बिहार की राजनीति में 'ठंडी में गर्मी का ऐहसास' वाला माहौल चल रहा है. मीडिया, राजनीतिक गलियारे और चौक चौराहे पर आम लोगों में चर्चा चल रही है कि क्या 'बिहार में कुछ बड़ा होने जा रहा है' या 'बिहार में बड़ा उलटफेर होने जा रहा है'. यहां तक कि सीधे तौर पर लिखा जा रहा है कि 'अटकलें हैं कि नीतीश एनडीए में वापसी करेंगे'. 23 जनवरी को एक बार फिर ऐसा घटनाक्रम हुआ कि हफ्तेभर से तैर रही खबरें फिर जोर पकड़ रही हैं. इधर नीतीश कुमार (Nitish Kumar) बिहार (Bihar) के राज्यपाल से मिलने पहुंच गए. उधर बैठक के मायने निकाला जाना शुरू हो गया.
क्या है ताजा मामला?
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार मंगलवार, 23 जनवरी को अचानक राज्यपाल राजेंद्र विश्वनाथ आर्लेकर से मिलने राजभवन पहुंचे. जानकारी के मुताबिक सीएम और राज्यपाल की मुलाकात करीब 50 मिनट तक चली. उनके साथ संसदीय कार्य मंत्री विजय चौधरी भी मौजूद रहे. मुलाकात के बाद जब सीएम राजभवन से निकले तो उन्होंने पत्रकारों से कोई बात नहीं की.
सुभाष चंद्र बोस जयंती पर मीडिया कर्मियों की मौजदूगी भी थी, नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव से बातचीच का मौका भी था लेकिन किसी से बात नहीं हो पाई.
इधर, बिहार की हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा पार्टी के सुप्रीमो जीतनराम मांझी ने सोशल मीडिया एक्स पर एक पोस्ट शेयर कर हलचल और बढ़ा दी. उन्होंने लिखा कि, बंगला में कहते हैं, "खेला होबे", मगही में कहतें हैं, "खेला होकतो", भोजपुरी में कहतें हैं, "खेला होखी" बाकी तो आप खुद ही समझदार हैं..."
सीएम नीतीश कुमार के अचानक राजभवन पहुंचने पर जन सुराज पदयात्रा का नेतृत्व कर रहे प्रशांत किशोर ने कहा:
"ये नीतीश कुमार की राजनीति का तरीका है. जो उनके साथ रहता है, उनको वे हमेशा डराते रहते हैं. अगर हम पर ध्यान नहीं दोगे तो हम उधर भी जा सकते हैं. मैं हर दिन कहता हूं कि मुझे नहीं लगता कि वो लोकसभा से पहले छोड़कर जाएंगे. क्योंकि उन्होंने महागठबंधन बनाया है."
उन्होंने आगे कहा, "ऐसा नहीं है कि नीतीश कुमार कल एक प्रेस कॉन्फ्रेंस करेंगे और कहेंगे कि 'मेरी अंतरात्मा कह रही है कि अब इन लोगों के साथ नहीं रहेंगे. सब लोग एकजुट हुए नहीं, मैंने कहा था कि सब लोग एकजुट हो जाइए नहीं हुआ तो अब क्या करें? अब फिर से बीजेपी में जा रहे हैं.' नीतीश कुमार इस तरह की राजनीति करते रहते हैं."
पीके ने कहा कि, "नीतीश कुमार को ये डर था कि 2024 के लोकसभा के चुनाव के बाद अगर बीजेपी देश में जीत जाएगी तो अपना मुख्यमंत्री बना देगी. इसी डर से इन्होंने सोचा कि बीजेपी हमको हटाए इससे पहले हम खुद महागठबंधन बना लेते हैं. कम से कम 2025 तक कुर्सी बची रहेगी. सहूलियत के हिसाब से इतना बताया जा सकता है कि नीतीश कुमार की अपनी जो सहूलियत होगी जिसमें उन्हें अपना स्वार्थ दिखेगा उस दिशा में वो जाएंगे."
आरजेडी का क्या कहना है?
आरजेडी के राष्ट्रीय प्रवक्ता सांसद मनोज झा ने कहा कि, न्यूज चैनल वाले ही ये खबरें पैदा कर रहे हैं और फिर वही ये खबरें गिरा देते हैं. बीजेपी के लोग कुछ भी बोल देते हैं. सुबह उठकर उन्हें कुछ तो बोलना ही होता है.
इस पूरे मामले में बिहार के वरिष्ठ पत्रकार अरुण पांडे कहते हैं कि, दरअसल नीतीश कुमार कभी आरजेडी तो कभी बीजेपी के साथ पाला बदलने का काम करते हैं. इसलिए उनकी राज्यपाल के साथ मुलाकात को ऐसे देखा जा रहा है. लेकिन इस मामले में बिहार के 9 यूनिवर्सिटीज में कुलपति की नियुक्ति को लेकर उन्होंने राज्यपाल के साथ मुलाकात की है.
