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बिहार चुनाव: नित्यानंद राय का उदय और BJP का प्लान ‘B’

बिहार चुनाव में सिर्फ तेजस्वी और चिराग पासवान का ही नहीं बीजेपी नेता नित्यानंद राय का प्रभाव भी देखा गया

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साल 2020 का ये विधानसभा चुनाव बिहार के लिए किसी लैंडमार्क की तरह माना जाएगा. एक तरफ जहां राज्य में दो चुनावी महारथियों के बगैर चुनाव हो रहा है, पहले एलजेपी के फाउंडर रामविलास पासवान, जिनका हाल ही में निधन हो गया और दूसरे लालू प्रसाद यादव, जो जेल में सजा काट रहे हैं. वहीं दूसरी तरफ एक बड़े महारथी नीतीश कुमार हैं, जो अपने राजनीतिक भविष्य के लिए लड़ाई लड़ रहे हैं.

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इसके अलावा बिहार में इस बार नई लीडरशिप को उठता हुआ भी देखा जा सकता है, तेजस्वी यादव और एलजेपी नेता चिराग पासवान बिहार में दो सबसे चर्चित नाम हैं. इनके अलावा एक और ऐसा बड़ा नाम है, जो युवा तो नहीं है लेकिन आने वाले सालों में काफी जरूरी भूमिका अदा कर सकता है. वो नाम है भारतीय जनता पार्टी के नेता और केंद्रीय मंत्री नित्यानंद राय का.

54 साल के नित्यानंद राय, जिन्हें कई लोग बीजेपी का सीएम उम्मीदवार भी बता रहे हैं, वो फिलहाल केंद्र में गृह राज्य मंत्री के तौर पर काम कर रहे हैं. इसके अलावा राय 2016 से लेकर 2019 तक बिहार बीजेपी के अध्यक्ष पद पर भी रह चुके हैं. साथ ही नित्यानंद राय बिहार चुनाव के लिए पार्टी के 70 सदस्यों वाले पैनल को हेड कर रहे हैं.

विवादित बयान

अब बिहार चुनाव के दौरान नित्यानंद राय ने कुछ ऐसे बयान भी दिए जो विवादों में रहे.

  • वैशाली में एक चुनावी जनसभा के दौरान उन्होंने अपने भाषण में कहा कि अगर बिहार में आरजेडी सत्ता में आती है तो कश्मीर का आतंकवाद बिहार में पनाह लेना शुरू कर देगा.
  • इसके बाद बेतिया में उन्होंने कहा, पीएम मोदी ने कहा था कि वो राम मंदिर बनाएंगे, उन्होंने अपना वादा पूरा किया, उन्होंने कहा कि वो आर्टिकल 370 को कश्मीर से हटाएंगे उन्होंने अपना ये वादा भी पूरा किया.

लेकिन ये सभी बयान ऐसे ही नहीं दिए गए हैं. बीजेपी में ज्यादातर लोग इस बात से नाराज हैं कि पूरा चुनाव नीतीश कुमार पर केंद्रित है और जो एंटी इनकंबेंसी सेंटिमेंट्स हैं वो कहीं न कहीं उनकी पार्टी को भी नुकसान पहुंचा रहे हैं. इसीलिए अब नित्यानंद राय ने राष्ट्रीय सुरक्षा और हिंदुत्व के मुद्दे की बात की. साथ ही पीएम मोदी के नाम को सामने रखकर लोगों से वोट की अपील की.

लेकिन ऐसा नहीं है कि नित्यानंद राय ने पहली बार ऐसा बयान दिया हो. साल 2017 में उन्होंने अपने एक बयान में कहा था कि, “अगर कोई भी पीएम मोदी पर उंगली उठाने की कोशिश करेगा, तो हम उनकी उंगलियां तोड़ देंगे और हाथ काट देंगे.”
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नित्यानंद राय कौन हैं?

शुरुआती दिन -

  • नित्यानंद साल 1966 में हाजीपुर में पैदा हुए, इसके बाद अपने बचपन के दिनों से ही वो संघ परिवार से जुड़ गए.
  • हाजीपुर का राजनीति से नाता काफी दिलचस्प रहा है, क्योंकि ये लोकसभा चुनाव के लिए एलजेपी नेता रामविलास पासवान का गढ़ बन गया था. और इसी तरह राघोपुर लालू प्रसाद यादव और राबड़ी देवी का एक ऐसा गढ़ था, जो मानो उनकी जेब में हो. इस चुनाव में तेजस्वी यादव इसी सीट से चुनाव लड़ रहे हैं.
  • राय का राजनीतिक करियर सामाजिक न्याय के लिए लड़ने वाले नेताओं से काफी अलग रहा है. 1981 में वो अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (ABVP) में शामिल हुए. इस दौरान बीजेपी के सीनियर नेता कैलाशपति मिश्रा उनके राजनीतिक गुरु रहे. इसके बाद राय ने पहली बार साल 2000 में हाजीपुर विधानसभा सीट से चुनाव जीता और इसके बाद 2014 तक इसी सीट पर रहे. इसके बाद उन्होंने लोकसभा चुनाव के दौरान उजियारपुर सीट से चुनाव लड़ा और विधायक पद से इस्तीफा दे दिया.

मोदी और शाह का समर्थन

  • नित्यानंद राय पर पीएम मोदी और अमित शाह ने भरोसा जताया और उन्हें विधानसभा चुनाव में हार के ठीक एक साल बाद बिहार की कमान सौंपी गई. राय की मेहनत और पार्टी के लिए उनकी वफादारी को देखकर ये फैसला लिया गया.
  • साल 2019 लोकसभा चुनाव के प्रचार के दौरान अमित शाह को कहते सुना गया कि राय अगली एनडीए सरकार में अहम भूमिका में होंगे. इसके बाद हुआ भी वही, अमित शाह ने गृहमंत्री बनते ही राय को गृह राज्यमंत्री बना दिया.
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नित्यानंद राय के बढ़ते कद के पीछे वजह?

