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बिहार उपचुनाव: तेजस्वी की उम्मीदें टूटीं, लालू की मेगा रैली भी नहीं आई काम

बिहार उपचुनाव में आरजेडी से अलग होकर उपचुनाव लड़ रही कांग्रेस का बुरा हाल हुआ है

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बिहार की दो विधानसभा सीटों पर हुए उपचुनाव (Bihar Bypolls) के नतीजे आ चुके हैं और दोनों ही सीटों पर नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू ने जीत दर्ज कर ली है. पिछले साल हुए विधानसभा चुनाव में भी ये सीटें जेडीयू ने ही जीती थीं, लेकिन उनके दो विधायकों की मौत के बाद ये सीटें खाली हो गई थीं. उपचुनाव में दरभंगा की कुशेश्वरस्थान सीट पर जेडीयू ने बड़ी जीत दर्ज की है.

जेडीयू के पूर्व विधायक दिवंगत शशिभूषण हजारी के बेटे अमन भूषण हजारी ने आरजेडी प्रत्याशी गणेश भारती को 12,695 वोटों के बड़े अंतर से हराया है. वहीं मुंगेर की तारापुर सीट पर भी जेडीयू के राजीव कुमार सिंह ने कड़े मुकाबले में आरजेडी प्रत्याशी अरुण साह को 3,852 वोटों से शिकस्त दे दी है.

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आरजेडी से अलग होकर उपचुनाव लड़ रही कांग्रेस का बुरा हाल हुआ है, दोनों ही सीटों पर कांग्रेस की जमानत जब्त हो गई है. कुशेश्वरस्थान सीट पर कांग्रेस प्रत्याशी अतिरेक कुमार को महज 5,603 वोट मिले हैं. जबकि तारापुर सीट पर कांग्रेस उम्मीदवार राजेश मिश्रा महज 3,590 वोट ही हासिल कर पाए.

कुशेश्वरस्थान विधानसभा सीट

कुशेश्वरस्थान सीट पर शुरू से ही कांग्रेस चुनाव लड़ती रही है, मौजूदा प्रत्याशी अतिरेक कुमार के पिता अशोक राम पिछले चुनाव में महागठबंधन के प्रत्याशी थे, लेकिन उन्हें जेडीयू के शशिभूषण हजारी ने 7,222 वोटों से हरा दिया था. कुशेश्वरस्थान में पिछले साल आरजेडी-कांग्रेस गठबंधन को कुल 46,758 वोट मिले थे. जबकि इस बार आरजेडी ने अकेले लड़ते हुए भी 47,184 वोट हासिल किए. साथ ही कांग्रेस को भी 5,603 वोट मिले, लेकिन इन सबके बावजूद आरजेडी के हार का अंतर 12 हजार से ज्यादा का रहा.

स्थानीय जानकारों का मानना है कि कोरोना में अपने पिता शशिभूषण हजारी और मां को खोने के बाद चुनाव लड़ रहे अमन भूषण हजारी को सांत्वना के तौर पर भारी संख्या में लोगों ने वोट दिया है. इसके अलावा ये भी बताया जा रहा है कि कुशेश्वरस्थान में मांझी समुदाय ने इस बार एकमुश्त एनडीए को वोट दिया जो चुनावी नतीजे में अहम साबित हुआ.

तारापुर सीट

मुंगेर की तारापुर सीट पिछले 10 साल से जेडीयू के पास है, उससे पहले यहां आरजेडी, कांग्रेस, सीपीआई और दूसरे दलों के विधायक भी रहे हैं. पिछले चुनाव में आरजेडी के पूर्व सांसद जय प्रकाश यादव के बेटी दिव्या प्रकाश को आरजेडी की तरफ से महागठबंधन का उम्मीदवार बनाया गया था. लेकिन वो 7,225 वोटों से चुनाव हार गई थीं. आरजेडी-कांग्रेस गठबंधन को पिछली बार 57,243 वोट मिले थे जबकि एनडीए को 64,468 वोट हासिल हुए थे. इस बार आरजेडी ने यहां से नए कैंडिडेट अरुण साह को उतारा जो बनिया समुदाय से आते हैं. अरुण साह को कुल 75,238 वोट पड़े लेकिन उन्हें जेडीयू उम्मीदवार राजीव कुमार सिंह (79,090 वोट) के हाथों हार का सामना करना पड़ा. राजीव कुशवाहा समाज से आते हैं और तारापुर में कुशवाहा समुदाय की आबादी काफी ज्यादा है.

