ADVERTISEMENTREMOVE AD

मारे जा रहे बिहारी मजदूर, क्यों कश्मीर जाने को मजबूर?

जम्मू-कश्मीर में 12 दिनों के भीतर बिहार के 4 कामगारों की आतंकियों ने हत्या कर दी है

Updated
छोटा
मध्यम
बड़ा
ADVERTISEMENTREMOVE AD

चाहे मुम्बई जैसे महानगरों में 'बाहरी' होने की वजह से शिवसैनिकों की पिटाई झेलनी हो या फिर lockdown में सैकड़ों किलोमीटर दूर पैदल ही घर लौटने की बेबसी या फिर जम्मू-कश्मीर में आतंकियों की गोली का निशाना ...इन तकलीफों का बड़ा हिस्सा बिहारी कामगारों के हिस्से में ही आता है. आप ऐसा मत सोचिए कि हम देश की अखंडता में 'बिहारी और बाहरी' जैसी क्षेत्रीय मानसिकता को बढ़ावा दे रहे हैं या फिर बिहार जैसे पिछड़े राज्य की 'मजदूरी की क्षमता' को बढ़ा-चढ़ाकर दिखाने की कोशिश कर रहे हैं.

0

बिहारी कामगारों को क्यों निशाना बना रहे आतंकी?

जम्मू-कश्मीर में 12 दिनों के भीतर बिहार के 4 कामगारों की आतंकियों ने हत्या कर दी, एक बिहारी मजदूर घायल है. इनके अलावा यूपी के भी 1 कामगार की जान ली गई है. घाटी में आतंकवादी गैर स्थानीय लोगों को निशाना बना रहे हैं. लेकिन क्या आपके मन में ये सवाल नहीं आया कि अगर आतंकी गैर स्थानीय लोगों को ही निशाना बना रहे हैं तो इसमें ज्यादातर संख्या बिहारी कामगारों की ही क्यों है? ऐसा भी कोई कारण नजर नहीं आता कि आतंकवादियों को बिहार के कामगारों से कोई खास दुश्मनी हो. फिर क्या वजह है कि देश में जब भी गैर स्थानीयों की बात होती है तो बिना बिहार का जिक्र हुए, वो पूरी नहीं होती? इसका सीधा सा जवाब है कि देश में सबसे ज्यादा गैर स्थानीय कामगार बिहार जैसे राज्यों से ही आते हैं.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

टाटा इंस्टिट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज की जर्नल ऑफ माइग्रेशन अफेयर्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक साल 1951 से 1961 तक बिहार के करीब 4 फीसदी लोगों ने दूसरे राज्यों में पलायन किया. जबकि 2001 से 2011 के बीच 93 लाख लोग बिहार छोड़कर दूसरे राज्यों में गए जो बिहार की आबादी का करीब 9 फीसदी था.

2011 की जनगणना के आंकड़े बताते हैं कि बिहार से रोजगार और जीवनयापन के लिए पलायन करने का प्रचलन पूरे देश में सबसे ज्यादा है. जहां देश में पलायन करने वाले पुरुषों में औसतन 24 फीसदी लोग नौकरी या रोजगार की तलाश में पलायन करते हैं वहीं बिहार से पलायन करने वाले 55 फीसदी लोग रोजगार के लिए पलायन करते हैं.

जम्मू-कश्मीर में बिहारी कामगारों की हत्या के बाद बिहार में पलायन और बेरोजगारी का मुद्दा एक बार फिर गर्म हो गया है. नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने नीतीश कुमार पर हमला बोलते हुए लिखा, “बिहार में नौकरी-रोजगार देंगे नहीं, बाहर जाओगे तो मार दिए जाओगे”. तेजस्वी ने इन हत्यायों के लिए नीतीश कुमार को भी दोषी बताया और कहा कि अगर रोजगार दिया गया होता तो करोड़ों लोगों को पलायन नहीं करना पड़ता.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