उन्होंने आगे कहा कि, "अगर आज के समय में वे बीजेपी के पाले में फिर चले गए तो उनकी मुख्यमंत्री की कुर्सी खतरे में नहीं रहेगी, वे आगे भी मुख्यमंत्री बने रहेंगे जबकि नुकसान तो आरजेडी और कांग्रेस का होगा. अभी इंडिया गठबंधन बनाने में नीतीश कुमार की मुख्य भूमिका रही है, अगर ऐसे समय में वे बीजेपी के साथ जाते हैं, तो इंडिया गठबंधन का समीकरण बिगड़ जाएगा. नीतीश तो फायदे में ही होंगे. हालांकि बीजेपी तो ये भी चाहेगी कि बिहार में नीतीश कुमार का राजनीतिक करियर ही खत्म हो जाए."
कैबिनेट में बदलाव किया, शिक्षा मंत्री बदला
इससे पहले नीतीश कुमार ने 20 जनवरी को अपनी कैबिनेट में तीन मंत्रियों की जिम्मेदारी में बदलाव कर किया था. ध्यान देने वाली बात ये है कि तीनों मंत्री आरजेडी के हैं. ये तीनों नेता चंद्रशेखर, आलोक मेहता और ललित यादव हैं. शिक्षा मंत्रालय संभाल रहे चंद्रशेखर को गन्ना विकास विभाग सौंपा गया. आलोक मेहता को शिक्षा विभाग और ललित यादव को भूमि राजस्व विभाग का अतिरिक्त प्रभार दिया गया.
बता दें कि शिक्षा विभाग के अपर मुख्य सचिव और नीतीश कुमार के करीबी केके पाठक का मंत्री चंद्रशेखर के साथ लंबा विवाद रहा. इस दौरान केके पाठक छुट्टी पर भी थे. अब वे वापस लौट गए हैं और मंत्रालय का जिम्मा आलोक मेहता को दे दिया गया है.
लालू-नीतीश की मुलाकात, बीजेपी भी एक्टिव
19 जनवरी की सुबह-सुबह RJD सुप्रीमो लालू यादव, डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव के साथ मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से मुलाकात करने उनके आवास पहुंचे. इस खबर ने भी राज्य के सियासी पारे को कड़ाके की ठंड में बढ़ा दिया.
नीतीश कुमार की लालू यादव और तेजस्वी यादव से करीब 45 मिनट तक बैठक चली. इस बैठक के बाद RJD नेता सीएम आवास से निकल गए. कुछ देर बाद तेजस्वी मीडिया से बातचीत में तमाम अटकलबाजियों पर विराम लगाते हुए कहा, "आप लोग जो सवाल पूछ रहे हैं, कोई जमीनी हकीकत नहीं है. बार-बार हमको जस्टिफाई करने की जरूरत नहीं है. एक बात समझिए बिहार से बीजेपी का सूपड़ा साफ होना तय है."
इस बीच जीतन राम मांझी का भी ट्वीट आया था, उन्होंने लिखा था, "दिल्ली में रहने के बावजूद बिहार के वर्तमान राजनैतिक हालात पर मेरी नजर है. राज्य के राजनैतिक हालात को ध्यान में रखते हुए मैंने अपने सभी माननीय विधायकों को आगामी 25 जनवरी तक पटना में ही रहने का निर्देश दिया है. जो भी हो राज्यहित में होगा."
इसी दौरान बीजेपी विधान मंडल दल की आपात बैठक नेता प्रतिपक्ष विजय सिन्हा के आवास पर हुई. उन्होंने ट्वीट कर जानकारी दी कि मीटिंग में आगामी विधानसभा सत्र के दौरान विपक्ष की सशक्त भूमिका और आगामी लोकसभा चुनाव में पार्टी और संगठन की रणनीतियों को लेकर चर्चा हुई.
बैठक के बाद मीडिया से बातचीत में विजय सिन्हा ने कहा, "लालू जी और तेजस्वी जी अपने किए कर्मों के कारण परेशान हैं, सत्ता से हटने से डर लग रहा है. चोर दरवाजे से आकर जनादेश का दुरुपयोग करना चाह रहे हैं. भ्रष्टाचार चरम पर है, अपराध बेलगाम हो चुका है. इनके भ्रष्टाचार और अपराध को रोकने के लिए हमने रणनीति बनाई है."
कुल मिलाकर रोज के डोज से तो यही लग रहा है कि नीतीश कुमार अपनी पकड़ मजबूत रखना चाहते हैं, इसलिए बीच-बीच में गठबंधन के साथियों को इस तरह का सरप्राइज देते रहते हैं.
(इनपुट: महीप राज)
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