लोकसभा चुनाव की तैयारियों में जुटी बीजेपी अपनी रणनीति मजबूत करने में जुटी है. 195 सीटों पर प्रत्याशियों की पहली सूची जारी करने के बाद पार्टी अब जल्द ही दूसरी लिस्ट का ऐलान करने वाली है. जानकारी के अनुसार, गठबंधन में शामिल दलों की वजह से राज्यों की कई सीटों पर पेंच फंसा है जिसमें बिहार भी शामिल है. यहां एनडीए में सीट शेयरिंग को लेकर सस्पेंस कायम है. हालांकि, एनडीए में शामिल दल "ऑल इज वेल" की बात कह रहे हैं, पर क्या वाकई में ऐसा है? आइए जानते हैं.
बिहार में सीट शेयरिंग में फंसा पेंच?
बिहार में लोकसभा की कुल 40 सीटें हैं जिसमें 2019 में एनडीए को 39 पर जीत मिली थी, एक सीट किशनगंज की कांग्रेस जीतने में सफल हुई थी. गठबंधन के तहत बीजेपी और जेडीयू 17-17 और 6 सीट पर लोक जनशक्ति पार्टी (अविभाजित) चुनाव लड़ी थी. एलजेपी को राज्यसभा की भी एक सीट दी गई थी. हालांकि, जेडीयू को छोड़कर बाकी दोनों दलों का रिजल्ट सौ फीसदी था.
तो क्या इस बार भी सीट शेयरिंग का फॉर्मूला 2019 वाला ही रहेगा या फिर कुछ बदलाव होगा और अगर होगा तो उसके पीछ क्या वजह होगी? दरअसल, 2019 में जीतनराम मांझी, उपेंद्र कुशवाहा एनडीए में नहीं थे. वहीं, एलजेपी में भी टूट नहीं हुई थी. लेकिन इस बार गठबंधन का स्वरूप थोड़ा अलग है.
बिहार एनडीए में इस बार बीजेपी (BJP), जेडीयू (JDU), राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी (RLJP), लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) [LJP{R}], राष्ट्रीय लोक मोर्चा और हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा (HAM) शामिल है. ऐसे में जाहिर है कि सीटों का बंटवारा कठिन काम है और इसी वजह से देरी हो रही है.
पिछले दो-तीन दिन में बिहार बीजेपी के कई नेताओं की अपने सहयोगियों से मुलाकात हुई. इस मुलाकात के बाद मीडिया में ये चर्चा तेजी से हो रही है कि एनडीए में सीट शेयरिंग का मामला फंस गया है. पिछले दिनों पीएम मोदी की रैली में चिराग और उपेंद्र कुशवाहा की गैरमौजूदगी ने भी कई सवाल खड़े कर दिए हैं.
हालांकि, एनडीए के नेता सब 'ऑल इज वेल' बता रहे हैं तो जब सब ठीक है तो फिर बीजेपी नेता क्यों मांझी, चिराग और उपेंद्र से मुलाकात कर रहे हैं.
इस सवाल के जवाब में बिहार बीजेपी के प्रवक्ता प्रेम रंजन पटेल ने क्विंट हिंदी से कहा, "कहीं कोई दिक्कत नहीं है. चुनाव आ गया है तो मुलाकात होती रहेगी. इसमें कोई चिंता की बात नहीं है. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के विदेश से लौटने के बाद सब क्लीयर हो जाएगा."
कौन कितनी सीट मांग रहा?
क्विंट हिंदी से बात करते हुए राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी (RLJP) के राष्ट्रीय प्रवक्ता श्रवण कुमार अग्रवाल ने कहा, "एनडीए में कोई विवाद नहीं है. सबकुछ ठीक है. किसी मौजूदा सांसद का टिकट नहीं कटेगा, हमारे चार सांसद हैं, सभी को टिकट मिलेगा. बीजेपी ने हमें चार सीट देने का आश्वासन दिया है. हाजीपुर से पशुपति पारस ही चुनाव लड़ेंगे."
राष्ट्रीय लोक मोर्चा के प्रधान महासचिव माधव आनंद ने क्विंट हिंदी से बात करते हुए कहा, "उपेंद्र कुशवाहा की लगातार बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व से बात हो रही. कहीं कोई दिक्कत नहीं है, सबकुछ 2 से 3 दिन में क्लीयर हो जाएगा."
हालांकि, उपेंद्र कुशवाहा कितनी सीट मांग रहे हैं, इस सवाल का जवाब माधव आनंद ने नहीं दिया लेकिन सूत्रों के अनुसार, राष्ट्रीय लोक मोर्चा तीन सीट की मांग कर रही है.
वहीं, जीतनराम मांझी के एक करीबी नेता ने नाम गुप्त रखने की शर्त पर बताया, "हम दो सीट चाहते हैं, एक गया और दूसरा मगध प्रमंडल में, हमें उम्मीद है कि हमें दो सीट मिलेगी."