रोजगार की कमी के चलते पलायन, नीतीश की दलील

दरअसल बिहार से पलायन की एक बड़ी वजह ये है कि यहां उद्योग नहीं के बराबर है. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पिछले साल कह चुके हैं कि उन्होंने पूरी कोशिश कर ली लेकिन बिहार के किनारे समुद्र नहीं है और 'land lock state' होने की वजह से यहां बड़े उद्योग नहीं लग सकते. नीतीश कुमार 'land lock state' होने की वजह से बड़े उद्योग न लगा पाने की दलील सालों से देते रहे हैं, हालांकि पहले वो 'विशेष राज्य' के दर्जे की मांग के साथ ये आश्वासन देते थे कि इससे उद्योग लगाने में मदद मिलेगी. लेकिन बीजेपी के साथ गठबंधन की मजबूरियों में नीतीश अब बिहार के 'विशेष राज्य' राज्य के दर्जे की मांग भी ठंडे बस्ते में डाल चुके हैं.

हाल ही में उनके मंत्री विजेंदर यादव ने साफ कहा कि विशेष राज्य के दर्जे की मांग करते-करते अब अब वो लोग थक चुके हैं इसलिए अब बिहार सरकार इसकी मांग नहीं करेगी. इस बयान पर हुई चौतरफा किरकिरी के बाद नीतीश कुमार सामने आए और कहा कि हमने ये मांग कभी नहीं छोड़ी लेकिन सवाल ये है कि आखिर ये मांग कब तक की जाती रहेगी और कब तक land lock state का हवाला देकर बिहार के कामगारों को दूसरे राज्यों में जाकर काम करने को मजबूर किया जाता रहेगा?

ADVERTISEMENTREMOVE AD
बिहार इकलौता land lock state नहीं है. उत्तर प्रदेश, राजस्थान और मध्य प्रदेश जैसे बड़े राज्य भी समुद्र किनारे नहीं हैं लेकिन यहां बिहार के मुकाबले ज्यादा फैक्ट्रियां हैं. यहां तक कि दिल्ली, पंजाब, उत्तराखंड, झारखंड और असम जैसे छोटे राज्य भी बिहार से बेहतर स्थिति में हैं. जानकारी के मुताबिक साल 2017-18 में बिहार में 2,881 फैक्ट्रियां चल रही थीं, जबकि 2016-17 में 2,908 फैक्ट्रियां चालू हालत में थीं। सरकारी आंकड़े बता रहे हैं कि बिहार में फैक्ट्रियों की संख्या साल दर साल कम होती जा रही हैं. हरियाणा जैसे राज्य में भी 7 हजार से ज्यादा फैक्ट्रियां हैं. जबकि हरियाणा क्षेत्रफल और आबादी, दोनों ही मायनों में बिहार से छोटा है.

बिहार की औद्योगिक नीतियों में खामी

जाहिर है कि बिहार में उद्योग न होने के पीछे मुख्यमंत्री की बताई गई वजह बेबुनियाद है. जानकार बताते हैं कि बिहार की औद्योगिक नीतियों की वजह से बड़ी कंपनियां राज्य में निवेश करने से कतराती हैं. चाहे जमीन उपलब्ध कराने का मसला हो या फिर सुरक्षा देने की बात, सरकार उद्यमियों को भरोसा नहीं दिला पाती. बिहार के सालाना वित्तीय बजट में भी उद्योगों के लिए काफी कम हिस्सा होता है. उदाहरण के तौर पर, वित्तीय वर्ष 2021-22 का कुल बजट 2 लाख 18 हजार करोड़ रुपए से ज्यादा का है, लेकिन इसमें से उद्योग विभाग का बजट सिर्फ 1258 करोड़ रुपए का है.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

मौजूदा सरकार पिछली सरकारों पर उद्योग-धंधे और रोजगार पैदा न करने के आरोप लगाते रही है लेकिन जानकर बताते हैं कि नीतीश कुमार के आने के बाद भी हालात बहुत नहीं सुधरे हैं. मौजूदा सरकार बिहार में उद्योग लगाने को लेकर कितनी तत्पर है, उसका अंदाजा लगाना है तो पहले आप पूर्व केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद का 7 साल पुराना ट्वीट देखिए.