अब जैसा की बिहार में चर्चा है कि नित्यानंद राय बिहार में बीजेपी के अगले सीएम उम्मीदवार हो सकते हैं. तो इसके पीछे के कारण हम आपको बताते हैं.

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पहला कारण जाति है.

  • अगर जाति के समीकरण देखें तो बिहार में बीजेपी का वोट शेयर अपर कास्ट वोटर ज्यादा हैं, लेकिन डेमोग्राफिक कारणों के चलते बीजेपी के लिए ये आसान नहीं है कि वो राज्य में किसी अपर कास्ट उम्मीदवार को सीएम के तौर पर पेश करे. उत्तर प्रदेश में जहां 20 से लेकर 25 फीसदी जनसंख्या अपर कास्ट है, वहीं बिहार में ये सिर्फ 15 फीसदी है. बिहार ने पिछले 30 सालों में कोई भी अपर कास्ट नहीं देखा है.
  • इसीलिए अब बीजेपी राज्य में ओबीसी चेहरे को उतार सकती है. नित्यानंद राय यादव हैं, जिसे बिहार में सबसे बड़ी जाति माना जाता है, जो 14 फीसदी है.
  • यादव बिहार में आरजेडी का पारंपरिक वोट बैंक है, लेकिन बीजेपी कुछ हद तक इसमें सेंध लगाने में कामयाब रही है. साथ ही बीजेपी ने कुर्मी, कुशवाहा, ईबीसी पासी और महा दलितों के बीच जेडीयू और एलजेपी के साथ अपने गठबंधन से जगह बनाई है. तो बीजेपी नित्यानंद को सीएम के तौर पर पेश कर यादव वोटर्स को लुभा सकती है.
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नीतीश कुमार और नित्यानंद राय

  • लेकिन जाति सिर्फ एक कारण है, दूसरा सबसे बड़ा कारण ये है कि बीजेपी नेतृत्व और यहां तक कि आरएसएस को भी ये लगता है कि बिहार में मौजूद बीजेपी के कुछ नेताओं ने नीतीश कुमार के कार्यकाल में ही अपनी पहचान बनाई है.
  • साथ ही राय ने नीतीश कुमार की कभी खुलकर आलोचना नहीं की है, जैसा गिरिराज सिंह करते आए हैं. लेकिन उन्हें एक ऐसे नेता के तौर पर देखा जाता है, जो नीतीश कुमार के सहारे कई सालों से चलते आए हैं.
  • इस चुनाव में सबसे ज्यादा जरूरी ये है कि नीतीश कुमार के खिलाफ काफी ज्यादा जन भावनाएं हैं. यहां तक कि बीजेपी के समर्थकों का एक बड़ा हिस्सा भी नीतीश कुमार से निराश है.
  • ऐसे में अगर एनडीए हार जाता है तो ऐसे नेता जो नीतीश कुमार के करीबी माने जाते हैं- खास तौर से डिप्टी सीएम सुशील कुमार मोदी उन्हें जेडीयू पर अति-विश्वास दिखाने के कारण कई तरह के हमलों का सामना करना पड़ सकता है.
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राय के लिए चुनौतियां

हालांकि नित्यानंद राय के लिए बिहार में चुनौतियां भी कम नहीं हैं.

  • हाजीपुर में वोटर्स के बीच काफी ज्यादा नाराजगी है और राय को अपनी रैलियों के दौरान कई बार सार्वजनिक तौर पर वोट करने की अपील करनी पड़ी.
  • साथ ही किसी भी ओपिनियन पोल में नित्यानंद राय का नाम कभी भी खुलकर सामने नहीं आया, जबकि सुशील मोदी और गिरिराज सिंह का नाम बड़े नेताओं के तौर पर लिया जाता है.
  • साथ ही अगर एनडीए बिहार में हार जाता है तो बिहार बीजेपी में बड़ा बदलाव होने की भी संभावना है. अगर ऐसा होता है तो ये बदलाव नित्यानंद राय के लिए काफी अलग रिजल्ट ला सकता है.
  • यहां एक ऐतिहासिक मिसाल भी है, क्योंकि बिहार में जिन नेताओं को बीजेपी ने प्रमुखता से पेश किया था, उनके लिए ये आसान नहीं था. सीपी ठाकुर और शत्रुघ्न सिन्हा 1990 और साल 2000 के शुरुआत तक बीजेपी के बड़े नेताओं में शामिल थे. लेकिन दोनों को दरकिनार किया गया. साथ ही राजेंद्र सिंह, जिन्हें 2015 के बिहार चुनावों में आरएसएस का पसंदीदा चेहरा बताया गया था, अब बीजेपी में नहीं हैं और एलजेपी के टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं.
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कुछ लोगों का ये भी कहना है कि राय के बीजेपी में बढ़े कद के बावजूद सीएम पद के लिए उनका बैड लक भी रहा है, अगर बीजेपी ने महागठबंधन सरकार गिराने में नीतीश कुमार का साथ नहीं दिया होता तो आज उसे 15 साल की एंटी इनकंबेंसी का सामना नहीं करना पड़ता. उनकी जगह आज आरजेडी होती जो कुमार के साथ गठबंधन का साथी होने का खामियाजा भुगतता. कई बीजेपी समर्थकों का कहना है कि वे नित्यानंद राय को सीएम और चिराग पासवान को डिप्टी के रूप में देखना पसंद करेंगे.

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