बिहार की राजनीति में सबकुछ ठीक नहीं चल रहा है. दो बड़े गठबंधन हैं दोनों में ही रार की खबरें सुर्खियां बटोर रही हैं. एनडीए में रहकर भी नीतीश बीजेपी पर आंखें तरेर रहे हैं तो आरजेडी-कांग्रेस वाले महागठबंधन में हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा (हम) के जीतनराम मांझी समेत कई छोटे-बड़े नेता नाराजगी जाहिर कर चुके हैं. अब राबड़ी देवी ने कह दिया है कि उन्हें नीतीश कुमार के महागठबंधन में शामिल होने से कोई दिक्कत नहीं है.
जरा पिछले कुछ दिनों की घटनाओं पर नजर डालिए:
- 30 मई- पीएम मोदी के शपथ ग्रहण समारोह से ठीक पहले जेडीयू का सरकार में शामिल होने से इनकार.
- 2 जून- बिहार सरकार में मंत्रिमंडल का विस्तार लेकिन बीजेपी बाहर.
- 29 मई- आरजेडी ने महागठबंधन की बैठक बुलाई, कांग्रेस का कोई नेता शामिल नहीं
- 30 मई- जीतनराम मांझी का बयान- 'तेजस्वी प्रसाद यादव आरजेडी के नेता हो सकते हैं लेकिन महागठबंधन के नहीं.'
- 2-3 जून- धुरविरोधी जीतनराम मांझी और नीतीश कुमार का एक दूसरे की इफ्तार पार्टी में पहुंचना.
- 3 जून- बीजेपी के सुशील कुमार मोदी की इफ्तार पार्टी में जेडीयू का कोई भी नेता नहीं पहुंचा. इससे पहले जेडीयू की इफ्तार में बीजेपी का कोई नेता नहीं आया.
- 4 जून- आरजेडी नेता राबड़ी देवी का बयान- 'नीतीश पहल करें तो दोबारा साथ आने में एतराज नहीं.
लब्बोलुआब ये कि एनडीए और महागठबंधन दोनों ही धड़ों में हलचल है. अंदरूनी नाराजगी है. लोकसभा में बीजेपी को मिली 303 सीटे के बाद नीतीश समझ चुके हैं कि एनडीए में अब सहयोगियों की हैसियत 'बिन बुलाए मेहमानों' सी है. लिहाजा विधानसभा चुनाव के बचे एक साल में वो ये नाप लेना चाहते हैं कि बीजेपी के साथ कितनी दूर तक चलना है. लोकसभा चुनावों में बिहार की टॉप 5 पार्टियों के वोट शेयर पर नजर डालिए-
- बीजेपी- 23.58%
- जेडीयू- 21.81%
- आरजेडी- 15.36%
- एलजेपी- 7.86%
- कांग्रेस- 7.70%
बीजेपी, जेडीयू और एलजेपी एनडीए का हिस्सा हैं. आरजेडी और कांग्रेस महागठबंधन का, जिसमें कई छोटे दल शामिल हैं. नतीजों ने दोस्ती-दुश्मनी के समीकरण बदल दिए हैं. जातीय संतुलन के दम पर बीजेपी को हराने वाली विपक्षी रणनीती फेल दिख रही है. तो बीजेपी के सहयोगी अपना कद नाप रहे हैं. ऐसे में एक-दूसरे को आंखे दिखाने या पुचकारने की इन खबरों से दोस्तों दुश्मनों की पहचान नहीं होगी. ये अगले साल होने वाले चुनावोंं से पहले की रस्साकशी है.
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