"सात संदूकों में भर कर दफ्न कर दो नफरतें
आज इंसां को मोहब्बत की जरूरत है बहुत "
- बशीर बद्र
सांप्रदायिक हिंसा, नफरती भाषण और भड़काऊ नारे... पिछले कुछ सालों में सेक्युलर दिखने वाले बिहार (Bihar) पर कुछ इस तरह के दाग भी लगे हैं.
31 मार्च 2023, रामनवमी के मौके पर बिहार शरीफ में दंगे भड़क गए थे. इस दौरान कई दुकानों में आग लगा दी गई थी. 100 साल पुराने मदरसे को भी जला दिया गया था. वहीं दंगे में एक युवक की भी मौत हुई थी. इस घटना को एक साल से ज्यादा समय बीच चुका है.
क्विंट हिंदी की टीम मौके पर पहुंची और लोकसभा चुनाव के मद्देनजर यह समझने की कोशिश की कि सांप्रदायिक दंगों का चुनावों पर कितना असर होगा?
बिहार शरीफ में क्या हुआ था?
नालंदा अंजुमन मॉर्फीदुल इस्लाम के सेक्रेट्री अकबर आजाद बताते हैं, "रामनवमी जुलूस में शामिल लोगों की संख्या इतनी ज्यादा थी, जिसे प्रशासन ने हल्के में लिया. 5 बजकर 20 मिनट पर अचानक दो चार लड़के तलवार के साथ आते हैं और जय सिया राम बोलने के लिए कहते हैं. हम लोगों ने उन्हें समझाने की कोशिश की, लेकिन वो नहीं माने. इसके बाद पत्थरबाजी शुरू हो गई."
अकबर आगे बताते हैं कि उनके सिर पर पत्थर लगा. इसके साथ ही तलवार से उनके पैर पर हमला हुआ. अपने चोट को दिखाते हुए वो कहते हैं कि उन्हें सिर पर 26 टाके लगे थे.
वहीं पाइप गोदाम के मालिक श्यामा प्रसाद मुखर्जी बताते हैं कि हिंसा में उनके गोदाम में आग लगा दी गई थी. पूरी बिल्डिंग में आग लगा दी गई थी. तीन दिन तक उनका गोदाम जलता रहा था.
मदरसा अजीजिया के प्रिंसिपल मोहम्मद शाकिर कासमी बताते हैं, "मदरसे में रखे 1910 से लेकर अभी तक के जितने दस्तावेज थे उन्हें जलाकर खाक कर दिया गया. आगजनी में कई महत्वपूर्ण किताबें भी जलकर खाक हो गई. ये ऐसा नुकसान है, जिसकी भरपाई नहीं हो सकती है."
दंगे के बाद पुलिस की कार्रवाई पर सवाल उठाते हुए विश्व हिंदू परिषद के प्रांत सह प्रवर्तन प्रमुख धीरज कुमार कहते हैं, "सरकार के दबाव में आकर प्रशासन ने उल्टी कार्रवाई की, एक तरफा कार्रवाई की. बजरंग दल बहुत बड़ा ताकत बन गया था, उसको तोड़ने की साजिश के तहत हमारे निर्दोष कार्यकर्ताओं के खिलाफ केस दर्ज किया गया, उनको गिरफ्तार किया गया."
दंगों का चुनावों पर कितना असर?
अकबर कहते है कि ये चुनाव पूरी तरह से सांप्रदायिक हो गया है. "गिरिराज सिंह, पीएम मोदी जो बातें कह रहे हैं, उससे साफ है कि आप एक तरफ हैं और हम दूसरी तरफ. अब यहां दो पार्टियां है- जेडीयू और आरजेडी. जेडीयू समझती है कि मुसलमान मेरे गुलाम हैं. आरजेडी समझती है कि मुसलमान उनके बंधुआ मजदूर हैं. ये कहां जाएंगे."