ADVERTISEMENTREMOVE AD
बिहार में सॉफ्टवेयर टेक्नोलॉजी पार्क की घोषणा के 6 साल बाद नवंबर, 2020 में काम शुरू हुआ, वो भी स्थानीय सामाजिक कार्यकर्ताओं की लगातार मांग के बाद. ये कब तक बनेगा और वहां कब तक लोगों को रोजगार मिल पाएगा, ये किसी को नहीं पता.
जम्मू-कश्मीर में 12 दिनों के भीतर बिहार के 4 कामगारों की आतंकियों ने हत्या कर दी है
ADVERTISEMENTREMOVE AD

कुछ यही हालत दरभंगा में प्रस्तावित एम्स की भी है. 2015 में तत्कालीन वित्त मंत्री दिवंगत अरुण जेटली ने बिहार में दूसरा एम्स बनाने की घोषणा की थी. लेकिन 6 साल बीत जाने के बाद भी जमीन पर काम शुरू तक नहीं हो पाया है. एम्स से सिर्फ बेहतर उपचार ही नहीं मिलेगा बल्कि हजारों लोगों को प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष तौर पर रोजगार भी मिलेगा जो फिलहाल सरकारी सुस्ती की वजह से अधर में लटका हुआ है.

चुनाव में बड़ा मुद्दा बना था रोजगार

पलायन सालों से बिहार की सबसे बड़ी समस्या रही है. एक बड़ी आबादी रोजगार और बेहतर कामकाज की तलाश में दूसरे राज्यों में जाकर मजदूरी करती है. बेरोजगारी बिहार के लिए कितना बड़ा मुद्दा है, इसे इस बात से भी समझ सकते हैं कि पिछले साल हुए विधानसभा चुनाव में राजनीतिक दलों ने सबसे ज्यादा जोर बेरोजगारों को साधने में ही लगाया था. एक तरफ आरजेडी ने 10 लाख सरकारी नौकरी देने का वादा किया था तो बीजेपी ने 19 लाख रोजगार सृजित करने का भरोसा दिलाया था. पूरे चुनाव में रोजगार का ये मुद्दा ही हावी रहा. लेकिन बिहार के पूर्व उपमुख्यमंत्री और राज्य सभा सांसद सुशील मोदी का मानना है कि विपक्ष बेवजह पलायन के मुद्दे को तूल दे रहा है.

"बिहार के लिए पलायन कोई मुद्दा नहीं है. बिहार के लोग 150 सालों से बाहर जाते रहे हैं. अगर कोई ज्यादा कमाने के लिए कहीं जाना चाहता है तो उसे नहीं रोका जा सकता. केरल और गुजरात जैसे विकसित राज्यों के लोग भी कमाने के लिए विदेश जाते हैं. पलायन को कोई रोक नहीं सकता."
- सुशील मोदी (बीजेपी सांसद)
ADVERTISEMENTREMOVE AD

साल 2020 में पहली बार लॉक डाउन लगने के बाद जब लाखों प्रवासी मजदूर वपास लौटे थे. तब नीतीश कुमार ने सभी मजदूरों से अपील की थी कि वो बिहार में ही रहकर काम करें. मुख्यमंत्री ने वादा किया था कि मजदूरों का सर्वे और स्किल मैपिंग कराकर उन्हें बिहार में ही रोजगार दिया जाएगा. ये सच है कि पश्चिमी चंपारण जैसी कुछ जगहों पर गिने-चुने मजदूरों को स्वरोजगार का मिला लेकिन उससे भी बड़ी सच्चाई ये है कि अनलॉक होते ही अधिकतर मजदूर दोबारा दूसरे राज्यों में चले गए. और अब जम्मू-कश्मीर में बिहारी मजदूरों की हत्या के बाद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कह दिया है कि अगर कोई कमाने के लिए बाहर जाना चाहता है तो उसे रोका नहीं जा सकता. लेकिन असल सवाल ये है कि बिहार सरकार के रोजगार देने के भरोसे के बाद भी मजदूर बाहर क्यों जाना चाहता है?

(हैलो दोस्तों! हमारे Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां)

Published: 
सत्ता से सच बोलने के लिए आप जैसे सहयोगियों की जरूरत होती है
मेंबर बनें
अधिक पढ़ें
×
×