"गया सीट से जीतनराम मांझी का चुनाव लड़ना तय है. मगध प्रमंडल में दो-तीन सीट का सुझाव दिया है, देखते हैं क्या होता है."
सूत्रों की मानें तो चिराग पासवान भी 5 से 6 की मांग कर रहे हैं. वहीं, जेडीयू 16 लोकसभा सीट चाहती है.
क्या होगा सीट शेयरिंग का फॉर्मूला?
एक सूत्र ने क्विंट हिंदी को बताया, "नीतीश कुमार 11 मार्च को स्कॉटलैंड से दिल्ली लौट रहे थे. इसी दिन बीजेपी के केंद्रीय चुनाव समिति की बैठक होगी. बैठक से पहले नीतीश बीजेपी के नेताओं से मिलेंगे और वहां पर सब क्लीयर हो जाएगा. चिराग पासवान भी पटना से दिल्ली पहुंच गए हैं. बीजेपी मुख्यता जेडीयू और चिराग पर भी ध्यान लगाए हैं क्योंकि पार्टी को लगता है कि इन्हीं दोनों के पास मुख्य वोट बिहार में हैं."
"बीजेपी 17 सीटों पर चुनाव लड़ेगी और जेडीयू को 15 से कम सीट नहीं मिलेगी. वहीं, चिराग और पशुपति पारस को मिलाकर 5-6 सीट दी जा सकती है. मांझी को एक गया वाली सीट और उपेंद्र कुशवाहा को एक सीट मिलने दी जाएगी."
क्या इस फॉर्मूले पर बात बन जाएगी? इस पर सूत्र ने कहा, "एक-दो सीट ऊपर नीचे हो सकती है लेकिन कमोबेश सीट शेयरिंग का फॉर्मूला लगभग ऐसा ही रहेगा."
चिराग-पशुपति, मांझी और उपेंद्र कुशवाहा कैसे मानेंगे?
सूत्रों की मानें तो नीतीश कुमार के पटना आने के बाद 17 मार्च से पहले बिहार में मंत्रिमंडल विस्तार होने की संभावना है. ये विस्तार लोकसभा चुनाव के मद्देनजर किया जाएगा. इसमें मांझी के बेटे संतोष सुमन का विभाग बढ़ाया जा सकता है और कैबिनेट में एक राज्यमंत्री का पद भी HAM को देने की बात चल रही है.
वहीं, अगर उपेंद्र कुशवाहा नहीं मानें तो उन्हें दो सीट दी जाएगी और उसमें भी एक सीट पर बीजेपी का कोई नेता उनके सिंबल पर चुनाव लड़ेगा. सूत्रों की मानें तो बीजेपी बहुत अधिक उपेंद्र कुशवाहा पर फोकस नहीं कर रही है. उसको लगता है कि कुशवाहा का प्रभाव अब पहले जैसा नहीं है.
बीजेपी के एक नेता ने कहा, "नीतीश कुमार के एनडीए में आने से हमारा जातीय समीकरण एकदम फिट हो गया है. लव-कुश समीकरण के तहत पार्टी ने कई नेताओं को बड़ी जिम्मेदारी दी है. डिप्टी सीएम सम्राट चौधरी खुद कोइरी हैं. कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न देने के बाद ओबीसी भी हमारे साथ आ गये हैं. ऐसे में जातीय फैक्टर हमारा सही है."
एक अन्य सूत्र ने कहा, "बिहार में पासवान वोट चिराग के पास है, ऐसे में बीजेपी उनको ही तवज्जो देगी. रही बात पारस की तो वो सिर्फ रामविलास के भाई हैं, यही उनकी पहचान है. उनकी अब उम्र भी हो चुकी है. उन्हें मना लिया जाएगा, उन्हें राज्यसभा या कुछ और ऑफर किया जा सकता है. हाजीपुर में भी चिराग को लड़ाने की तैयारी है."
लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) से जुड़े एक सूत्र ने कहा, "चिराग हाजीपुर से ही लड़ेंगे और ये भी संभव है कि वो अन्य किसी सीट पर परिवार के किसी सदस्य को उतारें."
वहीं, VIP प्रमुख मुकेश सहनी को लेकर भी पेंच फंसा है. जानकारी के अनुसार, वो निषाद आरक्षण पर आश्वासन चाहते हैं लेकिन बीजेपी ने उन्हें कुछ देने के मूड में नहीं है. अगर वो ज्यादा कोशिश करेंगे तो उन्हें बीजेपी के टिकट पर लड़ने का ऑफर दिया जा सकता है या फिर उनकी मांग पर विधानसभा चुनाव में विचार किया जाएगा.
जानकारी के अनुसार, बीजेपी अपने सहयोगियों को ये भी ऑफर देगी कि जिसकी जो सीट कम हुई है, उसकी भरपाई विधानसभा चुनाव में की जाएगी या फिर बिहार मंत्रिमंडल विस्तार में उसको कुछ मिल सकता है.
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