बीजेपी 'छोटी पार्टी' शिवसेना की मांग के आगे इसलिए झुकना नहीं चाहती क्योंकि अगर वो महाराष्ट्र में झुकी तो बाकी राज्यों में भी उसके सहयोगी दल उसे आंखें दिखाना शुरू कर देंगे. मगर 23 नवंबर की सुबह महाराष्ट्र की राजनीति में जो घटना हुई है, उसका अनुमान शायद ही शायद ही किसी राजनीतिक विश्लेषक ने लगाया होगा.
बता दें कि एनसीपी चीफ शरद पवार ने साफ किया है, ''अजित पवार ने सरकार बनाने के लिए बीजेपी को समर्थन देने का जो फैसला लिया है, वो उनका निजी फैसला है, एनसीपी का फैसला नहीं है. हम इस बात को रिकॉर्ड पर रखना चाहते हैं कि हम उनके फैसले का समर्थन नहीं करते.'' ऐसे में बीजेपी ने जिस तरह से अजित पवार के साथ मिलकर शिवसेना-एनसीपी-कांग्रेस के खेल को बिगाड़ा है, उसके बारे में शायद ही किसी ने सोचा होगा.
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