"भारतीय जनता पार्टी और जेडीयू दोनों अभी एक दूसरे के विपरीत हैं. बस सत्ता के लालच में दोनों एक जगह आए हैं. लोकसभा चुनाव के बाद हो सकता है, दोनों फिर अलग हो जाएं. जो हमारे सनातन धर्म के खिलाफ होगा, हमारा वोट उसके खिलाफ होगा. नोटा डाल देंगे, वो मंजूर है, लेकिन वैसे लोगों को वोट नहीं देंगे जो हमारे हिंदू भाइयों को कुचलता हो."धीरज कुमार, प्रांत सह प्रवर्तन प्रमुख, विश्व हिंदू परिषद
सासाराम में क्या हुआ था?
बिहार शरीफ के साथ ही सासाराम में भी हिंसा और आगजनी हुई थी. पेशे से शिक्षक सैयद शहाबुद्दीन बताते हैं, "आज से नहीं, शेरशाह सूरी के समय से हिंदू और मुसलमान साथ रहते आ रहे हैं. मुस्लिम पट्टी में दोनों धर्मों के लोग रहते हैं. यहां मस्जिद भी है और मंदिर भी."
वार्ड पार्षद चांद अशरफ बताते है, "जुमा की नमाज के वक्त कादिरगंज मोड़ और सैफुल्लाजंग मोड़ पर नारेबाजी हो रही थी. इस दौरान दोनों तरफ से पत्थर बाजी हुई. वहीं एक भीड़ पीछे से आई और एक घर को निशाना बनाते हुए आग लगा दिया."
उस दिन को याद करते हुए गृहिणी शब्बन खातून बताती हैं, "लोगों ने घर में रखा जेवर और पैसा लूट लिया. इसके साथ ही तोड़फोड़ भी की."
शब्बन ने अपनी बेटियों की शादी के लिए जेवर और पैसे जोड़े थे.
स्थानीय निवासी राजू कुमार ने कहा, "हमारा घर रोड पर है. जब भी ईंट-पत्थर चलता है तो सबसे पहले हमारा नुकसान होता है.
स्थानीय लोग उस हिंसा को भयावह बताते हैं. जब हमने उनसे पूछा कि दोनों समुदायों में किसी तरह की दूरी पैदा हुई है. इस सवाल के जवाब में चांद अशरफ कहते हैं, "अब ऐसा कुछ नहीं है. ऊपर वाले की रहम से सब लोग मिलकर रहते हैं. लेकिन उस वक्त बहुत ही भयावह स्थिति थी."
हालांकि, लोगों का कहना है कि रामनवमी के दिन जो हिंसा हुई वह पूरी प्लानिंग के साथ हुई थी. इसमें शामिल लोग बाहरी थे.
सासाराम में हिंसा के करीब 1 महीने बाद 28 अप्रैल, 2023 को पुलिस ने बीजेपी के पूर्व विधायक जवाहर प्रसाद को हिंसा भड़काने के आरोप में गिरफ्तार किया. इन्हें मुख्य आरोपी के रूप में पेश किया गया. 3 महीने बाद जवाहर प्रसाद जमानत पर जेल से रिहा हुए.
"कांग्रेस की सरकार थी. और नगर में कहीं भी बम फटे जवाहर जेल में. मैं तो कहता हूं कि एक भी वीडियो फुटेज दिखा दीजिए, जिसमें हम हैं. हमको तीन महीना 3 दिन जेल में रहना पड़ा. रामनवमी के दिन तो कुछ भी नहीं हुआ था. चुनौती देता हूं- बता दे कोई कि जुलूस में कुछ हुआ था."
पीयूसीएल बिहार के महासचिव सरफराज कहते हैं, "पिछले 7-8 सालों में ये पाया गया है कि किसी धार्मिक त्योहार के समय निकाले जाने वाले जुलूस का इस्तेमाल धार्मिक उन्माद फैलाने के लिए किया जा रहा है. पीयूसीएल ने अपनी कई रिपोर्ट्स में भी इस बात को उजागर किया है."
वे आगे कहते हैं,
"ये साफ चीज है कि ये जुलूस उस तरह से धार्मिक त्योहार की तरह नहीं रह गए हैं. बल्कि पॉलिटिकल टूल बन गए हैं. जिसका इस्तेमाल कुछ खास संगठन और राजनीतिक संस्थान कर रहे हैं."
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