जानकर बताते हैं कि तेजस्वी ने यादव की बजाय बनिया को टिकट देकर बड़ा दांव चला और इसका उन्हें फायदा भी मिला लेकिन कास्ट कॉम्बिनेशन के खेल में कहीं न कहीं वो नीतीश कुमार के हाथों पिछड़ गए.
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नहीं चल पाया लालू का जादू?

इस उपचुनाव में सबसे ज्यादा निगाहें आरजेडी अध्यक्ष और बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू यादव पर थीं, जो साढ़े तीन साल बाद पटना लौटे थे और करीब 6 साल बाद कोई चुनावी रैली कर रहे थे. 27 अक्टूबर को लालू ने तारापुर और कुशेश्वरस्थान में चुनावी सभाएं की थीं. सिर्फ आरजेडी ही नहीं बल्कि विरोधियों को भी ये आशंका थी कि लालू के प्रचार करने से पार्टी को फायदा मिलेगा लेकिन ऐसा नहीं हुआ. पटना वापस आते ही लालू के 'विसर्जन करने' वाले बयान के जवाब में नीतीश कुमार ने 'गोली मरवा देने' वाला जवाब देकर जनता के बीच कथित 'जंगलराज' की यादों को ताजा करने की कोशिश की और नतीजे देखकर ये लगता है कि नीतीश काफी हद तक इसमें सफल भी रहे.

जेल में होने की वजह से लालू यादव विधानसभा चुनाव में प्रचार नहीं कर पाए थे. तेजस्वी ने लालू का नाम और चेहरा इस्तेमाल किए बिना बिहार की सबसे बड़ी पार्टी बनकर ये साबित भी किया कि बिना लालू के आरजेडी बेहतर परफॉर्म कर सकती है.

न सिर्फ पिछले चुनाव में बल्कि हमेशा तेजस्वी को सबसे ज्यादा लालू और उनके शासनकाल को याद दिलाकर ही घेरा जाता है. लेकिन तेजस्वी को लालू के जनता के साथ जुड़ाव पर भरोसा था, उन्होंने साफ किया कि लोग अपने नेता को सुनने के लिए बेताब हैं. जिसके चलते उन्हें मैदान में उतारा गया. हालांकि नतीजे वो नहीं आए, तेजस्वी जिनकी उम्मीद कर रहे थे.
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नीतीश कुमार के लिए बड़ी राहत

बिहार में पिछले साल ही विधानसभा चुनाव हुए थे, बीजेपी के साथ गठबंधन होने की वजह से नीतीश कुमार मुख्यमंत्री जरूर बने लेकिन उनकी पार्टी जेडीयू 43 विधायकों के साथ तीसरे नंबर की पार्टी बन गई. आरजेडी दोबारा से सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी लेकिन उनके गठबंधन को पर्याप्त सीटें न मिल पाने की वजह से उन्हें विपक्ष में ही बैठना पड़ा. विपक्ष ने एनडीए पर धोखाधड़ी और जालसाजी से सरकार बनाने का आरोप लगाया लेकिन एनडीए इसे विकास की जीत बताता रहा. एक साल बाद हुए इन उपचुनावों में नीतीश कुमार की साख भी दांव पर थी. अगर कोई ऊंच-नीच होती तो न सिर्फ वो विरोधियों के निशाने पर आते बल्कि गठबंधन के सहयोगी भी उनपर दबाव बढ़ा देते.

यही वजह है कि इन उपचुनावों के लिए प्रचार की शुरुआत सबसे पहले खुद नीतीश कुमार ने की थी. उन्होंने कुशेश्वरस्थान और तारापुर का दौरा तब किया जब चुनाव की घोषणा भी नहीं हुई थी. खुद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से लेकर एनडीए के तमाम नेताओं ने कुशेश्वरस्थान और तारापुर में कैम्प किया, दर्जनों सभाएं कीं. विधानसभा चुनाव की तरह ही उपचुनाव में भी नीतीश के कार्यक्रमों में युवाओं का विरोध देखने को मिला, विपक्ष ने मुख्यमंत्री को जमकर घेरा लेकिन अब नतीजों के बाद नीतीश कुमार ने राहत की सांस ली होगी.

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